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Friday, 22 November, 2024
होमहेल्थCovid के लिए मोलनपिरविरि को मंजूरी के बाद भी कुछ ही डॉक्टर दे रहे खाने की सलाह, करना चाहते हैं इंतजार

Covid के लिए मोलनपिरविरि को मंजूरी के बाद भी कुछ ही डॉक्टर दे रहे खाने की सलाह, करना चाहते हैं इंतजार

डॉक्टरों का कहना है कि मोलनुपिरवीर भले ही लोगों को अस्पतालों में भर्ती होने से बचने में मदद कर सकता है, लेकिन इसके द्वारा वायरस में म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) की क्षमता के साथ-साथ इसकी निर्धारित खुराक के बारे में भी उनकी कई सारी चिंताएं हैं.

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नई दिल्ली: सौंदर्य प्रसाधन, फार्मास्यूटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों के लिए भारत की नियामक संस्था, केंद्रीय औषधि और मानक नियंत्रण संगठन (सेंट्रल ड्रग्स स्टैण्डर्ड कण्ट्रोल आर्गेनाईजेशन-सीडीएससीओ), द्वारा एंटीवायरल दवा मोलनपिरविरि को आपात स्थिति में कोविड -19 रोगियों पर सीमित रूप से उपयोग के लिए मंजूरी मिले हुए अब एक सप्ताह से ज्यादा का समय हो गया है. मगर पिछले दो वर्षों में नई- नई दवाओं को अपनाने में जल्दबाजी करने की वजह से कुछ कड़वे सबक सीखने के बाद भारतीय डॉक्टर अभी भी इसके उपयोग में कोताही बरत रहे हैं.

इसके बारे में कई अन्य चिंताएं भी हैं – जिनमें इसके द्वारा सार्स-कोव-2 वायरस के आनुवंशिक कोड में उत्परिवर्तन पैदा करने की क्षमता भी शामिल है. इस वजह से मानव डीएनए पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में भी कुछ आशंकाएं पैदा हो गई हैं. इसकी खुराक को लेकर भी डॉक्टरों ने चिंता जताई है क्योंकि पांच दिनों की अवधि में एक मरीज को इसके 40 कैप्सूल खाने की जरूरत होती है.

क्लिनिकल मैनेजरियल ग्रुप, कोविड सेंटर, एम्स के अध्यक्ष डॉ अंजन त्रिखा ने कहा, ‘यह अभी तक (हमारे यहां) आया भी नहीं है. मैं मोलनपिरविरि के बारे में ज्यादा बात नहीं कर सकता क्योंकि मैंने अभी तक एक भी मरीज पर इसका इस्तेमाल नहीं किया है. इसके कई सारे गुण-दोष हैं, संयोजी ऊतक (कनेक्टिंग टिश्यू) पर इसके प्रभाव को लेकर कई चिंताएं हैं.‘

उन्होंने कहा, ‘यह जानवरों में नुक़सानदेह प्रभाव (मालिग्नन्सी) पैदा करने के लिए भी जाना जाता है. और फिर यह भी देखना होगा कि किसी रोगी को इसके कितने सारे कैप्सूल चाहिए. अभी तो यह काफी ज्यादा लगता है. यह अभी तक कोविड प्रबंधन के प्रोटोकॉल का भी हिस्सा नहीं बना है. वैसे तो एंटीबॉडी भी इसमें (प्रोटोकॉल में) शामिल नहीं हैं, लेकिन अभी भी निजी क्षेत्र में इसका बहुत अधिक कीमत के साथ उपयोग किया जा रहा है. प्रोटोकॉल के अनुसार काम करना ही सबसे अच्छा है.’

अमेरिकी औषधि नियामक, यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफ़दीए) के अनुसार, मोलनपिरविरि ‘एक ऐसी दवा है जो सार्स-कोव-2 वायरस के आनुवंशिक कोड में त्रुटियां उत्पन्न करने का काम करती है, जो वायरस को अपनी और अधिक प्रतिकृतियां बनाने से रोकता है. दवा के परीक्षण के परिणाम पीयर-रिव्यू (सहकर्मियों द्वारा की गई समीक्षा) वाली पत्रिका में भी प्रकाशित किए गए हैं.

मोलनपिरविरि प्रोटोकॉल के अनुसार रोगियों को पांच दिनों की अवधि तक हर 12 घंटे में 200 मिलीग्राम के चार कैप्सूल लेने की आवश्यकता होती है, जिससे इसकी पूरी खुराक 40 गोलियों की बन जाती है. इस दवा के पूरे कोर्स (खुराक) की कीमत लगभग 3,000 रुपये है.

अमेरिका, ब्रिटेन, फिलीपींस, डेनमार्क आदि देशों में इस दवा के उपयोग को मंजूरी दे दी गई है, जबकि कई अन्य देशों ने इसके प्रति अपनी रुचि व्यक्त की है.

स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि नैदानिक प्रबंधन दिशानिर्देशों (क्लिनिकल मैनेजमेंट गाइडलाइन्स) में मोलनपिरविरि को शामिल करने के बारे में ‘सारे सबूत को देखने के बाद, उचित समय पर’ फैसला लिया जाएगा.


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निर्माताओं ने शुरू में अस्पताल में भर्ती होने से मामलों में 50% की गिरावट का वादा किया था

मोलनपिरविरि की मूल निर्माता और अमेरिकी दवा कंपनी मर्क ने शुरू में इसके प्रयोग द्वारा अस्पताल में भर्ती होने या मौत की संभावना वाले मरीजों की संख्या में 50 फीसदी की कमी होने का दावा किया था. हालांकि, व्यापक परीक्षणों के बाद अस्पताल में भर्ती होने में कमी से सम्बंधित दावों को अब संशोधित कर 30 प्रतिशत कर दिया गया है.

