बीजेपी न केवल चुनाव जीत कर आ रही है बल्कि उसने बिजनेस घरानों, संवैधानिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों, बालीवुड, खेलकूद, मीडिया, सोशल मीडिया आदि में मजबूती से जगह बनाई है.
हिंदुओं ने मथुरा आंदोलन की शुरुआत के साथ मथुरा में एक कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना भी कर दी है. इसके हेड आचार्य देव मुरारी ने कहा है कि वे एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं.
इसके लिए तो खुद चीन ही जिम्मेदार है, उसने अपनी आर्थिक ताकत का बार-बार और प्रायः बेजा इस्तेमाल करके दूसरे देशों को नुकसान पहुंचाया और इन पर अपनी मनमर्जी चलाई.
सपा और बीएसपी एक साथ फुले और परशुराम को साध रही हैं. ये लगभग वैसा है कमाल है जो आरएसएस और बीजेपी गांधी, गोडसे, आंबेडकर और सावरकर को एक साथ साधकर करती है.
अयोध्या में 5 अगस्त को राम मंदिर के भूमि पूजन के बाद दक्षिणपंथी टीकाकारों ने दावा किया कि मंदिर का ‘पुनर्निर्माण अपने पूर्वजों के प्रति भारतीयों की सभ्यातागत जिम्मेदारी है’. इससे अधिक दकियानूसी बात और कुछ नहीं हो सकती.
एक रिपोर्ट से संकेत मिले हैं कि लद्दाख के गलवान में चीन और भारत की सेनाओं के बीच तनातनी से पहले पाकिस्तान ने चीन को खुफिया सूचनाओं की साझेदारी के आपसी समझौते के तहत कुछ गुप्त सूचनाएं जरूर दी होंगी.
निष्कर्ष यही है कि राम 2022 के यूपी चुनाव में भाजपा का प्रमुख कार्ड बनने जा रहे हैं लेकिन यह मोदी-शाह की सबसे सशक्त तरकीब ‘यह बनाम वह’ का ही हिस्सा है.
सिब्बल जैसे अडिग आशावादियों के लिए ही वर्षों पहले काशीनाथ सिंह ने अपनी किताब ‘काशी का अस्सी ’ में लिखा था: ‘कांग्रेस का हुक्का तो कब का बुझ गया, एक हम हैं कि गुरगुराए जा रहे हैं.’