किसी ने यह देखने की कोशिश नहीं की कि भारत के पास पर्याप्त वैक्सीन, ऑक्सीजन, रेमडिसिविर दवा है या नहीं. अब देश ऐसे संकट में फंस गया है कि चार दशक बाद हम विदेशी मदद के मोहताज हो गए.
चुनाव आयुक्तों को पश्चिम बंगाल में उतावलेपन पर काबू पाना चाहिए था, लेकिन उनके पक्षपातपूर्ण रवैये ने सिविल सेवाओं के बारे में नकारात्मक छवि को मजबूत ही किया है.
लंबे अरसे तक बंगाल में दलगत प्रतिद्वन्द्विता अनूठी बनी रही. चुनाव अभियानों में तब राजनीतिक कार्यकर्ता विचारधारा की भाषा बोला करते थे. लेकिन अब ऐसा नहीं रहा.
इस कानून की संवैधानिकता को न्यायालय में चुनौती दी जायेगी और आम आदमी पार्टी तथा दिल्ली की निर्वाचित केजरीवाल सरकार अपने अधिकारों में कटौती के इन प्रयासों के खिलाफ हर तरह की मोर्चांबंदी करेगी.
सिस्टम के बहुत से हिस्सों को दोषी ठहराया जाएगा. केंद्र राज्यों पर दोष मढ़ेगा और तमाम सरकारें निजी क्षेत्र और लोगों की अनुशासनहीनता को ज़िम्मेदार ठहराएंगी.
कुछ ऐसी चीजें हैं जो सशक्त नेता कभी नहीं करते हैं, जैसे यह स्वीकारना कि उनकी तरफ से कोई चूक हुई है. तीन हालिया उदाहरण बताते हैं कि सात साल में पहली बार नरेंद्र मोदी की नजरें नीची हुई हैं.
भारत को जो लक्ष्य हासिल करना चाहिए, वह है पाकिस्तान को एक नया रूप देना, न कि वह देश जैसा उसके जनरलों और मौलवियों ने कल्पना की है. गुस्से के शब्द और क्रोध की लहरें काफी नहीं होंगी.