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Saturday, 20 April, 2024
होमदेश'स्कूल में बहिष्कार, शादी से भी इनकार’- अनुराग कश्यप की फिल्म से बनी छवि से उबर नहीं पा रहा वासेपुर

‘स्कूल में बहिष्कार, शादी से भी इनकार’- अनुराग कश्यप की फिल्म से बनी छवि से उबर नहीं पा रहा वासेपुर

वासेपुर वैसे तो अपनी छवि को लेकर दशकों से कुख्यात ही रहा है. लेकिन 2012 में आई फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ ने इसे एकदम चरम पर पहुंचा दिया और स्थानीय लोगों का कहना है कि यह फिल्म अब भी उनके जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर रही है.

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धनबाद : वासेपुर में रहने वाले 11वीं कक्षा के छात्र फैजान अली का कहना है कि यह बदनाम छवि धनबाद के आस-पास के इलाके में भी उस पर किसी काली छाया से कम नहीं रही. उसने बताया 2018 में जब उसने पास के शहर निरसा स्थित एक स्कूल में दाखिला लिया तो सहपाठियों की तरफ से उसे ‘तुरंत ही बहिष्कृत’ कर दिया गया.

उसने कहा, ‘यह बहुत कष्टदायी था. मैं जहां का रहने वाला हूं, उसकी छवि मेरे लिए बाधा नही होनी चाहिए.’

लगभग 2 लाख की आबादी वाले इलाका वासेपुर अपनी छवि के मामले में दशकों से कुख्यात ही रहा है. लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि 2012 में अनुराग कश्यप की गैंगवार पर आधारित फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर रिलीज होने के साथ यह सब एकदम चरम पर पहुंच गया. दो पार्ट में आई यह फिल्म काल्पनिक तौर पर स्थानीय अपराध को दर्शाती है.

वासेपुर के लोगों का कहना है कि फिल्म उनके क्षेत्र की खराब छवि दिखाती है. जहां कुछ लोगों की राय है कि समय के साथ स्थितियों में कुछ बदलाव हुआ है, वहीं स्थानीय लोगों के एक वर्ग का दावा है कि फिल्म रिलीज होने के एक दशक बाद भी वे इसका खामियाजा भुगत रहे हैं.

उनका कहना है कि यह सही है कि पहले से ही इस इलाके की छवि खराब थी लेकिन फिल्मी ‘मसाले’ ने तो इसे अलग ही स्तर पर पहुंचा दिया.

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न्यूज मीडिया, सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है, हर स्थानीय अपराध को फिल्मी की कहानी के संदर्भ में जोड़कर देखे जाने से वासेपुर की काफी बदनामी होती है.

स्थानीय लोगों के मुताबिक, इलाके की आपराधिक छवि स्कूलों में उनका पीछा नहीं छोड़ती, विवाह प्रस्ताव में भी अड़चन डालती है और यहां तक कि उन्हें बैंक से कर्ज मिलना (बैंकों की तरफ से ऐसे आरोपों से इनकार किया गया) भी दूभर हो जाता है.
हमेशा खुद को अपराध से जुड़ाव रखने वाला समझे जाने से आहत होकर कई परिवारों ने तो इलाके को छोड़कर बाहर जाना ही बेहतर समझा है.

अनुराग कश्यप अपनी ओर से कहते हैं कि यह ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ है कि लोग ऐसा महसूस करते हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि फिल्म बनाने वाली टीम ने कभी ऐसा नहीं सोचा था कि इसका असर इतना ज्यादा व्यापक हो जाएगा, जितना हो गया.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं फिल्म या उसके इतिहास को पलट तो नहीं सकता. मैं केवल माफी मांग सकता हूं और मानता हूं कि इसका काफी असर पड़ा है. फिल्म स्पष्ट तौर पर अतीत की घटनाओं पर आधारित थी और उस पर कोई टिप्पणी किए बिना केवल उस जगह की एक कहानी को बता रही थी.’

‘80% वास्तविक, 20% काल्पनिक’

वासेपुर में एक सब्जी विक्रेता | फोटो: सोनिया अग्रवाल | दिप्रिंट

झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 150 किमी दूर स्थित वासेपुर मुख्यत: दो प्रतिद्वंद्वी गिरोहों– फहीम खान और शब्बीर आलम-के बीच चलने वाली गैंगवार के कारण बदनाम रहा है, जिनका झगड़ा खासकर कबाड़ के कारोबार को लेकर रहा है. फहीम खान जहां जेल में है, वहीं शब्बीर आलम को कथित तौर पर आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी.

