कोरोना के बारे में चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) को 31 दिसंबर 2019 को सूचित किया. लेकिन इस बात के प्रमाण मिले हैं कि इसके वायरस अक्टूबर 19 के मध्य में ही मनुष्यों के बीच फैल चुके थे फिर भी डब्लूएचओ ने कोई गंभीरता नहीं दिखाई.
इस काले दौर को गुजरने में हफ्तों, महीनों लग सकते हैं और इसके चलते भारत की आर्थिक वृद्धि दर में भी भारी गिरावट के अनुमान लगाए जा सकते हैं और इसकी बेरोजगारी, आवश्यक जरूरतों के लिए सरकारी संसाधन के सीमित होने जैसी कीमतें चुकानी पड़ सकती हैं.
चाहे अमिताभ बच्चन हों या विराट कोहली, भारत के धनवान और प्रसिद्ध लोग लेक्चर देने या प्रधानमंत्री मोदी की बातों का अनुसरण करने के लिए तत्पर रहते हैं. लेकिन अधिकांश भारतीयों में निस्वार्थ दान की प्रवृति का अभाव है.
कोरोनावायरस से कितने भारतीय संक्रमित हो सकते हैं या कितने मौत के मुंह में समा सकते हैं इसको लेकर कई भयावह आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं जिन्हें सुनकर ऐसा लगता है मानो हम अपनी किस्मत बदलने के लिए कुछ नहीं करेंगे, हाथ पर हाथ धरे बैठे ही रहेंगे.
खुश रहना मानव जीवन का लक्ष्य है. लेकिन भारत इस लक्ष्य से बेहद दूर जा चुका है. हर साल भारतीय लोगों के जीवन की निराशा औऱ उनका दुख बढ़ता जा रहा है. इसकी वजह क्या है?
चुनावी वादों को पूरा करने में मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार पूरी तरह नाकाम रही. ऐसे में 22 विधायकों के इस्तीफे से जो सीटें खाली हुई हैं, वहां होने वाले उपचुनावों में कांग्रेस कमजोर विकेट पर होगी.
स्वास्थ्य सेवाओं को अपनी बेहतर तैयारी के लिए लॉकडाउन से मदद तो मिलेगी मगर करोड़ों लोग बेरोजगार और बदहाल हो जाएंगे. बहरहाल, सरकार ने 1.7 लाख करोड़ के पैकेज की जो घोषणा की है उसे राहत पहुंचाने का शुरुआती कदम माना जा सकता है
कोरोनोवायरस महामारी की अवधि बताती है कि हमें सभी को मुक्त रूप से राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की आवश्यकता है. आपका स्वास्थ्य अचानक मेरी समस्या है.
सरकार लोगों की तमाम जानकारियां इकट्ठा कर एक लाइव डेटाबेस तो बना रही है लेकिन खुद अपना हिसाब देने वाले सूचना अधिकार क़ानून को लगातार कमज़ोर क्यों कर रही है?
पश्चिम बंगाल में ‘घुसपैठिये’ या ‘तुष्टीकरण’ जैसे शब्द बहुत कम सुनाई पड़ते हैं, न ही ‘मंगलसूत्र’ या अमित शाह द्वारा ममता बनर्जी के ‘मां, माटी, मानुष’ नारे को ‘मुल्ला, मदरसा, माफिया’ में बदलने जैसे वाक्या सुनाई देते हैं.