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Sunday, 28 April, 2024
होमदेश2018 का भूमि कानून 2022 के लिए कांग्रेस बनाम भाजपा बनाम उत्तराखंड में भाजपा वाला बड़ा चुनावी मुद्दा बना

2018 का भूमि कानून 2022 के लिए कांग्रेस बनाम भाजपा बनाम उत्तराखंड में भाजपा वाला बड़ा चुनावी मुद्दा बना

भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की तरफ से लाए गए विवादास्पद कानून ने गैर-अधिवासियों के औद्योगिक उपयोग के लिए स्थानीय कृषि भूमि खरीदने पर लगी रोक हटा दी थी.

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देहरादून: उत्तराखंड में बाहरी लोगों को स्थानीय कृषि भूमि खरीदने के लिए मिली छूट 2022 के विधानसभा चुनावों में एक प्रमुख मुद्दा बनकर उभरी है.

कांग्रेस कह रही है कि तत्कालीन त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार की तरफ से पेश किए गए 2018 के विवादास्पद भूमि कानून, जिसने गैर-अधिवासियों के औद्योगिक उपयोग के लिए स्थानीय कृषि भूमि खरीदने पर लगी रोक हटा दी, को रद्द करने का वादा उसके घोषणापत्र में शामिल होगा.

इस बीच, भाजपा में इस मुद्दे पर अलग-अलग सुर नजर आ रहे हैं. रावत जहां अपने फैसले का बचाव करना जारी रखते हुए कहते हैं कि यह कदम पहाड़ी राज्य में निवेश को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया था, पार्टी के एक प्रवक्ता ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि मौजूदा पुष्कर सिंह धामी सरकार ‘भूमि कानून के मुद्दे पर विपक्ष को चुप कराने के लिए उपयुक्त कदम उठाएगी.’
माना जाता है कि औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कृषि भूमि खरीदने के बाबत लागू 12 एकड़ की सीमा खत्म करने के रावत के फैसले पर जमीनी स्तर पर काफी नाराजगी है.

उनकी सरकार ने उत्तराखंड संशोधन अधिनियम, 2018 पेश करके उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950 (उत्तराखंड को 2000 में उत्तर प्रदेश से पृथक करके नया राज्य बनाया गया था) में दो नए खंड—143 (ए) और 153 (2)—जोड़े थे.

इन धाराओं के तहत किसी भी फर्म, समूह या व्यक्ति को अधिनियम में निर्दिष्ट चुनिंदा गैर-कृषि क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयां लगाने के लिए राज्य में कृषि भूमि खरीदने की अनुमति दी गई है.

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2008 में बीसी खंडूरी के नेतृत्व वाली तत्कालीन भाजपा सरकार की तरफ से भूमि-खरीद पर प्रतिबंध लगाया गया था.

राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार जय सिंह रावत कहते हैं कि भूमि कानून का मुद्दा यहां के लोगों के लिए भावनात्मक हैं और सीधे तौर पर उनसे जुड़ा हुआ है, यह इस बात से ही जाहिर है कि 2018 के संशोधन के विरोध में एक नए भूमि कानून के लिए मांग तेज हुई जिसमें कहा गया कि इस हिमालयी राज्य में बाहर के लोगों के लिए कृषि भूमि खरीदना सीमित हो या इस पर रोक लगाई जाए.

उन्होंने कहा, ‘इसने विपक्ष को निश्चित तौर पर एक मुद्दा दे दिया है. कांग्रेस इस मुद्दे को अपने राजनीतिक एजेंडे में रखने की पूरी कोशिश कर रही है, क्योंकि इसका सीधा संबंध स्थानीय लोगों और उनकी भावनाओं से है.

एक ज्वलंत मुद्दा

राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने कहा है कि अगर वह सत्ता में आई तो वह उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम, 1950) संशोधन अधिनियम, 2018 को रद्द कर देगी.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि भूमि खरीद नीति में ढील उत्तराखंड के लोगों और उनकी कृषि भूमि के लिए नुकसानदेह है.

