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Saturday, 4 May, 2024
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ग्लोबल एक्सपर्ट्स, राष्ट्रवाद और कॉर्पोरेट टच- मोदी सरकार में कैसे बदला IAS अधिकारियों के प्रशिक्षण का माड्यूल

लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी ने नौकरशाही प्रणाली में बदलाव लाने के लिए विश्व बैंक, आईएमएफ-एसएआरटीटीएसी के आदि विशेषज्ञों को शामिल किया है और साथ ही आईएएस प्रशिक्षुओं के लिए संशोधित स्टडी मॉड्यूल भी लागू किया गया है.

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नई दिल्ली: इस साल मार्च में युवा आईएएस प्रशिक्षुओं के एक नए बैच के सामने दिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन में मुख्य ध्यान ‘रिफॉर्म, परफॉर्म एंड ट्रांसफॉर्म’ (सुधार, अच्छे प्रदर्शन और कायाकल्प) के मंत्र पर दिया गया था. अब, जैसा कि दिप्रिंट को पता चला है, इसी संदेश को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार देश में ‘नौकरशाही और यथास्थितिवादी व्यवस्था’ में बदलाव लाने के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र से नए विचारों को शामिल कर रही है तथा युवा अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए वैश्विक विशेषज्ञों को भी इस प्रयास में शामिल किया है.

उत्तराखंड के मसूरी में स्थित सिविल सेवा प्रशिक्षण संस्थान लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन (एलबीएसएनएए) ने विश्व बैंक, आईएमएफ-एसएआरटीटीएसी (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता केंद्र), सिंगापुर के ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी (एलकेवाई) और ऑस्ट्रेलिया की कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी से यहां के प्रशिक्षु अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के लिए डोमेन एक्सपर्ट्स (अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञों) को बुलाया है. इस संस्थान के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि इसने पिछले दो वर्षों में अपने स्टडी मॉड्यूल को भी नया रूप दिया है, ताकि अधिकारियों में राष्ट्रवाद की भावना पैदा की जा सके और साथ ही पूरे सिस्टम के ‘डिसिलोइजेशन’ (अपने अपने घेरे से बाहर निकलने) पर भी ध्यान केंद्रित किया जा सके.

कुछ प्रशिक्षु अधिकारी, जो एलबीएसएनएए के नए कार्यक्रम का हिस्सा रहे हैं और अब अपने-अपने संबंधित राज्य कैडर में तैनात हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें उन गांवों में स्वतंत्रता सेनानियों का पता लगाने का काम सौंपा गया था जहां उन्हें उनके पाठ्यक्रमों के एक हिस्से के रूप में भेजा गया था.

2020 बैच के एक आईएएस अधिकारी, जिन्होंने पिछले साल ही अपना फाउंडेशन कोर्स पूरा किया था, ने कहा, ‘पहले की तुलना में पाठ्यक्रम काफी बदल गया है. क्षेत्र विशेष के विशेषज्ञों और खेल हस्तियों के अलावा, अब संस्थान को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के संकाय सदस्य (फैकल्टी मेंबर) भी मिल पा रहे हैं. हमारे जिले के दौरे के दौरान हमें उन लोगों के परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए कहा जाता है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में योगदान दिया क्योंकि भारत के हर जिले में ऐसे परिवार हैं.’

इस अधिकारी ने कहा, ‘हमें विकलांग लोगों के साथ संवेदनशील व्यवहार करने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया था, उसके लिए एक छोटा सा कोर्स भी है. ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम (भारत की स्वतंत्रता के 75 साल पूरे होने पर केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित जश्न) के तहत, हमें भारत के गुमनाम नायकों को खोजने और उन्हें सूचीबद्ध करने का काम सौंपा गया था.’

