सरकारों को हर कीमत पर संविधान के अनुच्छेद 21 में नागरिकों को प्रदत्त दैहिक स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकारों की रक्षा करनी होगी और उसे तर्क कुतर्को के आधार पर इलाज के अभाव में मरीजों को इधर उधर भटकने की इजाजत नहीं दी जा सकती.
मोदी भी उसी दुविधा के शिकार हैं जिसके शिकार नेहरू हुए थे. सेना की क्षमता में टेक्नोलॉजी के कारण जिस तरह भारी विकास हुआ है, उसके मद्देनज़र चीन का पलड़ा हमसे भारी दिखता है. नेहरू की तरह मोदी ने भी सेना की जगह अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता दी है.
नई दिल्ली को पीओके के माध्यम से सीपीईसी पर अपनी आपत्ति दोहरानी चाहिए और भले ही भारत के दो विरोधियों को जोड़ने वाले इस गलियारे को रोकने के लिए ही सही, पीओके को सैन्य बलबूते पर फिर हासिल करने की योजना बनानी चाहिए.
अगर बढ़ती बेरोजगारी के बीच लोगों की जेब में सीधा पैसा नहीं पहुंचता है तो बहुत चांस है कि लोग सड़कों पर उतर सकते हैं. ये हाल तब और विकट हो जाता है जब सरकारें फ्रंट लाइन में काम कर रहे डॉक्टरों, नर्स और सफाई कर्मचारी तक को सैलरी नहीं दे पा रही है.
नरेंद्र मोदी सरकार को एक राजनीतिक रुख अपनाना होगा और मुद्दे को हल्के में लेना बंद करना होगा. इस रुख की बुनियाद इस भरोसे पर टिकी होनी चाहिए कि भारतीय सेना कमज़ोर नहीं है और मामले को तूल देने में वो चीनियों का मुकाबला कर सकती है.
जगत पुजारी या भीमा मंडावी जैसे भाजपा नेता बस्तर की राजनीतिक बिसात पर छोटे मोहरे रहे हैं. उन्होंने रायपुर स्थित अपने आकाओं की सहमति के बिना अपनी चालें नहीं चली होंगी.
नौकरी बची रहने के लिए केवल अच्छा काम ही पर्याप्त नहीं होता, खासकर संकटकालीन परिस्थितियों के दौरान, यह ऐसा समय होता है जब आपके पेशेवर रिश्ते ज्यादा अहम भूमिका निभाते हैं.
स्पष्ट कारणों से, अगर भारत को जानबूझकर पाकिस्तान में लाखों लोगों पर सूखा डालने वाला माना जाता है, तो अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करना ज़रा मुश्किल होगा.