गैंग्स ऑफ वासेपुर की कहानी एक आपराधिक पृष्ठभूमि को रेखांकित करती है जिसमें तीन परिवारों के बीच पीढी-दर-पीढ़ी चले आ रहे झगड़े की परिणति नृशंस हत्याओं के तौर पर सामने आती है, वहीं स्थानीय कोयला माफिया के क्रूर तौर-तरीकों को भी इसमें दिखाया गया है. वॉयसओवर की शुरुआत ही इसमें ‘यहां एक से एक ह******** रहते हैं’ से होती है.

इसकी कहानी को लिखा था जीशान कादरी ने, जो 1980 के दशक की शुरुआत में वासेपुर में पैदा हुए थे, जब यह बिहार का हिस्सा था.

फिल्म को इसकी रिलीज के बाद से ही स्थानीय लोगों की कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, तमाम लोगों ने इस मुस्लिम-बहुल क्षेत्र को अपराध के केंद्र के तौर पर चित्रित करने पर सवाल उठाए थे.

इसकी रिलीज के समय द टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘स्थिति नहीं बिगड़े’ इसके लिए पुलिसकर्मियों को उस स्थानीय सिनेमा हॉल के बाहर तैनात किया गया था, जहां फिल्म दिखाई जानी थी.’

कादरी ने इससे पहले स्थानीय निवासियों की तरफ से की जा रही आलोचना के खिलाफ फिल्म का बचाव करते हुए 2012 में न्यूज एजेंसी आईएएनएस को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘फिल्म 80 प्रतिशत वास्तविक और 20 प्रतिशत काल्पनिक है.’
यद्यपि वासेपुर में होने वाले अपराधों के सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हो पाए हैं लेकिन हिंदुस्तान टाइम्स में 2016 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2015 की रिपोर्ट में शामिल 53 प्रमुख शहरों में धनबाद में अपराध दर सबसे कम थी.


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इसमें बताया गया था, ‘एनसीआरबी की रिपोर्ट कहती है कि शहर में प्रति लाख लोगों पर हत्या की दर 2.4 थी जबकि बलात्कार की दर 2.1 थी, जो राष्ट्रीय औसत 3.7 से काफी कम है.’

झारखंड पुलिस की वेबसाइट पर धनबाद जिले के बारे में दर्ज ब्योरे के मुताबिक, 2013 और 2020 के बीच अपराध में वृद्धि नजर आती है, जहां 2013 में 47 ‘सामान्य हत्याएं’ देखी गईं, 2020 में हत्या के 77 मामले सामने आए. इन्हीं सालों में डकैती की घटनाओं की संख्या क्रमशः 13 और 19 रही. भारत की कोयला राजधानी के रूप में चर्चित इस जिले में कुल मिलाकर लगभग 26.8 लाख की आबादी है.

‘संभावित दूल्हे ने ठुकराया’

वासेपुर धनबाद नगर निगम के अंतर्गत वार्ड नंबर 17 में आता है. देशभर के तमाम अन्य शहरों की तरह इस इलाके में भी सड़कों पर खुले नाले और कूड़े के ढेर नजर आते हैं. संकरी-संकरी गलियों में दोनों तरफ फल और सब्जी बेचने वाले अपने ठेले लगाए रहते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ता इरशाद आलम ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि इलाके की 60 फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिम है.
16 वर्षीय इंशाम जहां, जिसका परिवार पिछली तीन पीढ़ियों से वासेपुर में रहता है, ने बताया कि वह ‘जिस जगह परिवार रहती है उसकी वजह से अक्सर ही स्कूल में अलग-थलग पड़ जाती है.’

उसने बताया, ‘मेरे दोस्त अक्सर स्कूल के बाद अपने घरों में ग्रुप स्टडी के लिए मिलते हैं. वे कभी-कभी मुझे भी बुलाते हैं लेकिन मेरे घर आने से मना कर देते हैं. क्योंकि उनके माता-पिता को लगता है कि मेरा घर उनके लिए सुरक्षित जगह पर नहीं है. यही कारण है कि मैं एक्स्ट्राकरिकुलर एक्टिविटी में अक्सर पीछे रह जाती हूं जिसमें ग्रुप स्टडी की जरूरत होती है.’

