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Tuesday, 23 April, 2024
होममत-विमतपाकिस्तानी सांसद इजरायल पर ‘न्यूक्लियर हमला’, जिहाद का ऐलान चाहते हैं, जैसे यही एक सही तरीका हो

पाकिस्तानी सांसद इजरायल पर ‘न्यूक्लियर हमला’, जिहाद का ऐलान चाहते हैं, जैसे यही एक सही तरीका हो

यदि आप फिलिस्तीन के प्रति समर्थन दिखाना चाहते हैं, तो हिटलर को कोट करना कोई उपाय नहीं है. पाकिस्तान में कुछ लोग समझते तक नहीं हैं.

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पाकिस्तान की नेशनल असेंबली ने इस हफ्ते के शुरू में एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायली हमले की निंदा की गई थी. इस दौरान भाषण देते हुए कई सांसदों के सुर बेहद आक्रामक हो गए, इनसे से कई ने सवाल उठाया कि सिर्फ ऐसा प्रस्ताव पारित करने से क्या होगा, और सरकार से कुछ ठोस कदम उठाने को भी कहा. विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने तो शुक्रवार को इजरायल के खिलाफ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन का ऐलान तक कर डाला. आगे और क्या-क्या कहा गया?

पाकिस्तान की तरफ से इजरायल के खिलाफ जिहाद की घोषणा, फिर अपने सैन्य साजो-सामान और मिसाइलों का इस्तेमाल कर परमाणु बम गिराना और युद्धक विमानों और यहां तक कि अपनी सेना को भी उतारना, कुछ ऐसे उपाय थे जिन पर पाकिस्तानी सांसदों की तरफ से ‘सबसे ज्यादा’ जोर दिया गया. यही नहीं, जमात-ए-इस्लामी के मौलाना अब्दुल अकबर चित्राली ने तो पाकिस्तानी सेना प्रमुख से यही पूछ डाला, सात लाख की मजबूत सेना का फायदा ही क्या है अगर वह फिलिस्तीन और कश्मीर को आजादी नहीं दिला सकती? क्या परमाणु बम सिर्फ म्यूजियम में सजाने के लिए बनाए गए थे? इसी तरह, जमात उलेमा इस्लाम के मुफ्ती अब्दुल शकूर इस यकीन से लबरेज नजर आए कि पाकिस्तान कुछ ही मिनटों में इजरायल को नेस्तनाबूद करने की क्षमता रखता है. आखिरकार पाकिस्तान ‘एटमी कूवत’ भी तो रखता है. ये तर्क देते हुए कि कैसे तालिबान ने अमेरिका को अफगानिस्तान से बाहर का रास्ता दिखा दिया, शकूर ने कहा, ‘इजरायल तो इसके आगे कुछ भी नहीं है.’

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की एक अन्य सांसद अस्मा कादिर ने स्पीकर से जिहाद के लिए उनका नाम दर्ज करने तक की गुहार ही लगा डाली, क्योंकि पाकिस्तान के पास यही एकमात्र विकल्प है. उन्होंने इजरायल का साथ देने के लिए अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को महिलाओं और मानवता के नाम पर एक कलंक बताने में गुरेज नहीं किया. उनके शब्दों में ‘वह भारत की भाषा बोल रही हैं, अमेरिका की नहीं.’ कादिर वही सांसद हैं जिन्होंने 2018 में नेशनल असेंबली में एक भाषण में इजरायल के साथ संबंध बढ़ाने का सुझाव दिया था.

एटम बम या लंबी जंग?

ऐसा लगता है कि आजकल पाकिस्तानी नेताओं को अपने बयानों के दौरान उद्धरण हिटलर से मिल रहे हैं—जैसे वह उनके व्हाट्सएप पर रैंडम वॉयस नोट छोड़ देते हों.

सत्तारूढ़ पीटीआई की नेशनल असेंबली सदस्य कंवल शौजाब ने दावा किया कि हिटलर ने कहा था, ‘मैं सभी यहूदियों को मार सकता था लेकिन कुछ को मैंने दुनिया को यह बताने के लिए छोड़ दिया कि मैं उन्हें क्यों मार रहा था.’ तानाशाह हत्यारे को इस तरह गलत कोट किए जाने के बावजूद सदन में मेजें थपथपाकर उनका जोरदारी से स्वागत किया गया.

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शौजाब ने इसके बाद यह कहते हुए अपनी बात आगे बढ़ाई कि पाकिस्तान का एटम बम क्या केवल शब-ए-बारात पर फोड़ा जाएगा. एटम बम से होने वाले विनाश को भुला देना विडंबना ही है.

