प्राचीन रोम के लोग 'रोटी और सर्कस' की मिसाल देते थे कि कैसे लोगों को थोड़ा सा भोजन और भरपूर मनोरंजन दिया जा सकता है. भारतीयों को भी उसी तरह खुराक दी जा रही है और बेवकूफ बनाया जा रहा है.
सेना की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं किया जा रहा है, न उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाता है और न सेना के प्रतिनिधियों से सलाह-मशविरा किया जाता है.
चीन के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स साइनो वीबो और बायडू पर आधिकारिक अकाउंट्स के जरिए भारत में श्मशान घाटों और चिताओं की फोटो को शेयर करके मज़ाक बनाया जा रहा है.
बंगाल से मिले साफ संदेश के बावजूद मोदी ने मंत्रिमंडल में फेरबदल करने के बारे में ‘सोचना’ अगर नहीं शुरू किया है तो इसके केवल दो कारण हो सकते हैं. पहला यह कि सारे फैसले तो पीएमओ से ही किए जाते हैं; दूसरी वजह अति आत्मविश्वास और निश्चिंतता हो सकती है.
मोदी सरकार ने रक्षा के महकमे में कई सुधारों की शुरुआत की है लेकिन केवल राजनीतिक क्षमता व कौशल रखने वाला रक्षा मंत्री शायद ही उन सुधारों को आगे बढ़ा पाएगा.
कोविड रिस्क के बावजूद किसानों ने पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान में न केवल फसल की कटाई की बल्कि उसे मंडियों में भी बेचा. बिहार और यूपी को जरूर सबक लेनी चाहिए.
विजय की इस घड़ी में भी भारतीयों को ये बात स्वीकार करनी चाहिए कि पश्चिम बंगाल और केरल में बीजेपी की अपमानजनक हार की कथा लोकतंत्र पर दावेदारी के लिए जारी संघर्ष की कथा का विस्तार नहीं करती.
हाल में कुछ कामयाबियों के कारण एक नयी कहानी लिखी जाने लगी. खास तौर से कुछ देशभक्त आंखों को भारत ‘तीसरी दुनिया’ से निकलकर ‘उभरते बाज़ार’, यहां तक कि उभरते ‘सुपर पावर’ के रूप में नज़र आने लगा.
तीसरी नई बात यह है कि 2019 में हुए बालाकोट हमले से भी ज्यादा घातक इस बार का हमला था. बालाकोट में बम गिरने के बाद भी मिलकत या जान हानि के नुकसान के ठोस सबूत नहीं मिले थे, लेकिन इस बार पाकिस्तान ने खुद भारत के आक्रमण से हुई बर्बादी का ब्यौरा दिया.