अन्यथा वह समय दूर नहीं है जब न्यायपालिका संविधान में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आ रही मीडिया के लिये विशेष परिस्थितियों या मामलों के संबंध में ‘कोई लक्ष्मण रेखा’ नहीं खींच दे.
आदित्यनाथ की ठाकुरवादी छवि ने दलितों के बीच भाजपा की छवि को क्षति पहुंचाई है जबकि कांग्रेस प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व से आगे जाने में नाकाम रही है. यह स्थिति मायावती से ज्यादा आजाद के उभरने में मददगार साबित हो सकती है.
प्रधानमंत्री चुने जाने और कुर्सी से बेदखल किए जाने के अपने तीन बार के अनुभवों के कारण नवाज़ शरीफ़ राजनीति पर पाकिस्तान सेना की पकड़ को भलीभांति जानते हैं. अब वह सारा कच्चा चिट्ठा खोल रहे हैं.
नागरिकता संशोधन कानून के जिन्न को बीजेपी फिर बोतल से बाहर ला रही है. बिहार में विधानसभा चुनाव हो रहा है और बंगाल में चुनाव की तारीख नजदीक आती जा रही है.ऐसे में देशभर में ध्रुवीकरण का मामला भी जोर पकड़ता दिखाई दे रहा है.
पीडीएम के पंजाब के गुजरांवाला और सिंध के कराची महानगर में 16 और 18 अक्टूबर में एक के बाद एक लगातार दो रैलियां करने से सत्तासीन सरकार का आत्मविश्वास डगमगा गया है.
सिद्धार्थ शंकर राय को दोनों बंगाल को देखने का काम सौंपा गया था— पश्चिम बंगाल का शासन संभालने का और पूर्वी बंगाल के शेख मुजीबुर रहमान से राजनयिक संबंध बनाने का
भारत के हर कस्बे और शहर में एक मल्टी-स्पेशियलिटी क्लिनिक या अस्पताल है. लेकिन हमारे परिवार के चिकित्सक कहां हैं जो हमें बता सकते हैं कि ’डॉक्टर के पास जाएं’?
कोरोनावायरस वास्तव में एक बड़ा खतरा है. लेकिन यह भी एक तथ्य है कि ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में इधर कुआं उधर खाई वाली स्थिति में फंस गई हैं, जहां अगले साल चुनाव होने वाले हैं.
पश्चिम बंगाल में ‘घुसपैठिये’ या ‘तुष्टीकरण’ जैसे शब्द बहुत कम सुनाई पड़ते हैं, न ही ‘मंगलसूत्र’ या अमित शाह द्वारा ममता बनर्जी के ‘मां, माटी, मानुष’ नारे को ‘मुल्ला, मदरसा, माफिया’ में बदलने जैसे वाक्या सुनाई देते हैं.