पार्टी ने हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 की तर्ज पर एक नया कानून बनाने का वादा भी किया है, जिसमें कृषि क्षेत्र ने नहीं जुड़े लोगों के भूमि खरीदने पर कुछ पाबंदियां हैं.

अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि गैर-अधिवासियों को राज्य में जमीन खरीदने से रोकने के लिए उत्तराखंड को हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर ही एक विशेष भूमि कानून की जरूरत है.
उन्होंने कहा, ‘कानून हिमाचल प्रदेश काश्तकारी और भूमि सुधार अधिनियम, 1972 की तरह तो होगा लेकिन इसे उत्तराखंड के लोगों की जरूरतों के अनुरूप बनाया जाएगा. बाहरियों के भूमि खरीदने पर प्रतिबंध के अलावा, नया कानून राज्य में जल संसाधनों के अलावा कृषि से जुड़े अन्य पहलुओं को भी ध्यान में रखकर बनाया जाएगा.’

उन्होंने कहा, ‘अगर 2022 में हम सत्ता में आए तो उत्तराखंड की मौजूदा भाजपा सरकार की तरफ से बनाए गए नियमों-कानूनों को बदल देंगे. इस कानून ने बड़ी संख्या में बाहरी लोगों के उत्तराखंड में असीमित जमीन खरीदने—पहले 12 एकड़ से ज्यादा न खरीद पाने की सीमा लागू थी—का रास्ता रास्ता खोल दिया है.’

उन्होंने कहा, ‘वे कहते हैं कि इससे राज्य में निवेश आएगा, लेकिन राज्य की औद्योगिक नीति के तहत 12 एकड़ भूमि खरीदने की सीमा किसी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए अच्छी-खासी थी.’

उन्होंने कहा, ‘यदि मौजूदा सरकार समय पर अपनी गलती को सुधारने में नाकाम रही तो नया भूमि कानून हर पहलू से एक बड़ा चुनावी मुद्दा होगा.’

राज्य कांग्रेस महासचिव राजेंद्र शाह ने कहा कि पार्टी ‘स्थानीय लोगों के हित में एक नया भूमि कानून बनाने और राज्य की कृषि भूमि को बचाने के वादे को अपने चुनावी घोषणापत्र में एक प्रमुख मुद्दे के तौर पर शामिल करेगी.’

कांग्रेस विधायक मनोज रावत, जो विधानसभा में 2018 के कानून के खिलाफ आवाज उठाने वाले पहले विधायक हैं, ने कहा कि राज्य सरकार को ‘औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि की खरीद पर पाबंदी हटाने के पीछे अपनी मजबूरी का खुलासा करना चाहिए.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हिमाचल प्रदेश काश्तकारी अधिनियम के समान एक नया भूमि कानून लागू करना अब एकमात्र समाधान है. हम लोगों के पास जाएंगे और भाजपा सरकार और उसकी तरफ से उनके साथ किए गए विश्वासघात को उजागर करेंगे.’

‘अभी चुनाव तक समय है’

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 2018 के कानून का बचाव करते हुए कहा कि चार क्षेत्रों में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए प्रतिबंध हटाए गए थे.

उन्होंने कहा, ‘इसका सकारात्मक असर पड़ा और 2018 में हमारे पहले निवेश के बाद से राज्य में 35,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है. यदि हम उद्योगों के लिए भूमि उपलब्ध नहीं कराते हैं तो आप निवेश की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? विपक्ष बेवजह विवाद पैदा करने और जनता की भावनाओं से खिलवाड़ की कोशिश कर रहा है’

हालांकि, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता मनबीर सिंह चौहान ने कहा है कि मुख्यमंत्री धामी पहले ही उत्तराखंड के लोगों के हित में इस गलती में सुधार की इच्छा जता चुके हैं और उस दिशा में प्रयास जारी हैं.

उन्होंने आगे जोड़ा, ‘अभी चुनाव में समय है. अगर जरूरत पड़ी तो सरकार समय रहते नया कानून बना सकती है और तब विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं रहेगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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