पिछले महीने नियामकीय अनुमति मिलने के बाद अब इस दवा का निर्माण भारत में भी किया जा रहा है. स्वास्थ्य मंत्री डॉ मनसुख मंडाविया ने इस बारे में 28 दिसंबर को ट्वीट किया था: ‘एंटीवायरल दवा मोलनपिरविरि अब 13 कंपनियों द्वारा हमारे देश में हीं निर्मित की जाएगी…’

‘मोलनपिरविरि, एक एंटीवायरल दवा, अब देश में 13 कंपनियों द्वारा कोविड -19 के वयस्क रोगियो, जिनकी बीमारी के बढ़ने का ज्यादा खतरा है, के इलाज के लिए आपातकालीन स्थिति में सीमित उपयोग के लिए निर्मित की जाएगी.’

हालांकि कोविड के मामलों की संख्या अब बढ़ने लगी है, लेकिन गंभीर मामले ज्यादा संख्या में सामने नहीं आ रहे हैं, जिसके कारण डॉक्टर इस एंटीवायरल दवा को अपनाने के प्रति धीमा रवैया अपना रहे हैं.

मोलनपिरविरि का उपयोग गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ 18 वर्ष से कम उम्र के लोगों में उपयोग के लिए प्रतिबंधित है, क्योंकि – यूएस एफडीए के अनुसार – यह हड्डियों और उपास्थि (कार्टिलेज) के विकास को प्रभावित कर सकता है.

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, दिल्ली के मेडिसिन विभाग में सलाहकार चिकित्सक डॉ एस. चटर्जी ने बताया, ‘कोविड का इलाज कर रहे बड़े केंद्रों में से एक होने बावजूद मैंने अब तक केवल एक रोगी – मधुमेह और हृदय की शल्य चिकित्सा (कार्डियक सर्जरी) का इतिहास वाले एक वरिष्ठ नागरिक जिन्हें तीसरे दिन भी बुखार बना रहा था – में हीं इसका उपयोग किया है. सच कहूं तो मैं इस दवा के इस्तेमाल को लेकर बहुत सख्त हूं. इसे म्यूटेजेनिक (उत्परिवर्तजनक) के रूप में भी जाना जाता है, इसलिए मैं इसे प्रजनन क्षमता वाले आयु वर्ग के किसी भी मरीज पर इसका उपयोग नहीं करूंगा.’

उन्होंने कहा, ‘हमें यह समझने की जरूरत है कि अभी तक हम जो मामले देख रहे हैं, वे काफी हल्के क़िस्म के हैं. तीसरे दिन तक तो वे बिना किसी दवा के ही लगभग सामान्य हो रहे हैं. हमने देखा है कि दूसरी लहर के दौरान क्या कुछ हुआ था, जब परिवार के दबाव आदि के कारण बहुत सारे स्टेरॉयड या रेमडेसिविर का इस्तेमाल किया गया था, और हमने इसकी भारी कीमत चुकाई थी. ऐसी स्थिति से बचने में ही सबकी भलाई है.’

दूसरी लहर के दौरान, कई अन्य कारकों के साथ-साथ स्टेरॉयड के अत्यधिक प्रयोग को म्यूकोर्मिकोसिस या ब्लैक फंगस के मामलों की वृद्धि में योगदान देने वाला माना जाता है.

‘जल्दी इस्तेमाल किये जाने पर लोगों को अस्पताल से बाहर रखने में मदद मिल सकती है’

इस दवा के पूरे कोर्स की कीमत लगभग 3,000 रुपये है. लेकिन उम्मीद है कि जब सभी कंपनियों द्वारा किया जा रहा उत्पादन उपलब्ध हो जाएगा, तो इसकी लागत में कमी आ सकती है.

यही कारण है कि दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के एमेरिटस कंसल्टेंट डॉ एसपी ब्योत्रा ने कहा कि मोलनपिरविरि का उपयोग भारत के मामले में ‘सार्थक’ साबित हो सकता है.

वे कहते हैं, ‘इसे पहले भी इबोला जैसी विभिन्न वायरल बीमारियों के लिए आजमाया चुका था, लेकिन भारत में यह अभी-अभी आया है. यह हल्के से मध्यम तीव्रता वाले मामलों में उपयोग के लिए उपयुक्त है और काफी सस्ता भी है. इसलिए, मुझे लगता है कि यह हमारे लिए काफी सार्थक साबित हो सकता है. यह हल्के से मध्यम मामलों के लिए है, इसलिए संभावना है कि यदि हम इसे जल्दी (बीमारी की शुरुआत में) इस्तेमाल करते हैं तो हम लोगों को अस्पताल में भर्ती होने से रोक सकते हैं.

पिछले साल कोविड की दूसरी लहर के दौरान भारी मात्रा में लोगों की मौत के पीछे के कारणों में से एक देश के कई हिस्सों में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे का चरमरा जाना था. वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोनावायरस का ओमीक्रॉन वैरिएंट इसके डेल्टा संस्करण – जो मुख्य रूप से दूसरी लहर का कारण बना था – की तुलना में बहुत अधिक संक्रामक है. ऐसे में यह उम्मीद है कि यह नई दवा उस स्थिति को दोहराए जाने से बचने में मदद कर सकती है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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