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Friday, 26 April, 2024
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कोरोनावायरस से निपटने में राज्यसत्ता की चिंता नहीं, जान बचाना है प्राथमिकता

जिन्हें राज्यसत्ता के मजबूत हो जाने का भय सता रहा वे बौद्धिक जुगाली के बजाय इन हालात में मौजूदा मशीनरी की जगह कोई वैकल्पिक व्यवस्था सुझा सकते हैं तो बताएं.

कोरोनावायरस से सबसे ज्यादा मजबूर हमारे मजदूर हैं, वीज़ा-पासपोर्ट वालों की गलती की सज़ा इन्हें न मिले

सरकार इन प्रवासी मज़बूर-मजदूरों पर नरमी बरतें और सभी को राशन और अन्य जरूरी सामान सरकार उपलब्ध कराए.

तबलीगी जमात और वीएचपी अपनी-अपनी कौमों को एक करने में लगी है, तो दोनों में आखिर क्या फर्क है

हिन्दुओं और मुसलमानों में ऐसे संगठनों के मार्फत फैल रही धर्मांधता और कट्टरता से सबसे ज्यादा नुकसान उस भारतीयता का हुआ है जिसकी बुनियाद बहुलता और सौहार्द पर आधारित है.

कोरोना से ग्रसित अमेरिका और चीन के विपरीत भारत के ऊपर एक अनूठा सुपरक्लाउड आकार ले रहा है

कोरोना महामारी के दौरान भारत के डिजिटल तंत्र और हमारे स्मार्टफोन की शक्ति को हम देख रहे हैं, अब समय आ गया है कि हम अपना सुपरक्लाउड बना लें.

पिछले कुछ सालों में आंबेडकर कैसे बन गए मुख्यधारा के आंदोलनों के नायक

उपेक्षित समाज, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग, महिला, ट्रांसजेंडर के लोग आज बाबा साहेब के विचारों में अपनी आवाज ढूंढ़ता है इसलिए वे सामाजिक न्याय और मानवाधिकार आंदोलनों की धुरी बन गए हैं.

असमानता दूर करने के लिए भीमराव आंबेडकर ने क्या उपाय दिए थे

जिस दौर में थामस पिकेटी, जोसेफ स्टेग्लीज समेत दुनियाभर के तमाम अर्थशास्त्री विभिन्न देशों में बढ़ रही असमानता की बात कर रहे हैं, और उसका समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं, उसी दौर में डॉ आंबेडकर के जन्मदिवस को समानता दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हो रही है.

कोरोनावायरस से 300 से अधिक भारतीयों की मौत और करीब 200 लोग लॉकडाउन की भेंट चढ़े

भारत में कोरोनावायरस लॉकडाउन के फायदे-नुकसानों के विश्लेषण में खुद लॉकडाउन के कारण हुई मौतों को भी शामिल किया जाना चाहिए.

क्यों जाति-व्यवस्था से मुक्ति पाने के लिए आंबेडकर ने पंथ-परिवर्तन का रास्ता अपनाया

संघ का मानना है कि हिन्दू एकता को बढ़ावा देकर ही जाति-व्यवस्था से मुक्ति पाई जा सकती है जबकि आंबेडकर ने इस कार्य के लिए पंथ-परिवर्तन का रास्ता अख्तियार किया.

डॉ. भीमराव आंबेडकर को क्यों मिलना चाहिए था नोबल प्राइज

डॉ. आंबेडकर ने साउथबोरो कमेटी से लेकर साइमन कमीशन, गोलमेज सम्मेलन और फिर संविधान सभा में दलितों के प्रतिनिधित्व का मामला रखा था.

ऐसा लगता है कि भारत का मीडिया लकड़बग्घे की तरह मुसलमानों के पीछे पड़ गया है

भारत का मीडिया पत्रकारिता नहीं कर रहा; ज़ी न्यूज से लेकर आजतक और नेटवर्क-18 तक हरेक टीवी चैनल को हर चीज़ में जिहाद ही नज़र आता है, वे सोशल मीडिया की अंधभक्ति में मुसलमानों को निशाना बनाते रहते हैं.

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पालघर, 26 अप्रैल (भाषा) महाराष्ट्र के पालघर जिले में नशे में धुत टेंपो चालक ने दोपहिया वाहनों और पैदल यात्रियों को टक्कर मार दी,...

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सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.