सत्ता को लेकर भाजपा की लालसा खतरनाक लेकिन प्रेरणादायी भी है. यही वजह है कि इसके आलोचक भी राजस्थान संकट के मामले में खुद को बेवकूफ बनाने के लिए कांग्रेस की आलोचना करने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते.
विकलांग बच्चों के लिए शिक्षा में ज्यादातर सुलभता पर ध्यान दिया जाता है और समावेश के विषय की आमतौर पर अनदेखी की जाती है. कोविड-19 इस स्थिति को बदलने का अवसर साबित हो सकता है.
सोशल मीडिया के बारे में अगर किसी को ये भ्रम है कि यहां हर किसी को अपनी बात कहने का समान मौका है तो ये एक भ्रम है. सोशल मीडिया अपने यूजर्स के बीच ऊंच और नीच का भेद पैदा करता है.
रणनीति तय करने में मोदी सरकार ऐतिहासिक पूर्वाग्रहों और भाजपा की चुनावी राजनीति की गिरफ्त से मुक्त नहीं हो पाती, जबकि लद्दाख संकट साफ संकेत दे रहा है कि उसे आत्मविश्लेषण करने, जमीनी हकीकत को समझने और अपनी नीति में सुधार करने की जरूरत है.
वित्तीय हकीकत यह है कि ज्यादा सरकारी पैसा राज्यों के हाथों में होता है, केंद्र के नहीं. इसलिए 15-20 विधायकों को खरीदकर विधानसभा में अपना पलड़ा भारी करने के लिए 400 करोड़ तक खर्च करना बड़ी लड़ाई के लिए खजाना बनाने के लिहाज से कोई बड़ी कीमत नहीं है.
सचिन पायलट के भाजपा में शामिल होने से इनकार को शपथ लेकर की गई दृढ़ प्रतिज्ञा नहीं माना जा सकता. राजस्थान में बदलते घटनाक्रम के बीच बहुत कुछ चौंकाने वाला सामने आ सकता है.
पूंजीवादी देशों में सोशल सिक्योरिटी पर काफी ध्यान दिया जाता है और ये माना जाता है कि पूंजीवादी शासन का मतलब लोककल्याणकारी राज्य की विदाई नहीं है. लेकिन भारत में इस ओर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा है
एर्दोआन की सोच अब तुर्की की सीमाओं से बाहर भी साफ़ तौर पर दिखने लगी है. सीरिया की नई सरकार ने शरिया को अपने क़ानूनों की बुनियाद बना लिया है, ठीक वैसे ही जैसे एर्दोआन अपने देश में चाहते हैं.