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Tuesday, 19 November, 2024
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सरकार आसान इनकम टैक्स की व्यवस्था लाने की कोशिश कर रही है लेकिन एक बुनियादी जटिलता बनी हुई है

एक अस्पताल में नौकरी करने वाला और सैलरी पाने वाला डॉक्टर और एक खुद की प्रेक्टिस करने वाले डॉक्टर के लिए अलग-अलग प्रावधान क्यों है? यही सवाल हर दूसरे पेशे के लिए है.

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वित्त मंत्रालय लोगों को यह विश्वास दिलाने के लिए काफी हद तक आगे बढ़ गया है कि उसने नए टैक्स स्लैब की शुरुआत के माध्यम से भारत में आयकर व्यवस्था को सरल बना दिया है. वित्त मंत्री ने पिछले सप्ताह अपने बजट भाषण में इसका उल्लेख किया था और तब से मंत्रालय के कई सचिवों ने कर नीति के इस चीज़ के बारे में विस्तार से बात की है.

जहां तक पॉलिसी के सरल होने का संबंध है, छूटों को हटाना और कर स्लैबों की संख्या को कम करना निश्चित रूप से सही दिशा में उठाया गया कदम है. लेकिन एक और बुनियादी जटिलता है जिसे भारत की व्यक्तिगत कर नीति ने पेश किया है, जिसके समाधान से सरलता में काफी वृद्धि होगी. सवाल यह है कि दो लोग जो बिल्कुल समान आय स्तर के साथ एक ही काम कर रहे हैं, उन पर अलग-अलग कर क्यों लगाया जा रहा है?

इस जटिलता का स्रोत फॉर्म 16 और फॉर्म 16A करदाताओं के बीच के अंतर से उपजा है. सीधे शब्दों में कहें तो फॉर्म 16 करदाता वेतनभोगी कर्मचारी हैं, जबकि फॉर्म 16ए करदाताओं में डॉक्टर, वकील, सलाहकार आदि जैसे स्व-रोजगार वाले लोग शामिल हैं. और भी आसान शब्दों में कहें, तो फॉर्म 16 वेतन आय के लिए है, जबकि फॉर्म 16ए ‘अन्य आय’ के लिए है जो कि कोई व्यक्ति कमाता है.

एक अस्पताल में नौकरी करने वाला और सैलरी पाने वाला डॉक्टर और एक खुद की प्रेक्टिस करने वाले डॉक्टर के लिए अलग-अलग प्रावधान क्यों है? यही सवाल हर दूसरे पेशे के लिए है. कई मीडिया घरानों में पत्रकार होते हैं जो अपने वेतनभोगी सहयोगियों के समान ही काम करते हैं, लेकिन आयकर विभाग द्वारा उनके साथ अलग-अलग तरीके से व्यवहार किया जाता है.


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वर्कप्लेस के चरित्र को बदलने के लिए नीतिगत बदलाव की जरूरत

अब, कोई यह तर्क दे सकता है कि स्व-नियोजित लोग जैसे डॉक्टर, वकील और एकाउंटेंट, जिनकी अपनी प्रैक्टिस है, व्यवसाय से संबंधित विभिन्न खर्चों जैसे कि कार्यालय चलाने, क्लाइंट्स को डील करने आदि को करना पड़ता है, जो कि एक विशिष्ट वेतनभोगी डॉक्टर, वकील या एकाउंटेंट को खर्च करने की जरूरत नहीं है.

हालांकि, महामारी के बाद की दुनिया में, जहां कर्मचारियों और नियोक्ताओं के लिए घर से काम करना एक तेजी से उभरता आसान विकल्प है, वहां यह अंतर फीका पड़ जाता है. यदि आप घर से काम कर रहे हैं, तो आपका घर ही आपका कार्यालय है, भले ही आप वेतनभोगी कर्मचारी हों या सलाहकार. आपके किराए का हिस्सा, इंटरनेट बिल, सफाई का खर्च और अन्य खर्च वैध व्यावसायिक खर्च होने चाहिए.

उन कर्मचारियों के लिए जो एक अनुबंध पर हैं लेकिन हर तरह से अपने वेतनभोगी सहयोगियों के समान हैं, यह अंतर और भी कम समझ में आता है.

