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Monday, 7 October, 2024
होमदेश‘जमीन विवाद और पुरानी रंजिश', बिहार के वैशाली में सैनिक के पिता की गिरफ्तारी क्या कहती है

‘जमीन विवाद और पुरानी रंजिश’, बिहार के वैशाली में सैनिक के पिता की गिरफ्तारी क्या कहती है

एफआईआर में कहा गया था कि जिस जमीन पर जवान के स्मारक का निर्माण किया जा रहा है उसपर किसी भी निर्माण पर रोक है. दिप्रिंट के पास एफआईआर की कॉपी उपलब्ध है.

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नई दिल्ली: पिछले दिनों 2020 में गलवान घाटी में जान गंवाने वाले सैनिक जय किशोर सिंह का स्टैचू स्थापित किए जाने का विवाद इतना बढ़ा कि पिता राज कपूर सिंह को बिहार पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. हालांकि, मामले ने तूल पकड़ा तो राज कपूर सिंह को जमानत भी मिल गई. उन्हें हाजीपुर व्यवहार न्यायालय के एडीजी कोर्ट ने 10-10 हजार के दो मुचलके पर जमानत दे दी.

कोर्ट ने कहा कि जवान के पिता के खिलाफ पुलिस कोई ठोस सबूत कोर्ट में पेश नहीं कर पाई जिसके कारण उन्हें जमानत दी गई है.

कुछ दिन पहले गलवान में चीनी झड़प में मारे गए जवान का परिवार और गांव वालों के साथ मिलकर उसकी प्रतिमा उनके गांव में स्थापित की थी. जवान की प्रतिमा जिस जगह पर स्थापित की गई वह बिहार सरकार की जमीन है. उस जमीन के पीछे की जमीन पास के गांव के रहनेवाले हरिनाथ राम की है, जिन्होंने जवान के पिता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी.

जवान के पिता की गिरफ्तारी की गूंज दिल्ली तक पहुंची, मामला रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तक पहुंचा, मामले की संजीदगी को समझते हुए रक्षा मंत्री ने खुद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात भी की. अब राज्य सरकार ने इस मामले में जांच समिती का गठन किया है.

सैनिक के पिता को वैशाली जिला के जंदाहा पुलिस द्वारा बीते शनिवार को गिरफ्तार किया गया था जिसके बाद चारों ओर बवाल मच गया. शहीद के पिता की गिरफ्तारी को लेकर बिहार में विपक्षी दलों ने सदन से लेकर सड़क तक जमकर बवाल काटा.

साथ ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मामले का संज्ञान लेते हुए अधिकारियों की टीम गठित कर मामले की जांच करवा रहे हैं.

एफआईआर में कहा गया था कि जिस जमीन पर जवान के स्मारक का निर्माण किया जा रहा है उसपर किसी भी निर्माण पर रोक है. दिप्रिंट के पास एफआईआर की कॉपी उपलब्ध है. लेकिन जवान के भाई का कहना है कि गांव में कुछ दिन पहले ही पंचायत हुई थी जिसमें यह फैसला लिया गया था कि हरिनाथ राम की जमीन और सरकारी जमीन को मिलाकर जयकिशोर का स्मारक बनाया जाएगा, और शहीद के परिवार द्वारा दूसरी जगह जमीन खरीद कर हरिनाथ राम को दी जाएगी. इसपर दोनों पक्ष तैयार हो गए थे. इस पंचायत में बीडीओ और सीईओ भी मौजूद थे.

इसकी पुष्टि सैनिक का परिवार और हरिनाथ राम, दोनों ने की.