हालांकि, संसदीय मामलों के राज्य मंत्री अली मुहम्मद खान इजरायल पर परमाणु हमले के पक्षधर नहीं थे. वह तो यही चाहते थे कि मुसलमान ऐसी तैयारी करें/योजनाएं बनाएं जैसी यहूदियों ने अगले 1,000 सालों के लिए कर रखी है. खान ‘द प्रोटोकॉल्स ऑफ द एल्डर्स ऑफ जॉयान’ का जिक्र कर रहे थे जो दुनियाभर में प्रभुत्व कायम करने की भव्य यहूदी योजना को लेकर किया जाने वाला यहूदी विरोधी दुष्प्रचार है. लगता है इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि सांसद फिलिस्तीन पर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के बाहर कोई क्रैश कोर्स करें.

उधर, संसद के बाहर तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) ने तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के पांच लाख जवानों का आह्वान किया कि वे फिलिस्तीन की आजादी सुनिश्चित करने के लिए उनसे हाथ मिला सकते हैं.

एर्दोगन के साथ एकजुटता दिखाते हुए टीएलपी नेता अशरफ आसिफ जलाली ने कहा, ‘पाकिस्तानी मुसलमान अपनी जवानी और जान कुर्बान कर देंगे, लेकिन वे येरुशलम में यहूदियों के नाकाम कदमों को बर्दाश्त नहीं करेंगे.’


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मजहब परस्ती कारगर नहीं

पाकिस्तान में भावनाएं इस कदर हावी है कि राजनेताओं की तरफ से दिए जाने वाले भावुक तर्क सरासर मूर्खता ही साबित होते हैं, क्योंकि वे परमाणु हथियार के इस्तेमाल तक की बात करते हैं. इन सांसदों की राय पर जरा कल्पना तो कीजिए, वे बचाने के नाम पर फिलिस्तीनियों को उनके पड़ोस में ही परमाणु बम गिराकर आजाद कराना चाहते है. फिर मौके-बेमौके कही ये बातें फिलिस्तीनी हितों की रक्षा के नाम पर विशुद्ध रूप से यहूदी-विरोधी हैं.

पाकिस्तानी अभिनेत्री वीना मलिक ने भी हिटलर का वही चर्चित कोट ट्वीट किया था, ‘मैं सभी यहूदियों को मार सकता था लेकिन कुछ को मैंने दुनिया को यह बताने के लिए छोड़ दिया कि मैं उन्हें क्यों मार रहा था.’ हालांकि, आलोचनाओं के बाद उन्होंने वह ट्वीट हटा लिया था.

एक अन्य घटनाक्रम में सीएनएन ने पाकिस्तान में अपने कंट्रीब्यूट आदिल राजा को हटा दिया, जिन्होंने ट्वीट किया था, ‘दुनिया को हिटलर की जरूरत है.’ राजा की तरफ से किए गए कई अन्य यहूदी विरोधी ट्वीट भी सामने आए जिसमें हिटलर की तारीफ की गई थी, और विश्व कप फाइनल में जर्मनी के समर्थन की बात भी कही गई क्योंकि ‘हिटलर एक जर्मन था और उसने यहूदियों को अच्छा सबक सिखाया था.’

आपके विचार में 2021 में हिटलर के समर्थन का क्या मतलब है? क्या आपको लगता है कि अब कोई हिटलर ‘दूसरों’ की हत्या करता रहेगा लेकिन मजहब के कारण आपको नहीं मारेगा? हिटलर के बारे में यह राय बनाने पर खुद आपको कितना भरोसा है? ये सवाल उन लोगों के दिमाग में कभी नहीं आते जो मजहब का चश्मा परे रखकर सोच ही नहीं पाते.

दशकों से पाकिस्तान की स्कूली किताबों और राष्ट्रीय अवधारणा ने इसी विचार को विकसित किया है कि देश मूलत: धर्म के आधार पर बने हैं. इसलिए एक भारतीय के लिए सामान्य संदर्भ ‘भारतीय’ नहीं बल्कि ‘हिंदू’ होगा, अमेरिकी का मतलब ‘ईसाई’ और एक इजराइली का मतलब कोई ‘यहूदी’ ही होगा. यह पाकिस्तान में भी धार्मिक अल्पसंख्यकों को अलग-थलग कर देता है, खासकर किसी संघर्ष की स्थिति में.

हिंदुओं को ‘गोमूत्र पीने वाले लोग’ बताने से लेकर एक पोस्टर में यह लिखने कि ‘हिंदू बात से नहीं लात से मानता है.’ या फिर यह कहना कि ‘मोदी और हिंदुओं में मानवता नहीं है, वे पशुवत हैं’ आदि तक, मजहबपरस्ती से जुड़ी तमाम टिप्पणियां आपको घरेलू मोर्चे पर तो वाहवाही दिलाती हैं, लेकिन जब आप फिलिस्तीन जैसे मसले पर एकजुटता दिखाने के लिए ऐसे ही शब्दजाल का इस्तेमाल करते हैं तो आपकी पोल खुल जाती है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nalainayat है. व्यक्त विचार निजी हैं.


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