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Thursday, 3 October, 2024
होममत-विमतब्लॉगडिप्टी सीएम होकर भी दुष्यंत चौटाला ने राजनीति में खुद को स्थापित किया है, क्या ये सब सचिन पायलट देख रहे हैं

डिप्टी सीएम होकर भी दुष्यंत चौटाला ने राजनीति में खुद को स्थापित किया है, क्या ये सब सचिन पायलट देख रहे हैं

दुष्यंत चौटाला ने राज्य में कुछ ही समय में जाटों के गुस्से को शांत किया और जनता के सामने एक सक्षम प्रशासक के रूप में तेजी से अपनी पहचान बनाई है.

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राजस्थान के सचिन पायलट ही नहीं, बिहार, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री भी राज्य के मुख्यमंत्रियों की छाया में अपनी राजनीतिक जमीन पर दावा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच एक उपमुख्यमंत्री ऐसे हैं जिन्होंने अपने राज्य के सीएम को पछाड़ दिया है. हरियाणा के डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला ने निजी क्षेत्र की नौकरियों में हरियाणा के मूल निवासियों को 75 प्रतिशत आरक्षण देने के अपने सबसे बड़े और विवादास्पद चुनावी वादे को पूरा किया है. साथ ही भाजपा के साथ मिल जाने के बाद जाट समुदाय में फैले गुस्से को सफलतापूर्वक प्रशंसा में भी बदला है.

दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा विधानसभा चुनाव में जाट प्राइड को अपना चुनावी मुद्दा बनाया था. आज, वो किसान नेता और अपने परदादा चौधरी देवीलाल से जुड़े नॉस्टैलजिया को वापस ले आए हैं. वो अपने विधायकों को भी अपने पाले में रखने में कामयाब रहे हैं. उन्होंने ये सब भाजपा के सीएम मनोहर लाल खट्टर को बिना नाराज़ किए किया है. हरियाणा में कई लोग दोनों के बीच समान भागीदारी के उदाहरण की बात करते हैं.


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डिप्टी सीएम: एक खानापूर्ति वाली पोस्ट?

परंपरागत रूप से, डिप्टी सीएम के पद का इस्तेमाल एक पार्टी या गठबंधन के भीतर नाराज़ लोगों को संतुष्ट करने के लिए एक खानापूर्ति की पोस्ट के रूप में किया जाता है. इस पोस्ट को अक्सर एक सीएम की स्वायत्तता के लिए संभावित खतरे के रूप में देखा जाता है. जिन राज्यों में इस तरह की पोस्ट हैं, वहां एक-दूसरे की राजनीतिक शक्ति को कम करने का निरंतर प्रयास हमेशा चलता रहता है. हमने राजस्थान में हाल ही में इसका उदाहरण देखा है. पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की पहले दिन से ही सीएम अशोक गहलोत के साथ अनबन रही और ये कड़वाहट पर जाकर खत्म हुई.

महाराष्ट्र में हमने पिछले साल एक दिवसीय डिप्टी सीएम- अजित पवार को देखा था. पवार ने पाला बदलकर सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली और बाद में उद्धव ठाकरे के सीएम पद की शपथ लेने से पहले ही एनसीपी में वापस आ गए.

मध्य प्रदेश में भी, ज्योतिरादित्य सिंधिया को तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ डिप्टी सीएम बनाए जाने के बारे में बहुत चर्चा हुई थी. लेकिन बाद में वो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए.

उत्तर प्रदेश में भी विभिन्न समुदायों को शांत करने के लिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने 2017 विधानसभा चुनाव के बाद दो डिप्टी सीएम नियुक्त किए- दिनेश शर्मा और केशव प्रसाद मौर्य. एक राज्य में संतुलित ‘राजनीतिक प्रतिनिधित्व’ के लिए ‘जाति’ वोट बैंक बहुत बड़ा फैक्टर है. पार्टियों के सामने ये हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहा है. और अब राज्य में गैंगस्टर विकास दुबे की कथित एनकाउंटर के बाद ‘ब्राह्मण प्रतिनिधित्व’ का पुनरुत्थान शोर मचा रहा है.

बिहार में भी डिप्टी सीएम सुशील मोदी, जो कि एक ओबीसी नेता हैं, लंबे समय तक कुर्सी पर रहने के बावजूद कोई राजनीतिक लाभ नहीं ले पाए हैं. वास्तव में, सीएम नीतीश कुमार ही हैं जो पिछले डेढ़ दशक से एनडीए गठबंधन का चेहरा बने हुए हैं.


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लेकिन हरियाणा में एक अलग खेल चल रहा है

राजस्थान और मध्य प्रदेश में राजनीतिक नाटक के पीछे कथित रूप से भाजपा एक प्रमुख खिलाड़ी रही है. लेकिन हरियाणा का एक अलग माहौल है. भाजपा दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के विधायकों को लुभा नहीं पाई है. चौटाला और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बीच बराबर की साझेदारी है. चौटाला की राजनीतिक पैंतरेबाजी काफी दिलचस्प है, खासकर हरियाणा में अक्टूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उनके विरोध को देखते हुए.

चौटाला ने डील करने की कला सीख ली है?

