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Friday, 15 November, 2024
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अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा कोविड और पोलियो के खिलाफ वैश्विक लड़ाई के लिए क्यों है बुरी खबर

अफगानिस्तान दुनिया के सिर्फ उन दो मुल्कों में से एक है जहां पोलियो अभी भी मौजूद है. साथ ही, यहां की केवल 0.6% वयस्क आबादी को कोविड के पूरे टीके लगे हैं जबकि वैश्विक औसत 23.6% है.

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नई दिल्ली: कोविड महामारी के बीच अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से न सिर्फ सार्स-सीओवी-2 वायरस को हराने के वैश्विक प्रयासों, बल्कि एक और वायरस- पोलियोवायरस के उन्मूलन की कोशिशों को भी झटका लगा है.

अफगानिस्तान दुनिया के सिर्फ उन दो मुल्कों में से एक है जहां पोलियो अभी मौजूद है. 2018 के बाद से टीकाकरण प्रयासों में मुश्किलें पेश आई हैं क्योंकि जिन इलाकों में तालिबान मज़बूत था, वहां उन्होंने घर-घर जाकर टीका लगाने पर पाबंदी लगा दी थी.

कोविड-19 लॉकडाउन ने ये चुनौतियां और बढ़ा दी और अब देश पर हुए इस कब्जे से पोलियो उन्मूलन के मामले में ये कई दशक पीछे जा सकता है.

ग्लोबल पोलियो उन्मूलन पहल (जीपीईआई) के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 2020 में इस देश में ‘वाइल्ड’ पोलियो के 56 मामले सामने आए जबकि 2021 में केवल एक मामला दर्ज हुआ. पोलियो संक्रमण या तो वाइल्ड वायरस से हो सकता है- जो आबादी में घूमता रहता है या फिर वैक्सीन से हो सकता है. किसी देश को पोलियो मुक्त तब घोषित किया जाता है, जब वहां तीन साल तक वाइल्ड वायरस का कोई मामला दर्ज नहीं होता.

अफगानिस्तान के नेशनल इमरजेंसी एक्शन प्लान (एनईएपी) फॉर पोलियो इरैडिकेशन 2021 में इस बात को माना गया कि खासकर सरकार-विरोधी तत्वों (एजीई) के नियंत्रण वाले इलाकों में पोलियो टीकाकरण के प्रयासों में बहुत चुनौतियां हैं.

दस्तावेज़ में कहा गया, ‘ये याद रखना बहुत जरूरी है कि 2018 में टीकाकरण पर एएजीई की पाबंदी ज़्यादातर दक्षिणी आंचल (सक्रिय पोलियो संक्रमण वाले) के भारी जोखिम वाले इलाकों तक सीमित थी. 2019 के बाद से ये पाबंदी धीरे-धीरे फैल रही है, शुरू में दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र में और अप्रैल 2019 में सब जगह. अप्रैल से जून 2019 तक (पाबंदी के कारण) टीकाकरण अभियान के पूरी तरह रुक जाने के बाद अगस्त 2019 और उसके बाद से सुलभ क्षेत्रों में टीकाकरण आहिस्ता आहिस्ता फिर से शुरू हुआ’.

सितंबर 2019 के अंत की ओर कुछ इलाकों से घर-घर जाकर टीकाकरण अभियान पर लगी पाबंदी आंशिक रूप से हटा ली गई.

सरकारी विश्लेषण में आगे कहा गया, ‘घर-घर जाने के अभियानों पर एजीई इलाकों में पाबंदी बरकरार रही और केवल स्वास्थ्य सुविधाओं पर टीकाकरण की इजाजत थी. 2019 की आखिरी तिमाही (एक देशव्यापी और दो उप-राष्ट्रीय चरणों) के दौरान लागू तीन अभियान, चल रहे डब्लूपीवी-1 संक्रमण के बीच, दक्षिण क्षेत्र के इलाकों तक पहुंच ही नहीं पाए. प्रशासनिक आंकड़ों के अनुसार 2019 में स्वास्थ्य सुविधा-आधारित अभियान, लक्षित बच्चों के ज़्यादा से ज़्यादा केवल 20 प्रतिशत तक पहुंच पाए (दक्षिण आंचल के कुछ इलाकों में ये आंकड़ा सबसे कम 3 प्रतिशत था)’.