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स्टडी मॉड्यूल में ‘भारत के भूले हुए नायकों’ के नाम से एक विषय शामिल किया गया है और आईएएस प्रशिक्षण अकादमी ने ‘सबका साथ’ नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है, जिसके तहत पद्म पुरस्कार विजेताओं को इस संस्थान में विशेष सत्र और व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया जाता है. एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, जो संस्थान में एक संकाय सदस्य भी हैं, ने दिप्रिंट को बताया, ‘सबका साथ’ कार्यक्रम प्रधानमंत्री मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ वाले उस अभियान पर आधारित है, जो समावेशिता का प्रतीक है.’

नए स्टडी मॉड्यूल और वैश्विक संस्थानों और निजी संगठनों के विशेषज्ञों को विजिटिंग फैकल्टी (आगंतुक संकाय सदस्य) के रूप में शामिल किये जाने पर दिप्रिंट द्वारा पूछ गए सवालों के विस्तृत जवाब में एलबीएसएनएए के निदेशक श्रीनिवास कटिकिथला के कार्यालय ने कहा, ‘यह सुनिश्चित करने के लिए कि व्यावसायिक शिक्षा की गुणवत्ता समग्र, वांछित, उचित और उच्च स्तर की हो, यह अकादमी प्रशिक्षण आवश्यकताओं के कठोर मूल्यांकन के माध्यम से, उच्च गुणवत्ता वाले नॉलेज पार्टनर्स (जानकारी के भागीदारों) के साथ आंतरिक सहयोग वाली कार्रवाई के माध्यम से, नई विषय सामग्री को क्यूरेट (सजाना संवारना और व्यवस्थित करना) कर रही है.’

हालांकि इस नए स्टडी मॉड्यूल का उद्देश्य ‘दक्षता लाना और कार्य प्रदर्शन-उन्मुख प्रतिस्पर्धी ढांचे का निर्माण करना’ है, लेकिन वरिष्ठ अधिकारियों के एक वर्ग का यह भी मानना है कि ऐसे कार्यक्रम अधिकारियों की खास मदद नहीं करेंगे, जिन्हें अनुभव के माध्यम से सीखने की जरूरत होती है, न कि अंतरराष्ट्रीय शिक्षाविदों और नीति विशेषज्ञों से.

पूर्व कैबिनेट सचिव केएम चंद्रशेखर ने दिप्रिंट को बताया, ‘विदेशी शिक्षाविद या कॉर्पोरेट क्षेत्रों के डोमेन एक्सपर्ट्स कुछ विश्लेषणात्मक कौशल या तकनीकी ज्ञान ला सकते हैं लेकिन वे ग्रामीण जीवन, गरीबी वाली सामाजिक संरचना से अच्छी तरह से परिचित नहीं हैं. उनकी सार्वजनिक नीति उन लोगों से उस चीज से काफी अलग है जिनका हम सामना करते हैं.’

दिप्रिंट से बात करने वाले एक आईएएस अधिकारी ने दावा किया कि पूर्व में एलबीएसएनएए वक्ताओं को उनकी राजनीतिक विचारधाराओं के परवाह किये बिना बोलने के लिए आमंत्रित करता था, लेकिन अब सरकार की नीतियों या विचारों से असहमत रहने वाले वक्ताओं को आमंत्रित नहीं किया जाता है.


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निजी संस्थाएं दक्षता लाएंगी

एलबीएसएनएए ने जिन 12 संगठनों और संस्थानों से युवा आईएएस प्रशिक्षुओं के लिए स्टडी मॉड्यूल को क्यूरेट करने के लिए करार किया है, चार अंतर्राष्ट्रीय और तीन स्वायत्त संस्थान तथा थिंकटैंक सहित कम-से-कम सात निजी संगठन शामिल हैं.

वैश्विक संस्थानों के अलावा, एलबीएसएनएए ने गुजरात स्थित उद्यमिता विकास संस्थान और अन्य स्वायत्त संस्थानों, जैसे कि इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ (आईईजी) और यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया के साथ भी करार किया है.

पहले भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय वन सेवा (आईएफएस), आंतरिक राजस्व सेवा (आईआरएस), भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और अन्य सिविल सेवाओं के वरिष्ठ अधिकारी एलबीएसएनएए में संकाय सदस्यों और अतिथि व्याख्याताओं के रूप में आया करते थे.