विधानसभा की 90 सीटों में से 10 सीटें जीतकर सत्ता में आने वाली जेजेपी को खट्टर के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार में 11 विभाग दिए गए हैं. जिसमें राजस्व, आपदा प्रबंधन, एक्साइज, इंडस्ट्री, विकास और पंचायत और फूड एंड सिविल सप्लाइज जैसे विभाग शामिल हैं. इसके अलावा पीडब्ल्यूडी, श्रम और रोजगार, नागरिक उड्डयन, पुरातत्व और संग्रहालय, पुनर्वास और कोन्सोलिडेशन विभाग भी दिए गए हैं.

वैश्विक स्तर पर चल रहे स्वास्थ्य आपातकाल और देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान इनमें से कई विभागों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इससे ये भी सुनिश्चित किया गया कि जनता के सामने डिप्टी सीएम खुद सीएम से ज्यादा दिखाई दिए हों. इसके साथ ही किसान नेता देवीलाल के लिए भी नॉस्टैलजिया को पुनर्जीवित करने के अपने प्रयास में चौटाला ने फेसबुक लाइव किए. उन्होंने खेतों में फसल काट रहे किसानों से सीधे वीडियो कॉल किए.

एक भाजना नेता बताते हैं कि कैबिनेट की बैठकों में भी चौटाला ने अपने विचारों से प्रभावित किया. वो कहते हैं कि इस युवा नेता ने यह सुनिश्चित किया है कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज और खट्टर के बीच मतभेदों के मद्देनज़र सीएम की उनपर निर्भरता बढ़े.

चौटाला समय-समय पर नीतिगत घोषणाओं के साथ विपक्ष को पछाड़ने में भी तेज रहे हैं. किसानों के मुद्दे पर राज्य सरकार को घेरने के लिए विपक्ष को ज्यादा समय नहीं मिल सका क्योंकि खट्टर-चौटाला के गठबंधन ने इस बार 2,000 गेहूं खरीद केंद्र खोलने की घोषणा कर दी थी.


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जाट समुदाय के ‘गुस्से’ को प्रशंसा में बदला

2019 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में जाटों के खिलाफ 35 जातियों को लामबंद करने की बात पर काफी बहसें हुई थीं. मनोहर लाल खट्टर, एक गैर-जाट सीएम चेहरे को दोबारा दोहराए जाने के लिए भाजपा को कोसा भी गया था.

जाट समुदाय के बीच भाजपा के खिलाफ फेमस सेंटिमेंट को आधार बनाकर दुष्यंत चौटाला ने खट्टर के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया और चुनाव में ‘जाट गौरव’ की भूमिका बढ़ाई. लेकिन जब चौटाला ने भाजपा के साथ हाथ मिलाया तो जाटों ने इसे विश्वासघात के तौर पर लिया. हालांकि, हरियाणवियों को नौकरी में 75 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा के साथ, चौटाला ने न केवल अपनी छवि को हुए नुकसान की भरपाई की है बल्कि एक चतुर राजनेता के रूप में भी खुद को स्थापित किया है.

चौटाला ने कुछ ही समय में जाटों के गुस्से को शांत किया और जनता के सामने एक सक्षम प्रशासक के रूप में तेजी से अपनी पहचान बनाई है. स्थानीय जाट नेताओं ने दिप्रिंट को बताया कि चौटाला यह संदेश देने में सफल रहे हैं कि जाटों की हरियाणा की सत्ता में हिस्सेदारी है.

यहां ये बात कहनी भी जरूरी हो जाती है कि राजनीतिक विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की थी कि सरकार के गठन के तुरंत बाद, भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त में संलिप्त हो जाएगी और चौटाला को एक और लड़ाई लड़ने के लिए छोड़ दिया जाएगा. लेकिन हरियाणा की राजनीति में अब तक चौटाला जो कुछ करने में कामयाब रहे हैं वो सचिन पायलट और सुशील मोदी के लिए एक सबक है- कैसे अपने वर्तमान स्थिति में चालाकी से काम लिया जाए.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

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1 टिप्पणी

  1. इसमें कोई दो राय नहीं है की श्रीमती ज्योती यादव जी ने “दि प्रिंट” के लिए एक बहुत ही बेहतरीन आर्टिकल लिखा है और लेकिन इसमें देश की सबसे बड़ी पार्टी अर्थात जिसको देश की आधी से ज्यादा जनता ने अपने वोट के अधिकार का उपयोग कर सरकार में बैठाया है,उस पार्टी पर बिना किसी पुख्ता प्रमाण के खरीद फरोख्त या सरकार गिराने के आरोप लगाना एक बेहतरीन युवा पत्रकार और एक प्रतिष्ठित पत्रिका को शोभा नहीं देता..
    और चूंकि में संव्य हरियाणा से हूं तो मुझे लगता है कि यहां बीजेपी पूरे 5 वर्षों तक दुष्यन्त चौटाला को साथ रखेगी क्योंकि वो उनके गठबंधन का बहुत बड़ा जाट चेहरा है और बीजेपी उनके विधायकों को खरीदकर दुष्यंत चौटाला को हाशिए पर नहीं डालना चाहेगी क्योंकि अगर बीजेपी ने ऐसा किया तो जाट बहुल हरियाणा प्रदेश की जनता बीजेपी से नाराज हो जाएगी जिसका सीधा नुकसान आगामी लोकसभा चुनाव में और विधानसभा चुनाव में बीजेपी को ही होगा..

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