भारत सरकार के पूर्व स्वास्थ्य सचिव और पार्टनरशिप फॉर मैटर्नल नियोनेटल एंड चाइल्ड हेल्थ (पीएमएनसीएच) के पूर्व सह-अध्यक्ष सीके मिश्रा ने कहा, ‘बहुत जरूरी है कि दुनिया बच्चों के स्वास्थ्य की अहमियत को समझे और पोलियो उन्मूलन की दिशा में जो प्रयास हुए हैं उन्हें बनाए रखा जाए. अफगानिस्तान उन देशों में से है जो अभी भी पोलियो से जूझ रहा है’.


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पोलियो कार्यक्रम के बारे में लंबे समय से कायम आशंकाएं

इस साल जून में अफगानिस्तान के पूर्वी प्रांत नांगरहार में एक संदिग्ध तालिबानी हमले में अज्ञात बंदूक धारकों ने पोलियो टीका लगाने वालों की गोली मारकर हत्या कर दी. ये घटना पोलियो टीकाकरण के चार-दिवसीय राष्ट्रीय अभियान के दूसरे दिन घटी.

अप्रैल में अज्ञात बंदूकधारियों ने ही जलालाबाद में तीन महिला फ्रंटलाइन हेल्थ वर्कर्स की हत्या कर दी. इस साल जनवरी में अपने एक लेख में द लांसेट ने अनुमान लगाया कि 2018 के बाद से डर और असुरक्षा के चलते करीब 10 लाख अफगानी बच्चों के पोलियो ड्रॉप्स छूट गए. एनईएपी 2021 में अनुमान लगाया गया कि ‘देश के सभी क्षेत्रों में तीस लाख से ज़्यादा बच्चे ऐसे हैं, जिन तक पहुंचा नहीं जा सकता’.

दुनिया भर के डर को लिखित रूप देते हुए, इस महीने साइंस में छपे एक लेख में कहा गया, ‘अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी और साथ में वहां तालिबान की बढ़ती ताकत, पोलियो उन्मूलन की तीन दशकों से चली आ रही दुनिया भर की कोशिश को खतरे में डाल रही हैं. तालिबान ने पिछले तीन सालों से अपने नियंत्रण वाले इलाकों में घर-घर जाकर पोलियो टीके के अभियान पर रोक लगा रखी है, जिससे करीब 30 लाख बच्चे इस अभियान की पहुंच से बाहर हो गए हैं और पाकिस्तान के बाद अफगानिस्तान दुनिया का दूसरा देश रह गया है जहां वाइल्ड पोलियो वायरस अभी भी मौजूद है’.

महामारी विज्ञानी और येल यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के डायरेक्टर साद बिन उमर ने ट्वीट किया: ‘अफगानिस्तान में हो रहे घटनाक्रम का एक संभावित परिणाम है ग्लोबल पोलियो उन्मूलन की प्रगति को खतरा. 2021 में अफगानिस्तान और पाकिस्तान में वाइल्ड पोलियो वायरस का केवल एक-एक मामला दर्ज हुआ है, ये आखिरी दो देश हैं जहां पोलियो अभी भी मौजूद है. दुनिया के बच्चे इससे बेहतर के हकदार हैं’.

लेकिन संघर्ष ग्रस्त देश में काम करने के डब्ल्यूएचओ के अनुभवों के मद्देनज़र अफगानिस्तान में डब्ल्यूएचओ प्रतिनिधि डॉ लुओ दापेंग ने दिप्रिंट को बताया कि अफगानिस्तान में पोलियो कार्यक्रम असुरक्षा और बढ़ते संघर्ष के बीच बरसों तक चला है और आगे भी चलता रहेगा.

डॉ दापेंग ने कहा, ‘ये कार्यक्रम कभी रुका नहीं है और जैसा कि हमने देखा है, संघर्ष की नेचर के हिसाब से ढल गया है. वो सभी किरदार, एजेंसियां और संगठन जो प्रभावित इलाकों में लोगों को मानवीय सहायता पहुंचाते हैं, इस कार्यक्रम को जारी रखे हुए हैं. तालिबान समेत अफगानिस्तान में कोई भी पोलियो उन्मूलन के खिलाफ नहीं है और अपेक्षा है कि वो प्रोग्राम को समर्थन देंगे. सभी समाधान स्थानीय हैं और जहां भी बच्चे हैं हम वहां पहुंचने की अपनी कोशिशें जारी रखेंगे’.