फिर विवाद कैसे बढ़ा

दरअसल कुछ महीने पहले भी दोनों पक्षों के बीच जमीन को लेकर विवाद हो चुका है. जब प्रतिमा सरकारी जमीन में स्थापना की बात चल रही थी तो हरिनाथ राम ने इसका विरोध किया. हरिनाथ का कहना था कि यह जमीन उसने सुंदर सिंह से अपनी बेटी के घर बनाने के लिए खरीदा था. लेकिन स्मारक बन जाने के कारण रास्ता पूरी तरह से बंद हो गया. जिसके बाद विवाद शुरू हुआ. विवाद बढ़ने के बाद ग्रामीण स्तर पर पंचायत हुई जिसमें यह तय हुआ कि हरिनाथ को 8 लाख रुपए की जमीन कहीं खरीद कर दी जाएगी और हरिनाथ की जमीन शहीद के स्मारक बनाने में इस्तेमाल की जाएगी.

पंचायत के बाद छपी खबर | | फोटो: विशेष प्रबंधन

हरिनाथ राम ने दिप्रिंट से कहा, ‘पंच द्वारा किया गया फैसला दोनों पक्षों को मंजूर था. लेकिन बात यह हुई थी कि पहले मुझे जमीन खरीद कर दी जाए फिर जाकर वहां पर स्मारक का निर्माण करवाया जाए. लेकिन उन लोगों ने रातों रात शहीद के स्मारक के चारों ओर दीवार बना दी और प्लास्टर करवाना शुरू कर दिया.’

इसपर शहीद के भाई नंदकिशोर सिंह ने दिप्रिंट से बातचीत के दौरान कहा कि हमनें जमीन खरीद ली है और हम उसे जमीन देने को तैयार भी थे, लेकिन बाद में वह अपने वादे से मुकर गया.

वहीं हरिनाथ राम ने आगे कहा, ‘शहीद का परिवार सिर्फ मुझे तंग करने के लिए ऐसा कर रहा है. वह जमीन बिहार सरकार की है और उसके अलावा भी आस-पास कई जगह बिहार सरकार की जमीन है लेकिन स्मारक का निर्माण वहां नहीं करना है. उससे मेरा रास्ता पूरी तरह बंद हो जाएगा.’

इस बात पर गलवान झड़प में मारे गए जवान के भाई ने कहा, ‘हम चाहते थे कि घर के सामने भाई का स्मारक रहे. समाज के लोग भी यही चाहते थे. सरकारी अधिकारी भी इसकी इजाजत दे चुके थे. हम चाहते थे कि दरवाजे के सामने भाई का स्मारक रहेगा तो देखभाल भी की जा सकेगी. यही बाकी लोग भी चाहते थे.’


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क्या पुरानी रंजिश वजह ?

इसी जमीन को लेकर दोनों परिवार के बीच पहले भी विवाद हो चुका है. साल 2019 में दोनों पक्षों के बीच जमीन को लेकर मारपीट हुई थी जिसके बाद हरिनाथ राम ने जवान के पिता के खिलाफ मामला दर्ज करवाया था. उस दौरान जवान के पिता और भाई को एससी-एसटी एक्ट में जेल भी हुई थी. और जवान के पिता 5 महीने तक जेल में रहे थे.

इस बात को लेकर शहीद के भाई कहते है, ‘हां उस वक्त विवाद हुआ था. और हम मानते भी है. उसकी सजा मेरे पिताजी काट चुके हैं. लेकिन उसको हुए लगभग 5 साल हो गए हैं, इसका मतलब ये थोड़ी है कि अभी भी हमें पुरानी गलतियों की सजा मिले.’

वहीं हरिनाथ राम का कहना है कि जवान के परिवार की नजर उस जमीन पर पहले से थी. वह उसे शुरू से हड़पना चाहते थे. पहले भी विवाद हो चुका है जिसमें मुझे और मेरे परिवार के साथ मारपीट की गई थी. इसको लेकर उन्हें जेल भी हो चुकी है.

प्रशासन का क्या है कहना

जब दिप्रिंट ने जंदाहा थानाध्यक्ष से इस मुद्दे पर बातचीत की तो उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने उन्हें एससी-एसटी एक्ट में गिरफ्तार किया था.

