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Tuesday, 23 April, 2024
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भाजपा के साथ स्थानीय चुनावों में गठबंधन के खिलाफ क्यों उठ रहे हैं AIADMK में स्वर

अन्नाद्रमुक में कई लोगों को यह लगता है कि भाजपा की 'बाहरी पार्टी" होने की छवि', 'हिंदुत्व का उसका एजेंडा और इसके कारण अल्पसंख्यक समुदायों के समर्थन की कमी के कारण गठबंधन से उल्टे नतीजे मिल रहे है.

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चेन्नई: तमिलनाडु में जल्द ही होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों से ठीक पहले अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) के वरिष्ठ पार्टी नेतृत्व और उसके पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच स्पष्ट रूप से विभाजन दिख रहा है और दोनों ओर से भाजपा के साथ गठबंधन पर अलग-अलग स्वर सुनाई दे रहे हैं.

ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु राज्य चुनाव आयोग को 15 सितंबर से पहले नौ नए जिलों में ग्रामीण स्थानीय निकायों के चुनाव संपन्न कराने का निर्देश दिया है. इसके अलावा शहरी स्थानीय निकाय के चुनाव भी 10 साल के अंतराल के बाद इस साल के अंत से पहले कराए जाएंगे.

चुनावी मौसम के नजदीक आने के साथ ही अन्नाद्रमुक आधिकारिक तौर पर इस गठबंधन के साथ खड़ी दिखती है.

अन्नाद्रमुक के वरिष्ठ नेता और पार्टी प्रवक्ता आर. वतिहलिंगम ने इस महीने की शुरुआत में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा था, ‘एआईएडीएमके-बीजेपी गठबंधन पूरी तरह से बरकरार है और यह आगामी ग्रामीण निकाय चुनावों में संयुक्त रूप से लड़ा जाएगा. हम सभी निर्वाचन क्षेत्रों में अच्छी जीत की उम्मीद करते हैं.’

लेकिन पार्टी में शामिल कई अन्य लोग उनकी इस भावना से सहमत नहीं लगते हैं और उनका यह मानना कि भगवा पार्टी की ‘बाहरी छवि’, ‘हिंदुत्व वाले एजेंडे’, और इसके कारण अल्पसंख्यक समुदायों के समर्थन की कमी की वजह से भाजपा के साथ बने रहना अन्नाद्रमुक के लिए उल्टे नतीजों वाला साबित होगा.

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दिप्रिंट ने इस पार्टी के कई नेताओं से बात की जिनका कहना है कि अन्नाद्रमुक को राज्य विधानसभा के चुनावों के परिणामों से सबक़ सीखना चाहिए और आगामी ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए. उनका इशारा हाल ही में संपन्न राज्य चुनावों की ओर था जिसमें अन्नाद्रमुक द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डी.एम.के.) से हार गई थी और 234 सदस्यीय विधानसभा में डी.एम.के. के 133 की तुलना में इसने केवल 66 सीटें जीतीं थीं.

राज्य चुनावों के लिए अन्नाद्रमुक की संचालन समिति में शामिल पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा, ‘सिर्फ् मैं ही नहीं, बल्कि (पार्टी में) हर कोई इस बात पर जोर दे रहा है कि हम इस गठबंधन के चंगुल से बाहर आएं और भाजपा के बिना चुनाव लड़ें.’

इस नेता ने कहा कि इस बार के राज्य विधानसभा चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ है जब अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों ने अन्नाद्रमुक को वोट नहीं दिया.

इस नेता ने आगे यह भी कहा कि ‘इस बात के भी संकेत मिल रहे हैं कि बीजेपी डीएमके के साथ अपनी पींगे बढ़ा रही है. क्योंकि उन्होंने (राज्य विधानमंडल के) शताब्दी समारोह में भाग लिया था, जिसमें हमारी पार्टी ने हिस्सा नहीं लिया था. एल मुरुगन (तमिलनाडु के पूर्व भाजपा प्रमुख) ने तो यहां तक कहा था कि द्रमुक हमारी दुश्मन नहीं है बल्कि यह केवल एक विपक्षी पार्टी है.’

‘बीजेपी के साथ गठबंधन हमें और पीछे खींचेगा’

सभी असंतुष्ट नेताओं के बयानों बीच एक सामान्य विषय यह है कि भाजपा अन्नाद्रमुक को केवल पीछे हीं खींचती है.

पिछली राज्य सरकार में मंत्री के रूप में शामिल पार्टी के एक दूसरे वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि अन्नाद्रमुक में कोई भी नेता या निचले रैंक का कैडर, भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करना चाहता.

