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Friday, 17 May, 2024
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पहले उत्साह और फिर गिरावट का दौर- भारत में तेजी से बढ़ी यूनिकॉर्न की संख्या 2022 में घटने क्यों लगी

अक्टूबर की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप की संख्या 105 से गिरकर 84 रह गई है. बढ़ा-चढ़ाकर वैल्यूएशन, विलय और अधिग्रहण बढ़ने और अगले साल नए आईपीओ की वजह से उनमें से और कई और स्टार्टअप यूनिकॉर्न का टैग गंवा सकते हैं.

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नई दिल्ली: साल खत्म होते-होते देश में यूनिकॉर्न की संख्या सितंबर में अधिकतम 105 से घटकर सिर्फ 84 रह गई है, यह आंकड़े नवीनतम रिपोर्ट में सामने आए हैं. स्टार्ट-अप इकोसिस्टम विशेषज्ञों के मुताबिक, नए साल में यह संख्या और भी ज्यादा घटने के आसार हैं.

इंडस्ट्री का हिस्सा और इस पर नजर रखने वालों ने दिप्रिंट से बातचीत में माना कि 2021-22 में यूनिकॉर्न को लेकर जो गजब का उत्साह दिख रहा था और जिस तरह से वे सुर्खियां बटोर रहे थे, वो साल का अंत आते-आते कहीं नदारत हो गया है. साथ ही यह भी कहा कि आने वाले साल में विलय और एकीकरण की बहुत ज्यादा संभावनाएं हैं, जिससे इस तरह की कंपनियों की संख्या में और भी ज्यादा गिरावट आ सकती है.

एक अन्य फैक्टर यूनिकॉर्न की संख्या घटाने की बड़ी वजह बन सकता है, वो है ऐसे स्टार्ट-अप मालिकों की संख्या बढ़ना जो अपनी कंपनियों को स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध कराना चाहते हैं. गौरतलब है कि स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड होने के साथ ही कंपनी का यूनिकॉर्न दर्जा खुद ब खुद खत्म हो जाता है.

अक्टूबर 2022 में प्राइवेट मार्केट ट्रैकर वेंचर इंटेलिजेंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में यूनिकॉर्न (यानी 1 बिलियन डॉलर वैल्यूएशन वाले स्टार्टअप) की संख्या मौजूदा 105 से घटकर 84 रह गई है. अकाउंटिंग और कंसल्टिंग दिग्गज प्राइसवाटरहाउसकूपर्स (पीडब्ल्यूसी) ने भी इसकी पुष्टि की है, जिसके मुताबिक सक्रिय यूनिकॉर्न की नवीनतम संख्या 84 है.

वेंचर इंटेलिजेंस रिपोर्ट के मुताबिक, जिन कुछ यूनिकॉर्न ने अपना यह टैग गंवा दिया, उनमें हाइक, क्विकर, शॉपक्लूज, स्नैपडील, पेटीएम मॉल आदि शामिल हैं. उन्होंने यूनिकॉर्न का दर्जा इसलिए गंवाया क्योंकि उनका मूल्यांकन 1 बिलियन डॉलर से नीचे पहुंच गया है.

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फ्लिपकार्ट, नायका, ब्लिंकिट, डेल्हीवरी, बिलडेस्क, जोमैटो, पॉलिसी बाजार, फ्रेशवर्क्स और पेटीएम जैसे कुछ अन्य स्टार्टअप भी अब यूनिकॉर्न नहीं रहे क्योंकि इन्होंने या तो खुद को सार्वजनिक रूप से सूचीबद्ध कंपनी बना लिया है या फिर इनका सूचीबद्ध कंपनियों ने अधिग्रहण कर लिया है.

यूनिकॉर्न स्टार्ट-अप निजी स्वामित्व वाली वो कंपनी होती है जिसका मूल्यांकन 1 बिलियन डॉलर या उससे अधिक पहुंच जाता है और जिसे वेंचर कैपिटल का उपयोग करके वित्त पोषित किया जाता है. एक बार जब कंपनी 1 बिलियन डॉलर के वैल्यूएशन से नीचे आ जाती है तो इसे यूनिकॉर्न नहीं कहा जाता. ‘यूनिकॉर्न’ शब्द पिछले एक दशक में सुर्खियों में रहा है और पालो-ऑल्टो आधारित वेंचर कैपिटल के संस्थापक एलीन ली के टेक स्टार्ट-अप्स पर एक लेख में इस्तेमाल किए जाने के बाद यह चलन में आया.


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खत्म होते जा रहे यूनिकॉर्न

पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 की तीसरी तिमाही में सूची में केवल दो नए यूनिकॉर्न जुड़े, जबकि 23 बाहर हो गए. यह नए यूनिकॉर्न का उभरना घटने और मौजूदा यूनिकॉर्न का अपना खास दर्जा गंवा देने में आई तेजी को दर्शाता है.