जंदाहा थानाध्यक्ष ने आगे कहा, ‘2019 में मामला चल ही रहा था कि 2020 में गलवान वाली घटना हो गई. उसके कुछ महीने बाद रातों रातों गलत मंशा से उसी जमीन पर जवान का स्मारक भी बना दिया गया. जिसके कारण विवाद हुआ और उस जगह पर धारा 144 और 107 लगा दी गई. इसके बाद जनता दरबार में दोनों पक्षों को बुलाकर मामला को सुलझाने का प्रयास किया गया. लेकिन जनवरी में फिर से वहां निर्माण कार्य शुरू हो गया. जिसपर हरिनाथ राम ने आपत्ति जताई तो उसके साथ अभद्र व्यवहार किया गया, जिसके चलते उन्होंने एफआईआर दर्ज करवाई.’

अनुमंडल दंण्डाधिकारी द्वारा पारित आदेश | फोटो: विशेष प्रबंधन

उन्होंने आगे कहा कि डीएसपी द्वारा इस मामले की जांच की गई जिसमें मामला सच पाया गया, फिर जाकर गिरफ्तारी का आदेश दिया गया.

थानाध्यक्ष ने आगे कहा कि दलित होने के कारण उनकी आवाज नहीं सुनी गई जबकि शहीद का नाम लेकर दूसरे पक्ष ने दिल्ली तक अपनी आवाज बुलंद की. हमलोगों को बदनाम किया गया.

इसपर शहीद के परिवार ने थानाध्यक्ष पर एकपक्षीय होने का आरोप लगाया. शहीद के भाई नवल किशोर सिंह ने कहा, ‘थानाध्यक्ष पूरी तरह से एकपक्षीय होकर काम कर रहे हैं. वह हमें और हमारे परिवार को परेशान करने की कोशिश करते रहते हैं. वह जातिगत तरीके से मामले को देख रहे हैं और हमें पहले भी डरा-धमका चुके हैं.’

वहीं वैशाली के एसएसपी श्री मनीष ने दिप्रिंट से कहा, ‘उनके ऊपक एफआईआर दर्ज करवाई गई थी जिसको लेकर उन्हें गिरफ्तार किया गया था. उनपर एससी-एसटी एक्ट का मामला था, डीएसपी ने जांच कर मामला को सच पाया था.’

क्या पुलिस ने मारपीट की थी ?

सैनिक जय किशोर सिंह के भाई नवल किशोर सिंह ने कहा कि उनके पिता के साथ जंदाहा थानाध्यक्ष ने मारपीट की. उन्हें जबरदस्ती गाड़ी में बैठाया गया. 

उन्होंने कहा, ‘जंदाहा थानाध्यक्ष जातीय बदला ले रहे हैं. हमारे पिताजी को पुलिस ने घर से ले जाते वक्त मारा. उसके बाद थाने में भी उनके साथ बदसलूकी की, उन्हें गंदी-गंदी गालियां दी. उन्हें धमकी दी गई.’

मारपीट का निशान दिखाते राज कपूर सिंह | फोटो: विशेष प्रबंधन

इस आरोप का जवाब देते हुए जंदाहा थानाध्यक्ष ने कहा, ‘यह आरोप सरासर गलत है. कोई भी ज्यादती नहीं की गई. मेरे पास थाने में सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है जिसमें सबकुछ कैद है.’

वहीं पुलिस पर मारपीट के आरोप को लेकर वैशाली के एसपी मनीष ने कहा, ‘इसकी जांच मुख्यालय स्तर की टीम कर रही है. जांच के बाद सबकुछ साफ हो जाएगा.’

इस बात का जवाब देते हुए कि जमीन विवाद में एससी-एसटी एक्ट के तहत कैसे गिरफ्तार किया गया वैशाली एसपी ने कहा कि ‘उनका राईट ऑफ वे’ प्रभावित हो रहा था और उन्होंने प्रताड़ित होने की बात एफआईआर में लिखवाई थी जिसकी जांच डीएसपी ने की थी.