इलाके की एक अन्य छात्रा सानिया आशिक ने बताया कि एक भावी दूल्हे ने उसकी बहन को सिर्फ इस वजह से ठुकरा दिया कि वो लोग वासेपुर के रहने वाले हैं.

उसने बताया, ‘दो साल पहले मेरी बहन की शादी दूसरे राज्य के एक लड़के के साथ तय हुई थी, लेकिन जैसे ही उन्हें पता चला कि हम वासेपुर में रहते हैं, उनका परिवार आशंकित हो गया. मेरे माता-पिता की तरफ से समझाने की लाख कोशिशें किए जाने के बावजूद लड़के के परिजनों ने शादी से साफ मना कर दिया.’

क्षेत्र के बड़े-बुजुर्गों का कहना है कि शादी के प्रस्ताव ठुकराए जाने की समस्या 2012 में फिल्म रिलीज होने के बाद शुरू हुई थी लेकिन तब से अब तक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है.

नाम न बताने की शर्त पर एक बुजुर्ग निवासी ने कहा, ‘वासेपुर में माफिया हमेशा से सक्रिय रहा है, फिल्म ने तो हमारे इतिहास के एक शर्मनाक पहलू को ही राष्ट्रीय टेलीविजन पर दिखाया है. जो हुआ वह यही कि बहुत सारी अंगुलियां उठीं और दूरियां भी बढ़ीं, क्षेत्र के बाहर रहने वाले हमारे रिश्तेदार हमसे कोई नाता नहीं रखना चाहते थे.’

उन्होंने आरोप लगाया कि वासेपुर अभी भी पूरी तरह सुरक्षित जगह नहीं है. ‘यहां तक कि अब भी यहां होने वाले अपराधों की सार्वजनिक रूप से आलोचना करना मेरे लिए सुरक्षित नहीं है क्योंकि इससे मेरी जान जोखिम में पड़ सकती है.’

एक स्थानीय ट्यूशन टीचर तौफीक सिद्दीकी ने आरोप लगाया कि ‘कोई भी फूड एप और ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म हमारे क्षेत्र में डिलीवरी नहीं करना चाहता है.’ उन्होंने कहा, ‘काफी समझाने के बाद भी वह तभी ऐसा करते हैं, जब ऑर्डर प्रीपेड हो.’

उन्होंने कहा, ‘बात यहां सिर्फ बाहर का खाना खाने की ही नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बहिष्कार से जुड़ा मामला है जो हमारी भावनाएं आहत करता है.’

एक थिएटर आर्टिस्ट इश्तियाक और एक मैकेनिक मोहम्मद अली ने कहा कि बैंक से कर्ज लेना एक और सिरदर्द का काम है.
अली ने कहा, ‘जैसे ही वे देखते हैं कि हमारे आधार कार्ड में वासेपुर का पता दर्ज है, वे हमें कर्ज देने से इनकार कर देते हैं.’
मिंट में 2008 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ मानदंडों के आधार पर क्षेत्रों को काली सूची में डाले जाने का चलन है जिसका बैंक निजी स्तर पर पालन करते हैं. हालांकि बैंक इससे इनकार करते हैं.

आईसीआईसीआई बैंक के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘हम इस बात की पुष्टि करना चाहते हैं कि हालिया दिनों में हमारी तरफ से वासेपुर के लोगों को होम लोन और ऑटो लोन सहित तमाम तरह के कर्ज दिए गए हैं. हम वासेपुर के निवासियों के ऋण आवेदनों पर विशुद्ध रूप से योग्यता के आधार पर विचार करते हैं, जैसी प्रक्रिया हम देशभर में अपनाते हैं.’

स्थानीय निवासियों के आरोपों पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट ने फूड ऐप स्विगी और जोमैटो से भी संपर्क साधा. स्विगी के प्रवक्ता ने जहां दिप्रिंट की तरफ से पूछे गए सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया, जोमैटो के पीआर प्रतिनिधि को भेजे गए ईमेल और फोन कॉल पर कोई जवाब नहीं आया है.


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पहले इसी इलाके में रहने वाली खुशबू जहां का कहना है कि यहां सामने आ रही समस्याओं को देखते हुए ही उनके परिवार ने यह जगह छोड़ने का फैसला किया.