वेंचर इंटेलिजेंस ने पाया कि 2015 के बाद से 2021 में ही सूची में सबसे ज्याद संख्या में यूनिकॉर्न जुड़े थे. रिपोर्ट बताती है कि 2021 में भारत के सूची में 54 नए यूनिकॉर्न जुड़े थे, वहीं, 2022 में सितंबर अंत तक नए जुड़े यूनिकॉर्न की संख्या घटकर 20 ही रह गई.

रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक यूनिकॉर्न (21) बी2बी ई-कॉमर्स क्षेत्र से आए, इसके बाद 18 फिनटेक से आए.

शहरों की बात करें तो बेंगलुरु में सबसे ज्यादा 41 यूनिकॉर्न हैं, इसके बाद दिल्ली-एनसीआर में 25, मुंबई में 19, पुणे में 7 और अन्य शहरों में तीन यूनिकॉर्न हैं. सक्रिय और अपना टैग गंवा देने वाले यूनिकॉर्न के साथ यह संख्या दिल्ली-एनसीआर में नोएडा में 6, दिल्ली में 8 और गुरुग्राम में 14 रही.

इस वर्ष की तीसरी तिमाही पर पीडब्ल्यूसी की स्टार्ट-अप पर्सपेक्टिव्स रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत ही नहीं दुनियाभर में स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में फंडिंग को लेकर सुस्ती का दौर जारी रही है और यह तय नहीं है कि ऐसा कब तक चलता रहेगा. 2022 में तीसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) के दौरान भारत में स्टार्ट-अप फंडिंग 205 सौदों में 2.7 बिलियन डॉलर के साथ दो साल के निचले स्तर पर पहुंच गई.’

शीर्ष तीन क्षेत्रों—फिनटेक, सास (एक सेवा के तौर पर सॉफ्टवेयर) और एडटेक के संदर्भ में पीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि फिनटेक क्षेत्र ने 2022 में तीसरी तिमाही के दौरान कुल फंडिंग का 30 प्रतिशत योगदान दिया, वहीं, फिनटेक स्टार्ट-अप्स के लिए धन जुटाने के मामले में पिछली तिमाही की तुलना में 60 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई.

सास सेक्टर पर, रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘वर्ष 2022 में दूसरी तिमाही की तुलना में तीसरी तिमाही में वैल्यू के साथ-साथ वॉल्यूम के लिहाज से भी गिरावट दर्ज की गई.’

बढ़ा-चढ़ाकर किया गया मूल्यांकन

हालांकि, यह सब बाजार की अनिश्चितताओं का ही नतीजा नहीं है. इसमें योग्यता भी काफी अहमियत रखती है.

रिपोर्ट में मिराए एसेट वेंचर इन्वेस्टमेंट्स (इंडिया) के सीईओ आशीष दवे के हवाले से कहा गया है, ‘2022 के शुरू से ही हमने देखा है कि बाजार ने उन कंपनियों को अलग श्रेणी में रखना शुरू कर दिया, जो किस्मत से इस मुकाम तक पहुंच गई थीं. बाजार ने प्रक्रियागत आधार पर यूनिकॉर्न का दर्जा हासिल करने वाली कंपनियों को अलग रखना शुरू कर दिया.’

स्टार्टअप को परामर्श देने वाले दिल्ली के एक वकील ने इसे कुछ इस तरह समझाया, ‘2021 में, बाजार में बहुत अधिक नकदी थी और डेट बॉन्ड में निवेश के बजाये निवेशकों ने अपना पैसा इक्विटी में लगाना शुरू कर दिया, यही वजह है कि स्टार्ट-अप में अधिक पैसा लगाया गया और इसी वजह से ही कई स्टार्टअप को यूनिकॉर्न का दर्जा मिल गया. अन्यथा हमारे पास इतने सारे यूनिकॉर्न होने ही नहीं चाहिए थे.’

उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था अब भारत सहित दुनियाभर में खुद को सही कर रही है और ऐसे में कई कंपनियां का वैल्यूएशन नीचे ही आएगा.

वहीं, नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करने वाले एक अन्य जाने-माने निवेशक ने इस मुद्दे की संवेदनशीलता और बाजारों पर इसके प्रभाव के संदर्भ में कहा कि आने वाले दिनों में बहुत अधिक कंसॉलिडेशन की उम्मीद है और आशंका है कि इससे बाजार में अफरा-तफरी जैसी स्थिति भी आ सकती है.

निवेशक ने कहा, ‘आने वाला वर्ष कंसॉलिडेशन का होगा. बहुत सारे विलय और अधिग्रहण होंगे. यह तमाम कंपनियों के मूल्यांकन को भी उजागर करेगा. जिन लोगों ने बढ़ा-चढ़ाकर मूल्यांकन कर रखा है, उन्हें खरीदे जाने की स्थिति में वास्तविक वैल्यू का पता चल जाएगा. क्योंकि खरीदारी ही मूल्यांकन की असली कसौटी है, आईपीओ नहीं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी/ संपादन: अलमिना खातून)


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