जब दिप्रिंट ने डीएसपी से संपर्क करने की कोशिश की तो उनसे संपर्क नहीं हो पाया. जैसे ही संपर्क स्थापित होगा खबर अपडेट की जाएगी.

जातिगत पीड़ित होने की बात 

दोनों पक्षों ने अपनी अपनी जाति के कारण खुद को पीड़ित बताया. नवल किशोर सिंह ने कहा कि हमलोग सवर्ण समुदाय से आते हैं और कुछ भी हो हमारे ऊपर एससी-एसटी एक्ट का मामला थोप दिया जाता है.

उन्होंने कहा, ‘2019 में भी जो घटना हुई थी वह कोई बहुत बड़ी घटना नहीं थी. दोनों पक्षों की गलती थी और दोनों ओर से मारपीट हुई थी लेकिन हमारे परिवार पर एससी-एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज करवा दिया गया था, जिसके कारण मेरे पिता और भाई को कई महीने तक जेल में रहना पड़ा. लेकिन इस बार तो हमारी कोई गलती भी नहीं थी फिर में मेरे पिता के साथ बदसलूकी की गई.’

नवल किशोर सिंह ने आगे कहा कि जंदाहा थानाध्यक्ष भी उसी समुदाय से आते हैं जिस समुदाय से दूसरे पक्ष आते हैं. इसलिए वह उनकी ओर से काम कर रहे हैं.

इस पर हरिनाथ राम ने कहा, ‘हम दलित समाज से आते है. हमें बार-बार प्रताड़ित किया जाता है. हमारे साथ कई बार मारपीट हो चुकी है.’

हरिनाथ ने जंदाहा थानाध्यक्ष को उनके पक्ष में काम करने के आरोप को गलत बताया.

ग्रामीणों का क्या है कहना

दिप्रिंट ने इस मामले को लेकर ग्रामीणों से भी बातचीत की. एक ग्रामीण ने दिप्रिंट को बताया, ‘शहीद का स्मारक बनें, यह पूरा गांव चाहता था. किसी को कोई आपत्ति नहीं थी. गांव का एक बेटा देश की सेवा में शहीद हो गया, किसी भी गांव के लिए इससे गर्व की और क्या बात हो सकती है.’

उन्होंने कहा कि जिस स्थान पर शहीद का स्मारक बन रहा है, उसको लेकर गांव के अधिकतर लोग राजी थे. वह किसी की निजी जमीन नहीं है. वह हाईस्कूल की जमीन है और परती (खाली पड़ी) है. साथ ही प्रशासन भी राजी था. यहां तक की जिन्होंने आज एफआईआर दर्ज करवाई है वो भी उस वक्त राजी थे.

इस बात की पुष्टि हरिनाथ राम ने भी की गांव में बीडीओ-सीईओ की उपस्थिति में हुई पंचायत में वह स्मारक निर्माण के लिए राजी हो गए थे.

एक और ग्रामीण ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘यह पूरी तरह से हरिनाथ की बदमाशी है. वह पहले तो तैयार हो गया था लेकिन बाद में किसी ने उसका ब्रेनवॉश कर दिया जिसके बाद अचानक से वह पलट गया.’

इस आरोप का जवाब देते हुए हरिनाथ ने कहा, ‘मैंने जमीन घर बनाने के लिए खरीदी थी, लेकिन स्मारक बनाने से पूरा रास्ता ही बंद हो जाता है. जब पंचायत हुई थी तो सबने कहा तो मैं जमीन देने के लिए मान गया था, लेकिन उनकी ओर से किया गया वादा पूरा नहीं किया गया और रातों-रात निर्माण किया गया, जिसपर मैंने आपत्ति जताई तो मेरे साथ गाली-गलौज और बदसलूखी की गई. फिर जाकर मैंने एफआईआर दर्ज करवाई.’


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