इस पूर्व मंत्री का कहना था, ‘हम पार्टी नेतृत्व यानी ओपीएस और ईपीएस पर दबाव बना रहे हैं, लेकिन आपको उनसे पूछना होगा कि हम अभी भी बीजेपी के साथ गठबंधन में क्यों बने हुए हैं. व्यक्तिगत तौर पर मुझे नहीं पता कि हम अभी भी उनके साथ गठबंधन में क्यों हैं.”

इस गठबंधन के पक्ष में नहीं बोलने वाले कई नेताओं ने इस साल की शुरुआत में राज्य के विधानसभा चुनावों के परिणामों की ओर इशारा किया.

अन्नाद्रमुक के वरिष्ठ नेता सी. पोन्नईयन ने दिप्रिंट को बताया, ‘अगर बीजेपी हमारी गठबंधन सहयोगी नहीं होती, तो हमें चुनाव में दो-तिहाई बहुमत मिल सकता था.’

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता (जो अन्नाद्रमुक में पिछले 50 से भी अधिक सालों से बने हुए हैं) ने कहा कि भाजपा को इस राज्य में नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है क्योंकि इसे तमिल विरोधी माना जाता है और वह केवल धर्म की बात करती है. उनका कहना है, ‘तमिलनाडु में हिंदुत्व कभी काम नहीं कर सकता.’

उन्होंने यह भी कहा कि भाजपा के साथ गठबंधन करना एक बड़ी गलती थी क्योंकि इस वजह से विधानसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक ने ईसाई और मुस्लिम लोगों के वोट गंवा दिए.


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पार्टी के एक अन्य सदस्य ने बताया कि, उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र (जिसे वे राज्य के चुनावों में हार गए थे) से प्राप्त अनुभव के आधार पर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोगों ने भाजपा का समर्थन नहीं किया.

उन्होंने कहा, ‘स्थानीय निकाय चुनावों में हमारे साथ एक फायदा यह है कि अन्नाद्रमुक ने जो भी वायदे किए थे सब पूरे किए हैं और द्रमुक ने अभी भी अपने घोषणापत्र के कई वायदों पर अमल नहीं किया है. जनता को भी अब लगता है कि उनसे झूठे वायदे किए गए हैं. इसलिए हमें वहां एक फायदा है. हालांकि भाजपा के साथ गठबंधन हमारे खिलाफ काम करेगा और हमें और पीछे खींचेगा.’

तमिलनाडु भाजपा के प्रवक्ता नारायणन थिरुपति ने भी कहा कि यह तय करना अभी जल्दबाजी होगी कि स्थानीय निकाय चुनावों के लिए यह गठबंधन जारी रहेगा या नहीं और इस पर कोई भी फ़ैसला चुनाव की घोषणा के बाद ही लिया जाएगा.

इस गठबंधन को जारी रखने के प्रति अन्नाद्रमुक के कई नेताओं के अनिच्छुक होने के सवाल पर तिरुपति ने कहा कि यह फ़ैसला अन्नाद्रमुक में उपयुक्त मंच द्वारा ही लिया जाएगा. उन्होने कहा,’ इस तरह की भावना हर गठबंधन में मौजूद होती है. यह सिर्फ भाजपा या अन्नाद्रमुक बीच हीं नहीं है.’

‘भाजपा हमारे गॉडफादर की तरह है’ – अन्नाद्रमुक में हैं कुछ अपवाद के स्वर भी

अन्नाद्रमुक की प्रवक्ता निर्मला पेरियासामी ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के देहांत के बाद भाजपा के समर्थन के कारण ही उनकी पार्टी सुचारु रूप से शासन कर सकी और इसलिए वह इस गठबंधन का समर्थन कर रही है.

हालांकि उन्होंने यह स्वीकार किया कि इस गठबंधन ने पार्टी की हार में एक कारक के रूप में काम किया लेकिन उन्होने यह भी कहा कि सत्ता विरोधी लहर ने भी एक बड़ी भूमिका निभाई. उन्होंने कहा, ‘भाजपा हमारे गॉडफादर की तरह है.’

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता, रबी बर्नार्ड ने इस ओर इशारा किया कि स्थानीय निकाय चुनाव उम्मीदवार-दर-उम्मीदवार के तौर पड़े लड़े जाते हैं और ये छोटे-छोटे मुद्दों पर अधिक केंद्रित होते हैं. इसलिए, राज्य चुनावों के परिणामों की झलक आगामी स्थानीय निकाय चुनावों के परिणामों में नहीं दिखेगी.

एक अन्य अन्नाद्रमुक नेता ने कहा कि भाजपा के साथ गठबंधन नहीं करने का कोई कारण नहीं है. वे कहते हैं ‘भाजपा कोई तालिबान नहीं है. उसके साथ गठबंधन न करने का कोई कारण नहीं है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

 

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