पाकिस्तान में ‘मेरा जिस्म, मेरी मर्ज़ी’ जैसे नारों वाली तख्तियों के साथ मार्च करने वाली महिलाएं ‘अच्छी औरतें’ नहीं हैं. और उनकी ये मजाल कि वो नारीवादी चोले में घूम रहे मौलानाओं और स्त्री जाति से नफ़रत करने वालों का विरोध करें.
ऐसा भी नहीं है कि बिहार में पिछले 30 साल में सांप्रदायिक हिंसा की कोई वारदात नहीं हुई, लेकिन बाकी राज्यों में हुई घटनाओं की तुलना में और स्वयं बिहार में इससे पहले होने दंगों की तुलनाओं में ये घटनाएं बेहद मामूली और छोटी नजर आती हैं.
अफ़ग़ान समझौते का मेन्यू पाकिस्तान का है, इसे पकाया अमेरिका ने है, जबकि खर्च उठाया है दोहा ने. तालिबान को सिर्फ स्टार्टर और अफ़ग़ान सरकार को डेज़र्ट मिलेंगे, जबकि मुख्य व्यंजन पाकिस्तान और ट्रंप के चुनाव अभियान के बीच बंटेगा.
हाल के दिल्ली दंगों ने 200 साल पुरानी इस बहस को फिर से खड़ा कर दिया है कि क्या ब्रितानी राज से पहले हिंदू और मुसलमान शांतिपूर्वक रहते थे या सांप्रदायिक हिंसा हमेशा से होती रही है?
हिमंत बिस्वा सरमा बिल्कुल अमित शाह की तरह ही हैं- राजनीति में जोड़-तोड़ करने वाले, कठोर, चतुर, मेहनती और सत्ता पाने के लिए ललक वाले. सरमा कुछ मोदी की तरह भी हैं- जो अपने क्षेत्र में लोकप्रियता को भी पसंद करते हैं.
अयोध्या मामले में भी इन न्यायाधीशों ने अपनी राय में कहा था कि समान्यतया, हिन्दुत्व को जीवन शैली या सोचने के तरीके के रूप में लिया जाता है और इसे धार्मिक हिन्दू कट्टरवाद के समकक्ष नहीं रखा जायेगा और न ही समझा जायेगा.
अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में विराट कोहली ने जो कद हासिल किया था उसके बाद उनके बारे में कोई आलोचनात्मक नहीं होता था. लेकिन अब विराट कोहली की फॉर्म पर बात करनी होगी.
तिरुवनंतपुरम में राजीव चंद्रशेखर का मुकाबला शशि थरूर से है. वे खुद को एक ऐसे राज्य के लिए प्रचारित कर रहे हैं जिसने परंपरागत रूप से भाजपा के प्रति घृणा दिखाई है.