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Thursday, 25 April, 2024
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त्रिपुरा में BJP से मुकाबले के लिए पार्टियों का गठबंधन? ‘कांग्रेस, लेफ्ट और TIPRA के बीच बातचीत जारी’

कांग्रेस नेता सुदीप बर्मन का कहना है कि कांग्रेस, वामदल और मोथा की तरफ से भाजपा विरोधी ‘धर्मनिरपेक्ष’ गठबंधन की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार के लिए इस तरह का कोई सार्वजनिक बयान देना ‘जल्दबाजी’ होगा.

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नई दिल्ली: त्रिपुरा में अगले साल फरवरी में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों से पहले भाजपा से मुकाबले के लिए विपक्षी महागठबंधन की कोशिशें जारी हैं. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस और वामपंथी दल ‘लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष ताकतों’ के महागठबंधन की संभावनाएं तलाश रहे हैं जिसमें प्रभावशाली तिप्राहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (टिपरा मोथा) भी शामिल हो सकता है.

हालांकि, त्रिपुरा के पूर्व सीएम और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के नेता माणिक सरकार ने गठबंधन को लेकर बातचीत को ‘प्रीमेच्योर’ बताया. लेकिन पार्टी की राज्य इकाई के वरिष्ठ पदाधिकारियों ने इस बात पुष्टि की है कि पार्टी संभावित गठबंधन के लिए कांग्रेस और आदिवासी क्षेत्रों में तेजी से जमीन मजबूत करने में जुटी पार्टी मोथा के साथ बातचीत कर रही है. साथ ही कहा कि ‘बातचीत का किसी अंजाम पर पहुंचना अभी बाकी है.’

दशकों से, पूर्वोत्तर राज्य की राजनीति कांग्रेस और वाम मोर्चे के इर्द-गिर्द घूमती रही है. 2018 में परिदृश्य एकदम बदल गया, जब भाजपा ने 25 साल बाद वामपंथियों को सत्ता से बेदखल करते हुए राज्य में अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता.

हालांकि, तबसे राज्य में काफी कुछ बदल चुका है. इसमें पूर्व कांग्रेसी नेता और तत्कालीन त्रिपुरा शाही परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा की अगुआई में मोथा पार्टी का उदय और पूर्व मंत्री सुदीप रॉय बर्मन का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से बाहर निकलना शामिल है.

फरवरी में भाजपा छोड़ने के साथ ही बर्मन ने यह सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता जताई कि पार्टी अगले विधानसभा चुनावों में एक भी सीट न पाए. इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए, जिस पार्टी से वह 2016 में कुछ समय के लिए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में जाने से पहले हुआ करते थे.

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अब, टीएमसी पर भाजपा की तरफ से वित्त पोषित होने का आरोप लगाने वाले बर्मन ने दिप्रिंट से बातचीत में इस पर जोर दिया कि अब समय आ गया है कि ‘राज्य में असली खिलाड़ी’—कांग्रेस, वामपंथी और मोथा—भाजपा के विरोध के लिए एक साथ आएं.

उन्होंने कहा, ‘त्रिपुरा के लोग चाहते हैं कि सभी लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल जिनका राज्य में कुछ जनाधार है, उन्हें भाजपा को हराने के लिए साथ आना चाहिए. अब कांग्रेस को इस पर आगे आना चाहिए.’

बर्मन ने यह दावा भी किया कि टीएमसी का ‘त्रिपुरा में कोई वजूद नहीं’ है.

उन्होंने कहा, ‘(यह पार्टी) यहां भी वही सब करने की कोशिश कर रही है जो उसने गुजरात, गोवा और मणिपुर जैसे राज्यों में किया है—मूलत: वे यहां-वहां 100-200 वोट काटना चाहते हैं और भाजपा को मजबूत करना चाहते हैं. उनका अपना कोई वजूद नहीं है, वे तो बस भाजपा के इशारे-उकसावे पर और उनकी वित्तीय मदद के आधार पर काम करते हैं. असली खिलाड़ी तो कांग्रेस, वामपंथी दल और मोथा हैं, और उन्हें एक साथ आने की जरूरत है. हम उनसे लगातार संपर्क में हैं और अब यह उन पर निर्भर करता है कि वे हमारे आह्वान का जवाब दें.’

दिप्रिंट ने कांग्रेस की तरफ से गठबंधन के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया जानने के लिए टीआईपीआरए मोथा के अध्यक्ष देबबर्मा से फोन और व्हाट्सएप मैसेज के जरिये संपर्क साधा. उनकी प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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‘गठबंधन की बात करना अभी जल्दबाजी है’

1993 से 2018 तक—जब 2013 के विधानसभा चुनाव में मात्र 1.5 प्रतिशत वोट शेयर रखने वाली भाजपा ने राज्य में सरकार बनाई—त्रिपुरा में वाम मोर्चा सरकार का शासन था.

राज्य के पूर्व सीएम मुख्यमंत्री और माकपा नेता माणिक सरकार ने भी बर्मन के सुर में सुर मिलाते हुए राजनीतिक हिंसा बढ़ने के आरोप लगाए और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की जरूरत पर बल दिया. हालांकि, गठबंधन को लेकर बातचीत पर उनका यही कहना था, अभी इस पर ‘कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा, और इसमें कयासबाजी ज्यादा’ है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यह अच्छी बात है कि हर कोई भाजपा को हराना चाहता है, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि सभी राजनीतिक दलों की अपनी विचारधारा, अपनी चुनावी रणनीति होती है. गठबंधन को लेकर उन्हें काफी कुछ सोचना होगा लेकिन इस स्तर पर इस बारे में कोई भी सार्वजनिक दावा करना थोड़ा जल्दबाजी होगा.’