फॉर्म 16ए के कर्मचारियों पर बिल्कुल उसी तरह से टैक्स लगाया जाता है जैसे कि कंपनियों पर लगाया जाता है: आप अपनी आय से अपने खर्चों को घटाते या लिखते हैं, और जो बचता है उस पर कर का भुगतान करते हैं. मूल रूप से, राजस्व के बजाय आपके मुनाफे पर करों का भुगतान किया जाता है. यह काम करने का सही तरीका है. हालांकि, यह वास्तव में उन वेतनभोगी व्यक्तियों के मामले में नहीं है जो नई कर व्यवस्था चुनते हैं.

पुराने व्यवस्था के तहत, व्यक्तियों को उनके घर के किराए, यात्रा व्यय, चालक के वेतन, ईंधन लागत और विविध अन्य खर्चों के लिए छूट दी जाती है. इसका मूल रूप से मतलब है कि आप अपने मुनाफे पर कर चुका रहे हैं. नई व्यवस्था के तहत छूट को हटाने के साथ, वेतनभोगी व्यक्तियों पर अब उनके राजस्व पर कर लगाया जाएगा. यानी, वे अपनी आय माइनस व्यय के बजाय अर्जित कुल आय पर कर का भुगतान करेंगे.

अब, नवीनतम बजट में नई कर व्यवस्था के तहत 50,000 रुपये के स्टैंडर्ड डिडक्शन का भी प्रावधान किया गया है, लेकिन यह मुश्किल से वार्षिक खर्च को कवर करती है. लोग अभी भी बड़े पैमाने पर अपनी कुल आय पर कर का भुगतान करेंगे, इस छोटी सी राशि को घटाकर.

जीएसटी भेद

फॉर्म 16 और फॉर्म 16ए करदाताओं के बीच अन्य अंतर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से संबंधित है. फॉर्म 16ए करदाताओं को सेवा प्रदान करने वाला माना जाता है और इसलिए उन्हें अपनी सेवाओं पर जीएसटी लगाना पड़ता है और उस राशि को सरकार को हस्तांतरित करना पड़ता है. वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए कोई जीएसटी का कंपोनेंट नहीं है.

तो अब आपके पास एक ऐसी स्थिति है जहां किसी कंपनी के समान कर्मचारियों के साथ न केवल प्रत्यक्ष कर कानूनों के तहत, बल्कि अप्रत्यक्ष कर कानूनों के तहत भी अलग व्यवहार किया जाता है!

ऐसी अनावश्यक जटिलताओं का समाधान कर पाना निश्चित रूप से कठिन है.

ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर नीति निर्माताओं को विचार करना है. फॉर्म 16 की संरचना वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए काफी जटिल फॉर्म 16A कर्मचारियों की तुलना में बहुत आसान है.

फॉर्म 16 के तहत कमाई करने वालों के लिए, उनके नियोक्ता द्वारा भुगतान किए जाने से पहले ही उनके कर में भारी कटौती की जाती है. फॉर्म 16ए के कर्मचारियों के पास स्रोत पर कर कटौती का केवल एक हिस्सा होता है, बाकी का भुगतान टैक्स फाइलिंग के समय किया जाता है. उन्हें खर्चों की गणना करनी होगी, क्या और कितना बट्टे खाते में डाला जा सकता है, यह पता लगाना होगा कि कितना कर पहले ही चुकाया जा चुका है, और यह पता लगाना है कि अभी कितना भुगतान करने की आवश्यकता है. यह आसान नहीं है.

दूसरी ओर, फॉर्म 16A कर्मचारी अक्सर वेतनभोगी कर्मचारियों की तुलना में कम कर चुकाते हैं क्योंकि वे अपनी कर योग्य आय को बड़ी राशि से कम कर सकते हैं.

कोई यह बात कह सकता है कि यदि किसी को साल के अंत में कम टैक्स का भुगतान करना पड़ता है तो वह टैक्स से जुड़ी इस जटिलता के दर्द को सहने को तैयार होगा.

मोदी सरकार ने दिखाया है कि वह कर नियमों और उसके अनुपालन के मुद्दों को आसान बनाने के लिए उत्सुक है और इस मामले में काफी प्रगति की है. टैक्सेशन के इस अंतर को खत्म करने के लिए कुछ काम जरूर करना पड़ेगा लेकिन यदि चीजों को सरल बनाने का उद्देश्य हो तो यह काफी महत्त्वपूर्ण हो जाता है.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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