ऊपर उद्धृत वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, जो पाठ्यक्रम के पुनर्गठन का भी हिस्सा थे, ने कहा कि डोमेन एक्सपर्ट्स और विदेशी संगठनों एवं संस्थानों के वरिष्ठ सदस्यों को शामिल करना इस आईएएस अकादमी द्वारा पिछले कुछ वर्षों में जोड़ी गई नवीनतम चीज है.

इस नई प्रणाली के बारे में एक उदाहरण देते हुए कटिकिथला के कार्यालय ने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर, मैक्रोइकोनॉमिक्स में पाठ्यक्रम आईएमएफ-एसएआरटीटीएसी (भारत सरकार द्वारा समर्थित अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की एक इकाई) द्वारा सह-संचालित तरीके से प्रदान किए जाते हैं. इसी तरह, डिजिटल गवर्नेंस में निपुण बनाने के लिए कार्नेगी मेलन यूनिवर्सिटी और ऐसे ही अन्य अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदत्त प्रमाणित कार्यक्रम भी नए पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं.


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भारत-केंद्रित, जन-केंद्रित

मॉड्यूल ‘डिसिलोइजेशन’ के तरीकों पर केंद्रित हैं, जिसका उद्देश्य अधिकारियों को उनके संबंधित विभागों और जिम्मेदारियों से बाहर निकालना और उन्हें एक टीम के रूप में काम करना सीखना है.

ऊपर उद्धृत आईएएस अधिकारी ने कहा कि मिशन कर्मयोगी, सिविल सेवाओं के लिए क्षमता निर्माण के लिए केंद्र सरकार का कार्यक्रम ही वह नींव है जिसके चारों ओर ये मॉड्यूल तैयार किए गए हैं.

एलबीएसएनएए निदेशक के कार्यालय से दिप्रिंट को प्राप्त जवाब में बताया गया है, ‘फाउंडेशन प्रोग्राम प्रतिभागियों के बीच नैतिक मूल्यों को स्थापित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. ‘मिशन कर्मयोगी’ ने डिसिलोइजेशन और जीवन भर निरंतर रूप से सीखने पर अत्यधिक जोर देने के साथ ही पूरे दृष्टिकोण में एक मौलिक परिवर्तन का संकेत दिया है. सरकार के इस नए शासनादेश के अनुकूल बनने के लिए तथा सिविल सेवाओं के बीच क्षमता निर्माण के लिए जिम्मेदार प्रमुख एजेंसी के रूप में अकादमी ने अपनी पेडागोजि (शिक्षाशास्त्र) में कई बदलाव किए हैं.’

इसने आगे कहा कि अकादमी का वर्तमान दृष्टिकोण ‘इसे अधिक अनुभवात्मक, अधिक प्रासंगिक, अधिक सशक्त बनाकर सीखने को बढ़ावा देने और इसे स्थापित मानकों के अनुसार बेंचमार्क करने का है.’

एक वरिष्ठ संकाय सदस्य ने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर सरकार की ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ को वास्तविक रूप देने में मदद करने के लिए प्रशिक्षुओं को पहाड़ी राज्यों और पूर्वोत्तर में प्रत्यक्ष अनुभव प्रदान करना सुनिश्चित करने के लिए, उनके द्वारा गांवों के दौरे, हिमालयी ट्रेक पर चढ़ाई और इन क्षेत्रों के स्वयं सहायता समूहों के साथ बातचीत किये जाने को शामिल किया गया है.’

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के एक दूसरे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि इससे होने वाले परिवर्तन ‘स्पष्ट’ रूप से दिखाई दे रहे हैं.

इस अधिकारी ने कहा, ‘हम यह परिवर्तन देख सकते हैं … पहले अगर युवा अधिकारियों को उत्तर-पूर्व क्षेत्र या जम्मू-कश्मीर में तैनात किया जाता था तो वे हमेशा इसमें शामिल होने में संकोच करते थे. लेकिन अब, हम ऐसे युवा अधिकारियों से मिले हैं जो स्वेच्छा से काम कर रहे हैं.’

