जिस बाजार को दुनिया की हर समस्या का समाधान माना जा रहा था, उसने कोरोना महामारी के समय अपने हाथ खींच लिए. वहीं, सरकार, सरकारी अस्पताल, पीडीएस जैसी संस्थाओं की उपयोगिता फिर से साबित हुई है.
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइज़ेशन ने कहा था कि कोरोना वायरस सिर्फ़ एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट नहीं रहा, बल्कि ये एक बड़ा लेबर मार्केट और आर्थिक संकट भी बन गया है जो लोगों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा.
नागरिकता कानून का विरोध करने वाले बिखर गए हैं. राज्य सरकारें बेहद जरूरी वित्तीय सहायता के लिए कतार में खड़ी नज़र आ रही हैं और तमाम आर्थिक समस्याओं का ठीकरा मजे से कोरोना के सिर पर फोड़ा जा सकता है.
लॉकडाउन कारगर रहा है मगर इसे ज्यादा खींचने के कई दूसरे दीर्घकालिक नतीजे हो सकते हैं जो इससे हुए फ़ायदों को खत्म कर दे सकते हैं. इसलिए बेहतर यही होगा कि इसे धीरे-धीरे, व्यवस्थित तरीके से वापस लेने की प्रक्रिया शुरू की जाए.
अपने देश में उदारवाद की कहानी में एक बड़ा इंटरवल आ गया है. कहानी में दम अभी भी है, कहानी चलनी चाहिए लेकिन उदारवादी नायक को अंग्रेजी वाली सौतेली मां छोड़ के हिंदी, बंगाली, मलयालम मां के पास आना पड़ेगा.
उस दौर में महाराष्ट्र में पड़े अकाल और प्लेग जैसी महामारी में ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले दंपति की भूमिका को, आज याद करना अत्यन्त जरूरी है, जब पूरा विश्व कोरोना महामारी का सामना कर रहा है.
जब पुलिस गरीबों की मदद नहीं कर रही होती है या यूपी पुलिस की तरह मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए चलाई गई फेक खबरों का खंडन नहीं कर रही होती तो वो ग्राउंड पर गानें गाती हुई दिखाई देती है.
आरएसएस अपने स्वयंसेवकों को राहत शिविर संचालित करने की ट्रेनिंग नहीं देता है. फिर भी स्वयंसेवक कोविड-19 संबंधी राहत कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं.
तिरुवनंतपुरम में राजीव चंद्रशेखर का मुकाबला शशि थरूर से है. वे खुद को एक ऐसे राज्य के लिए प्रचारित कर रहे हैं जिसने परंपरागत रूप से भाजपा के प्रति घृणा दिखाई है.