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कोविड-19 टीकाकरण की दर धीमी

काबुल पर कब्जे के बाद अफगानिस्तान में भीड़ के उन्माद के मंज़र और राष्ट्रपति भवन में तालिबान सदस्यों की तस्वीरों के बीच एक समानता थी- मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का नामो-निशान तक नहीं था. अफगानियों के विचार में ये शायद बहुत दूर की बात थी लेकिन मुल्क में टीकाकरण की दर बेहद कम है- केवल 0.6% लोगों को कोविड के पूरे टीके लगे हैं, जबकि वैश्विक औसत 23.6% है.

पिछले हफ्ते तालिबान ने कथित तौर पर पकतिया प्रांत में कोविड-19 टीकाकरण पर पाबंदी लगा दी.

पिछले महीने ही अफगानिस्तान को जॉनसन एंड जॉनसन कोविड-19 वैक्सीन के 14 लाख डोज़ मिले थे, जो उसे कोविड-19 के लिए ग्लोबल वैक्सीन कंसॉर्टियम कोवैक्स में उसके हिस्से के तौर पर मिले थे. 3 जनवरी 2020 से 16 अगस्त 2021 के बीच देश में कोविड के 152,142 मामले और 7,025 मौतें दर्ज की गईं हैं.

10 अगस्त तक देश में वैक्सीन की 18,09,517 खुराकें दी जा चुकी थीं. जून में देश में एक जहरीली तीसरी लहर देखी गई, जब 17 जून को रोजाना के मामले 2,313 पहुंच गए. नए दैनिक मामलों की ये संख्या अब घटकर 99 पर आ गई है (16 अगस्त तक).

डॉ दापेंग ने कहा, ‘अफगानिस्तान में पिछले कुछ हफ्तों में कोविड मामलों में कमी देखी गई है. पिछले हफ्ते (8-14 अगस्त) उससे पहले सप्ताह के मुकाबले, मामलों में 53 प्रतिशत और मौतों में 45 प्रतिशत गिरावट देखी गई. हालांकि ये एक अच्छी खबर है लेकिन अभी खतरा कहीं से भी टला नहीं है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘संघर्ष से बचकर अफगानियों का आंतरिक विस्थापन और अंतरराष्ट्रीय प्रवास और साथ में कोविड-19 टीकाकरण की धीमी दर तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों के पालन की कमी, कोविड-19 संक्रमण का खतरा बढ़ा सकती हैं और उन लोगों को खासतौर से प्रभावित कर सकती हैं, जो पहले से ही संवेदनशील हैं’.

एक्सपर्ट्स को डर है कि देश में मची खलबली के चलते महामारी के मामलों और मौतों की सूचनाएं तथा टीकाकरण कार्यक्रम, दोनों पर संभावित रूप से बुरा असर पड़ सकता है.

डॉ दापेंग ने कहा, ‘हमारी खास चिंता ये है कि काबुल तथा दूसरे शहरों में हाल ही में आंतरिक रूप से विस्थापित हुए लोगों में कोविड-19 संक्रमण का खतरा हो सकता है, क्योंकि वो अक्सर भीड़ वाले और गंदे हालात में रह रहे हैं, जहां कोई स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं हैं और संक्रमण रोकथाम उपाय भी लागू नहीं किए जाते’.

उन्होंने कहा कि अगर अफगानिस्तान में मामले बढ़ते हैं, तो पड़ोसी मुल्कों पर भी उसका असर पड़ सकता है.

डॉ दापेंग ने आगे कहा, ‘बीमारियां और स्वास्थ्य प्रकोप सीमाओं को नहीं मानते. वहां चल रहे संघर्ष से स्वास्थ्य संकट में जो तेजी आएगी, उसका असर पड़ोसी मुल्कों पर भी पड़ेगा. कोविड-19 ने हमें दिखा दिया है कि जब सेहत की बात आती है, तो किसी एक की जीत तभी होती है, जब सबकी जीत होती है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एकजुट होकर अफगानिस्तान में स्वास्थ्य संकट को काबू करना होगा, ताकि उन लोगों की तकलीफों को कम किया जा सके, जो पहले ही दशकों से चले आ रहे मानवीय संकट से जूझ रहे हैं’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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