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Saturday, 4 May, 2024
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निलंबित इंदौर कॉलेज के प्रिंसिपल ‘हिंदूफोबिक’ किताब को लेकर दर्ज FIR को रद्द करने के लिए HC पहुंचे

छात्र एलएलएम पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में 'अनुत्तीर्ण' हो गया था और प्रधानाचार्य इनामुर रहमान से परीक्षा उत्तीर्ण करने में मदद मांगी. जब उसने मदद करने से इनकार कर दिया, तो छात्र ने 'झूठी और निराधार शिकायत' दर्ज करा दी.

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नई दिल्ली: कॉलेज के पुस्तकालय में एक ‘हिंदूफोबिक’ पुस्तक की अनुमति देकर दो समुदायों के बीच दुश्मनी और नफरत को बढ़ावा देने के आरोपों का सामना कर रहे इंदौर के न्यू गवर्नमेंट लॉ कॉलेज के निलंबित प्रिंसिपल ने दावा किया है कि जिस छात्र की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज की गई थी, वह पढ़ाई में ‘बुरी तरह’ विफल रहा था. अपने फर्स्ट ईयर एलएलएम पाठ्यक्रम और परीक्षाओं को पास करने के लिए उसने मदद मांगी थी.

किसी भी सहायता से इनकार किए जाने पर, छात्र ने ‘झूठी’ और ‘आधारहीन’ शिकायत दर्ज की. इनामुर रहमान ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में पिछले साल दिसंबर में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की है. दिप्रिंट के पास याचिका की एक प्रति है.

विवाद पिछले साल 1 दिसंबर को शुरू हुआ जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने लाइब्रेरी में कलेक्टिव वायलेंस एंड क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम नाम की किताब की मौजूदगी को लेकर कैंपस में विरोध प्रदर्शन किया. एबीभीपी ने दावा किया कि पुस्तक ‘राष्ट्र-विरोधी’ थी और इसमें ‘आपत्तिजनक सामग्री’ थी.

ये आपत्तियां जल्द ही कॉलेज के मुस्लिम प्रोफेसरों के खिलाफ ‘हिंदू घृणा’, ‘लव जिहाद’ और ‘भारत विरोधी प्रचार’ के आरोपों में बदल गईं और इसके कारण कई संकाय सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था. जैसा कि दिप्रिंट ने पहले बताया था.

रहमान ने खुद 3 दिसंबर को इस्तीफा दे दिया था, लेकिन राज्य सरकार द्वारा उनके और अन्य प्रोफेसरों के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए सात सदस्यीय पैनल गठित करने के तुरंत बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया था.

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उसी समय, राज्य पुलिस ने रहमान, एक अन्य प्रोफेसर, पुस्तक के लेखक फरहत खान और इसके प्रकाशक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की. एलएलएम का यह  छात्र, जो एबीवीपी का पूर्व पदाधिकारी था, की शिकायत पर कार्यवाई की गई थी. जिसमें आरोप लगाया गया था कि पुस्तक ‘हिंदूफोबिक’ थी और इसकी सामग्री राष्ट्र-विरोधी थी, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक शांति, राष्ट्र की अखंडता और धार्मिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाना था.

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने जहां इस मामले में रहमान की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी थी, वहीं सुप्रीम कोर्ट ने 21 दिसंबर को उन्हें गिरफ्तारी से राहत दे दी और राज्य सरकार को फटकार भी लगाई थी.

रहमान ने अब अपने खिलाफ प्राथमिकी को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि जिस छात्र ने शिकायत की थी, उसने ऐसा किया था. याचिका में उन्होंने जिस छात्र का उल्लेख किया है, वह उस कक्षा का हिस्सा नहीं था जिसमें सामूहिक हिंसा से संबंधित विषय पढ़ाया जा रहा था.

इसके अलावा, रहमान लिखते हैं कि एलएलएम के दूसरे सेमेस्टर में सामूहिक हिंसा के विषय का अध्ययन करने वाले किसी भी छात्र ने उनके खिलाफ शिकायत नहीं की है और न ही किताब पर कोई आपत्ति जताई है.

याचिका में रहमान के उच्च शिक्षा विभाग को दिए गए उस बयान का भी जिक्र है, जिसमें उन्होंने कहा था कि कॉलेज ने 2014 में किताब खरीदी थी, जबकि उन्हें अगस्त 2019 में प्राचार्य का पद मिला था.

इसमें कहा गया है कि रहमान ने 3 दिसंबर, 2022 को एक पत्र के माध्यम से पुलिस को इसके बारे में की जानकारी दी थी.


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‘एकमात्र इरादा छवि खराब करना है’

यह कहते हुए कि उनका एक साफ रिकॉर्ड है, रहमान लिखते हैं कि तीन दशक से अधिक के एक अकादमिक करियर के दौरान, उन्होंने कई छात्रों को पढ़ाया और उनकी मदद की है जो अब राज्य की न्यायपालिका में न्यायाधीश हैं. साथ ही 20 से अधिक छात्र ने पीएचडी ली है.

निलंबित प्रिंसिपल का दावा है कि वर्तमान मामला ‘उनके खिलाफ समाज की सेवा करते हुए अर्जित की गई छवि को खराब करने के एकमात्र इरादे से किया गया था’.

शिकायतकर्ता, रहमान का आरोप है, उसे एक राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए झूठे केस में फंसाया गया है और प्रसिद्धि पाने के लिए कानून की उचित प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया है. उन्होंने इंदौर पुलिस को ‘घिनौनी’ प्राथमिकी दर्ज करने के लिए भी दोषी ठहराया.

याचिका के मुताबिक, रहमान को 1 दिसंबर 2022 को एक संगठन से शिकायत मिली, जिसके आधार पर उन्होंने तत्काल कार्रवाई करते हुए पांच लोगों को छुट्टी पर जाने का निर्देश दिया. पांच में से एक कॉलेज का प्रोफेसर भी थे, जिसके खिलाफ आरोप लगाए गए थे.

आगे की कार्रवाई करते हुए, रहमान ने 2 दिसंबर को उच्च शिक्षा विभाग के आयुक्त को एक पत्र लिखा था, जिसमें सुझाव दिया कि वह एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश के द्वारा इस मामले के जांच का आदेश दें. उसी दिन, उन्होंने एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश को भी एक पत्र भेजा, जिसमें उन्हें जांच पैनल का नेतृत्व करने के लिए कहा गया. याचिका में कहा गया है कि एक दिन बाद 3 दिसंबर को रहमान ने कॉलेज के लाइब्रेरियन को किताब हटाने के लिए भी लिखा था.

रहमान कहते हैं कि उनकी ‘त्वरित’ कार्रवाई के बारे में कॉलेज में सभी को पता था, फिर भी शिकायतकर्ता ने मामला दर्ज करने के लिए पुलिस से संपर्क किया.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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