उसने आगे बताया, ‘20 साल तक वासेपुर में रहने के बाद मेरे परिवार ने दो साल पहले वहां से बाहर निकलने का फैसला किया. वासेपुर में रहने से जो अतिरिक्त जांच-पड़ताल झेलनी पड़ती थी, वह निराशाजनक थी. और मेरे माता-पिता नहीं चाहते कि मुझे उस तरह के अनुभव का सामना करना पड़े.’

वासेपुर में स्पेयर व्हीकल के पुर्जे बेचने वाली एक दुकान | फोटो: सोनिया अग्रवाल | दिप्रिंट
वासेपुर में स्पेयर व्हीकल के पुर्जे बेचने वाली एक दुकान | फोटो: सोनिया अग्रवाल | दिप्रिंट

‘मूवी मसाला’

ऊपर उद्धृत सामाजिक कार्यकर्ता असलम ने कहा, ‘धनबाद में जब भी कोई अपराध होता है, भले ही वह वासेपुर से जुड़ा न हो फिर भी मीडिया के नेटवर्क में ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी हेडलाइन ही चलाई जाती हैं. यद्यपि यह क्षेत्र अपनी छवि बदलना चाहता है लेकिन ऐसा करना मुश्किल हो गया है.’

धनबाद के पूर्व महापौर चंद्रशेखर अग्रवाल ने कहा कि गैंग्स ऑफ वासेपुर ने ‘इस क्षेत्र के बारे में आम धारणा को खराब कर दिया है.’ साथ ही जोड़ा कि इसमें ‘एक बड़े बदलाव की जरूरत है.’

उन्होंने कहा, ‘अपने कार्यकाल के दौरान मैं कई महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ने में सक्षम रहा था, लेकिन अब भी यहां बुनियादी ढांचे के विकास में बड़े बदलाव की जरूरत है. वासेपुर तक पहुंचने के रास्ते में कायम अड़चनें दूर करनी होंगी. धनबाद के बाकी हिस्सों के साथ बेहतर कनेक्टिविटी लोगों के बीच की खाई को कम करने में मददगार हो सकती है.’

हालांकि, धनबाद के एक सामाजिक कार्यकर्ता अंकित राजगड़िया का कहना है कि वासेपुर ‘छोटा पाकिस्तान’ की अपनी पिछली छवि से काफी हद तक उबर चुका है.

उन्होंने बताया, ‘बचपन में हमें पड़ोस के इस इलाके में ज्यादा अंदर जाने से रोका जाता था और फिल्म ने तो लोगों को वासेपुर में कदम रखने के प्रति और अधिक सतर्क कर दिया था. हालांकि, पिछले तीन-चार वर्षों में वासेपुर में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने हाथ मिलाया है और क्षेत्र की छवि बदलने की कोशिश में जुटे हैं.’

वासेपुर के मूल निवासी अबू इमरान, जो अभी लातेहार के उपायुक्त और झारखंड के उच्च शिक्षा निदेशक हैं, ने कहा कि क्षेत्र की धारणा हमेशा से ही खराब रही है, लेकिन ‘फिल्मी मसाले ने इसे और बिगाड़कर रख दिया था.’

उन्होंने कहा, ‘क्षेत्र की छवि को बदलने के लिए जरूरी यह है कि लोग अपने अधिकारों को जानें. जब उनके साथ कोई अन्याय हो रहा हो तो उन्हें लड़ना जरूर चाहिए, लेकिन उन्हें संवैधानिक और कानूनी मशीनरी का सहारा लेना चाहिए.’

अनुराग कश्यप का कहना है कि समय के साथ गैंग्स ऑफ वासेपुर का ‘प्रभाव इतना ज्यादा बड़ा हो गया जिसकी मैंने इसे बनाते समय कल्पना भी नहीं की थी, और इसने इस पर अतिरिक्त ध्यान आकृष्ट किया.’

उन्होंने कहा, ‘फिल्म बनाते समय हमने ऐसा सोचा भी नहीं था कि यह सब इतना ज्यादा असर डालने वाला होगा. लेकिन मुझे लगता है कि हम सभी को इस तरह की चीजों से निपटना होगा कि कोई हमारे बारे में कैसी राय रखता है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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