ट्विटर पर निडरता के साथ अपनी बात रखने भर से काम नहीं चलने वाला. विपक्ष को बिहार और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र सीएए-विरोधी आंदोलन से सीख लेनी चाहिए.
अमित शाह की जगह भाजपा अध्यक्ष बनने के आठ महीने बाद नड्डा ने शनिवार को जो नयी टीम बनाई उसमें भी, हार का मुंह देखने वाले पार्टी नेताओं की ही बल्ले-बल्ले रही.
जब वर्तमान वैश्विक महामारी ने लगभग सभी क्षेत्रों और संस्थाओं को अपनी रीति-नीति को बदलने पर विवश कर दिया है तो संसद भी इससे अछूती क्यों रहे ? भारतीय संसद को वे सभी जरूरी बदलाव करने के बारे में सोचना चाहिए जो किसी भी राष्ट्रीय संकट, आपदा या महामारी की स्थिति में उसे अपने जरूरी दायित्वों का निर्वाह करने के लिए सक्षम बना सके.
सरकार इस सिद्धांत पर चलती दिख रही है कि किसानों को अपनी पसंद से किसी को भी, कभी भी अपने उत्पाद बेचने की आज़ादी हो. लेकिन थोक में खरीद करने वाले विशाल फूड प्रोसेसरों या रिटेल चेनों के आगे छोटे किसानों को वास्तव में क्या आज़ादी मिलेगी?
इसे भले ही योगी आदित्यनाथ का मास्टरस्ट्रोक कहें लेकिन इसका केंद्रीय सिद्धांत 'पब्लिक शेमिंग' ही लग रहा है. पब्लिक शेमिंग एक तरह से खतरनाक 'स्वयं घोषित रक्षक' पैदा करती है जो धीरे-धीरे कानूनी प्रक्रिया को दरकिनार कर देते हैं.
हम देख चुके हैं कि चुनावों में आर्थिक सुधारों और वृद्धि आदि की बात करने का क्या हश्र होता है, खासकर तब जब आप दोबारा सत्ता में आने के लिए लड़ रहे हों, इसलिए बिहार के इस अहम चुनाव में कोई ‘पंगा’ न लेना ही मोदी को मुफीद नज़र आएगा.
चीन इस समय वैश्विक आर्थिक ताकतों में से एक है. प्रति व्यक्ति आमदनी में वह संपन्न देशों के बराबर है, वहीं विनिर्माण में सबसे आगे निकल चुका है. वहीं 1990 तक करीब हर मोर्चे पर चीन से आगे रहा भारत अब उससे बहुत पीछे छूट चुका .
किसान विरोधी बिल, मजदूर विरोधी बिल, सीएए-एनआरसी, गिरती जीडीपी, बिहार में बाढ़ की बदहाली, रोजगार के अभाव जैसी परिस्थितियों में बिहार में भाजपा-एनडीए बहुमत पाना भले ही मुश्किल हो, लेकिन चुनाव बाद अन्य दलों के विधायकों को अपनी तरफ खींचना उसके लिए काफी आसान हो सकता है.
भारतीय जनसंघ के प्रमुख दीनदयाल उपाध्याय की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत को पांच दशक से अधिक समय बीच चुका है लेकिन अभी तक इस बात का जवाब नहीं मिल सका है कि उनकी हत्या किसने और क्यों की.