दूसरे आईएएस अधिकारी ने कहा कि संस्थान ने मॉड्यूल को और अधिक ‘भारत-केंद्रित’ बनाने के लिए प्रतिष्ठित सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ एक कार्यक्रम शुरू किया है.

उन्होंने कहा, ‘इस कार्यक्रम को ‘सबका साथ कार्यक्रम’ कहा जाता है. पद्म पुरस्कार विजेताओं को प्रशिक्षुओं के साथ अपने अनुभव साझा करने के लिए आमंत्रित किया जाता है. इसके अलावा, प्रशिक्षुओं को उनके साथी नागरिकों द्वारा सामना की जाने वाली रोजमर्रा की वास्तविकताओं की सहानुभूतिपूर्ण समझ के लिए वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट- ओडीओपी (एक जिला एक उत्पाद) परियोजनाओं, जीआई (भौगोलिक संकेतक) टैगिंग परियोजनाओं आदि के द्वारा विभिन्न सामाजिक और आर्थिक विकास गतिविधियों को करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.’

एलबीएसएनएए निदेशक की ओर से दी गयी प्रतिक्रिया में कहा गया है, ‘ये सारे अभ्यास उन्हें ‘अपनी स्मृति और अनुभव में गहराई के साथ गोता लगाने और सुधार की जरूरत वाले क्षेत्रों की पहचान करने तथा उन्हें अपनी सोच में ‘नागरिक-केंद्रितता’ को मजबूत करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.’

साथ ही, इसमें कहा गया है, ‘इस प्रकार, इन गहन अनुभवात्मक गतिविधियों के माध्यम से इन नवोदित सिविल सेवकों को जन-केंद्रित और सहानुभूतिपूर्ण होने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है.’


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कंटेंट क्यूरेशन

ऊपर उद्धृत पहले वरिष्ठ संकाय सदस्य के अनुसार, राष्ट्रीय लेखापरीक्षा और लेखा अकादमी (नेशनल एकेडमी ऑफ ऑडिट एंड अकाउंट्स), शिमला, राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद और अन्य इसी तरह के डोमेन संगठनों के साथ सहयोगात्मक गठजोड़ के माध्यम से, जहां तक संभव हो, बहुत सारी विषय सामग्री आंतरिक रूप से ही क्यूरेट की जाती है.

एलबीएसएनएए निदेशक कार्यालय से मिली प्रतिक्रिया में आगे कहा गया है, ‘(एलबीएसएनएए में प्रशिक्षु अधिकारियों के लिए) कॉमन फाउंडेशन कोर्स में प्रदर्शन के माध्यम से इस विषय सामग्री को प्रमाणित किया जाता है और पूरी सख्ती के साथ इसका मूल्यांकन किया जाता है. इस तरह का मूल्यांकन अब सभी सेवाओं के प्रशिक्षण के समग्र मूल्यांकन का हिस्सा है और (नौकरशाही संरचना में) अंतिम वरिष्ठता सूची में भी शामिल होगा, जिससे यह गतिविधि अत्यधिक सख्त और अनुशासित हो जाएगी.’

नेबरहुड मॉड्यूल, जो इस पाठ्यक्रम का एक हिस्सा है, को विदेश मंत्रालय द्वारा क्यूरेट किया गया है, जबकि राष्ट्रीय सुरक्षा मॉड्यूल को मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस और यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा को-क्यूरेट किया गया है. वित्तीय प्रबंधन वाले मॉड्यूल को नेशनल एकेडमी ऑफ ऑडिट एंड अकाउंट्स, शिमला और माइक्रो-इकोनॉमिक्स वाले मॉड्यूल को इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ द्वारा को-क्यूरेट किया गया है.