उन्होंने कहा कि वाम मोर्चा ने लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करने वाले सभी राजनीतिक दलों और त्रिपुरा के मतदाताओं से राज्य में मौजूदा स्थिति का विरोध करने की आवश्यकता पर एक अपील जारी करने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा, ‘मैं दिल्ली में हूं लेकिन मुझे पता है कि मौजूदा स्थिति के विरोध की जरूरत पर एक अपील की जा रही है—संभवत: पहले ही जारी की जा चुकी है. राज्य में राजनीतिक दलों के खिलाफ जिस तरह की हिंसा की गई है, पुलिस के एक वर्ग ने माताओं-बहनों के साथ बर्बरता की है, उसे बदलना होगा.’ साथ ही जोड़ा कि चुनाव नजदीक आने के मद्देनजर राज्य में राजनीतिक प्रभाव से मुक्त कानून-व्यवस्था कायम करने की जरूरत है.

माणिक सरकार ने कहा, ‘हम चुनाव आयोग से भी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की अपील कर रहे हैं.’

माकपा के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी ने पुष्टि की कि एक अपील जारी की गई है, लेकिन साथ ही स्पष्ट किया कि यह ‘सिर्फ त्रिपुरा के लोगों से राज्य में माहौल के बारे में खुद को जागरूक करने की अपील थी.’

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम देखेंगे कि प्रतिक्रिया कैसी रहती है और इसके बाद ही तय करेंगे कि आगे क्या करना है.’

भाजपा ने 2018 का चुनाव इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) के साथ गठबंधन में लड़ा था, जो एक ऐसा संगठन है जिसने बाद में बड़े पैमाने पर मोथा की तरफ रुख कर लिया और इस तरह राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में इसका प्रभाव काफी घट गया है.

पिछले साल, मोथा के नेतृत्व वाले गठबंधन ने त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (टीटीएएडीसी) चुनावों में जीत हासिल की थी, जिसमें त्रिपुरा का 70 प्रतिशत भौगोलिक हिस्सा शामिल है. टीटीएएडीसी शासित क्षेत्रों में 19 आदिवासी समुदायों की आबादी बसी हुई है. और इन क्षेत्रों में, मुख्यत: आदिवासी आबादी के कारण कई संवैधानिक सुरक्षा उपाय लागू हैं.


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‘299 वादों में से कोई भी पूरा नहीं किया’

बर्मन ने राज्य में ‘आतंक और राजनीतिक हिंसा का एक दौर शुरू करने’ के लिए भाजपा पर निशाना साधा और साथ ही आरोप लगाया कि पार्टी राज्य के लोगों से किए गए अपने वादे पूरे करने में नाकाम रही है.

उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘त्रिपुरा में राजनीतिक हिंसा अपने चरम पर है. विपक्षी दल राज्य में कोई राजनीतिक कार्यक्रम भी आयोजित नहीं कर सकते हैं. उनके समर्थकों की संपत्तियों, वाहनों और घरों में आग लगा दी जाती है (और) राजनीतिक दलों के कार्यालयों में तोड़फोड़ होती है. मुझे भी दो बार हमले के बाद अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है.’

उन्होंने कहा, ‘भाजपा लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने में बुरी तरह नाकाम रही है.’

उन्होंने कहा, ‘2018 के चुनावी घोषणापत्र में किए गए 299 वादों में से कोई भी पूरा नहीं किया गया है. सारे काम राज्य के बाहर के कुछ गिने-चुने कांट्रैक्टर्स को दिए गए हैं.’ साथ ही जोड़ा कि अगले साल के शुरू में चुनाव से पहले भाजपा पार्टी में ‘बड़े पैमाने पर भगदड़’ देखेगी.

उन्होंने कहा, ‘चुनावों को पूरी तरह मजाक बना देना ही उनके लिए एकमात्र उम्मीद है.’

अपनी पार्टी के खिलाफ बर्मन के आरोपों पर टीएमसी की राज्यसभा सदस्य सुष्मिता देव ने कहा कि गोवा में उनका जो अनुभव रहा है, उसके मुताबिक वो तो कांग्रेस है जो चुनाव जीतने के बाद ‘भाजपा को मजबूत करती है.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे विचार से यह उस पार्टी से कहीं अधिक खतरनाक है जो लोकतांत्रिक रूप से वोट मांग रही है. जहां तक बात सुदीप बर्मन की है तो वे खुद भाजपा से आए हैं और फिर उसमें लौट भी सकते हैं. जनता के मन में वास्तव में इसे लिए बहुत सारी शंकाएं हैं.’

दिप्रिंट से ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में टीएमसी के एक अन्य नेता ने कहा कि कांग्रेस अन्य पार्टियों की आलोचना करने की स्थिति में नहीं है.

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस ने अन्य दलों के गोवा में चुनाव लड़ने को लेकर आपत्ति जताई. क्या हुआ? कांग्रेस ने मार्च 2022 में गोवा की 60 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी. (लेकिन) कुछ महीने पहले ही कांग्रेस के आठ विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे. अब वे 60 में से 3 हैं. क्या होगा अगर लोग यह कहें कि उन्हें (कांग्रेस को) भाजपा की तरफ से वित्त पोषित किया जाता है?’

(अनुवादः रावी द्विवेदी | संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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