लीडरशिप (नेतृत्व क्षमता) वाले मॉड्यूल को सरदार पटेल लीडरशिप सेंटर द्वारा क्यूरेट किया गया है और सपोर्टिंग एंटरप्रेन्योरशिप (उद्यमशीलता को सहायता करने) पर तैयार एक विशेष मॉड्यूल को एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया द्वारा को-क्यूरेट किया गया है और साथ ही इसके लिए नीति आयोग से मिले इनपुट का भी उपयोग किया जा रहा है.


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आईएएस बिरादरी के भिन्न प्रकार के विचार

हालांकि, वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों का एक वर्ग युवा अधिकारियों के लिए उपयोग में लाये जा रहे इस तरह के प्रशिक्षण मॉड्यूल से सहमत नहीं है.

एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, जिन्होंने इस संस्थान (एलबीएसएनएए) के निदेशक के रूप में भी कार्य किया, ने कहा, ‘यह एक प्रणाली को एकदम से उल्टा करने जैसा लगता है. हम जीवन के सभी क्षेत्रों से वक्ताओं को आमंत्रित करते थे, भले ही उनकी राजनीतिक विचारधारा और उनकी निष्ठा कुछ भी हो. अब उन विचारों को अवरुद्ध कर दिया गया है. जो वक्ता सरकार की नीतियों या सत्तारूढ़ पार्टी के विचारों से सहमत नहीं होते हैं, उन्हें अब आमंत्रित ही नहीं किया जाता है.’

इस अधिकारी ने दावा किया, ‘टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस (टीआईएसएस) जैसे भारतीय संस्थान इसमें शामिल नहीं हैं, क्योंकि सरकार में शामिल एक वर्ग सोचता है कि टीआईएसएस शहरी नक्सलियों के पैदाइश की जगह है.’

उन्होंने कहा, ‘विदेशी विश्वविद्यालयों और संस्थानों में पढ़ाए जाने वाले सार्वजनिक नीति के फैंसी (बढे-चढ़े) विचारों के बजाए भारतीय प्रशासन उस ग्रामीण ढांचे के बारे में बहुत अधिक है जहां एक एसडीएम (सब डिविजनल मजिस्ट्रेट) पंचायतों, ब्लॉकों, विधायकों और सांसदों के साथ व्यवहार करता है.

एक अन्य वरिष्ठ आईएएस अधिकारी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, ने इस बात को महसूस किया कि जहां वैश्विक जानकारियां (इनपुट) प्रशिक्षु अधिकारियों के लिए अच्छी हो सकती हैं, वहीं उन्हें नगरपालिका और पंचायत प्रणालियों को भी समझने की आवश्यकता है और वर्तमान पाठ्यक्रम में नगरपालिकाओं के बारे में ऐसा कोई वर्णनात्मक मॉड्यूल शामिल नहीं है.

एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी टी आर रघुनंदन, जो एलबीएसएनएए में विजिटिंग फैकल्टी सदस्य भी हैं, ने कहा, ‘पहले भी विदेशी विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जाता था लेकिन वह सीमित रूप से होता था. 2004-05 में भी इस संस्थान में ड्यूक यूनिवर्सिटी के संकाय सदस्य हुआ करते थे. वैश्विक इनपुट प्राप्त करना गलत नहीं है, दरअसल कुछ वैश्विक विद्वान स्थानीय विद्वानों की तुलना में सार्वजनिक नीति और व्यवस्था को समझने में अधिक वस्तुनिष्ठ कार्य करते हैं.’

हालांकि, रघुनंदन ने यह भी कहा, ‘मुझे लगता है कि एक ऐसा स्टडी मॉड्यूल होना चाहिए जो स्थानीय सरकारों, विशेष रूप से नगर पालिकाओं को समझने में मदद करे. हर कोई स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट का हिस्सा बनना चाहता है, जो स्थानीय इनपुट पर निर्भर नहीं है और मुख्य रूप से कॉर्पोरेट द्वारा संचालित है. नगरपालिकाएं बद से बदतर होती जा रही हैं.’

(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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