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शनिवार, 10 मई, 2025
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मार्क्स के पोते ने की थी सावरकर की पैरवी, भारत के मार्क्सवादियों द्वारा उनका विरोध कितना तर्कसंगत

लोंगुएट की दलीलों का सार यही था कि सावरकर एक भारतीय क्रांतिकारी व प्रबुद्ध विचारक हैं और भारत को आजाद करवाने के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं, इसलिए ब्रिटिश सरकार उनके पीछे पड़ी है.

कोरोना टूलकिट तैयार है, गंगा, हिमालय, सोशल मीडिया बंद होने की अफवाह और भी बहुत कुछ है इसमें

घरेलू सीवेज जिसमें मानव मल की मात्रा होती है, यह गंगा में पहले की तरह ही आ रहा है और यही वह तत्व है जो पानी को सर्वाधिक प्रदूषित करता है लेकिन पानी के रंग में कोई बदलाव नहीं आता.

मुझे क्यों ऐसा लगता है कि राजीव गांधी पर छद्म नाम से लेख सोनिया या प्रियंका ने नहीं, राहुल ने लिखा होगा

जैसे जवाहरलाल नेहरू 1930 के दशक में और नरसिंह राव 1970 के दशक में कॉंग्रेस के हालात से असंतुष्ट थे उसी तरह राहुल गांधी आज नाखुश हैं.

मोदी कोई मनमोहन सिंह नहीं जो अफसाने के अंजाम पर पहुंचने से पहले अलविदा कह दें

शपथ ग्रहण के बाद के सात सालों में मोदी सरकार जितना अभी डांवाडोल है उतना पहले कभी नहीं रही. लेकिन अभी भी कोई विकल्प मौजूद नहीं है.

‘छोकरी’ शब्द पर आपत्ति क्यों? इसे सही संदर्भ में देखने की जरूरत, आलोचना केवल आलोचना के लिए न करें

किसी भी रचना को उसके संदर्भ में समझना बेहद जरूरी है. आलोचना केवल आलोचना करने के उद्देश्य से ही नहीं की जानी चाहिए. आलोचना के पीछे पुख्ता और ठोस कारण होना चाहिए.

तिहाड़ से उमर खालिद ने कहा- जेल में एक भी दिन या रात एंग्जायटी के बगैर नहीं कटती

मुझे पांच मिनट के फोन कॉल या दस मिनट के वीडियो कॉल का बेसब्री से इंतजार रहता है. लेकिन जैसे ही हम बातें करना शुरू करते हैं, टाइमर बंद हो जाता है. इससे पहले मैंने कभी भी हर सेकेंड की कीमत का एहसास इस सिद्दत के साथ नहीं किया है.

मोदी के आंसू भले ही असली न हों लेकिन उनका मखौल उड़ाना विपक्ष पर भारी पड़ सकता है

मोदी पर हमलावर विपक्ष के जुमले मज़ाकिया, आकर्षक और सोशल मीडिया पर चलने वाले भले ही हों, इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि इन्हें अपने फायदे में इस्तेमाल करने के लिए मोदी अपनी पूरी ताकत और कल्पनाशीलता झोंक देंगे.

लद्दाख में तो चीन को लेकर भारत का दांव चूक गया लेकिन अब एक नया दांव चलने का जोखिम उठाया जा सकता है

अनुच्छेद 370 से लेकर कुम्भ तक मोदी सरकार ने देश के आंतरिक मामलों में कई दांव चले, अब विदेश नीति की बारी है.

क्या भारत के युवाओं की लोकतांत्रिक समझ ‘शून्य’ हो चली है

इतनी निराशा के बाद भी हिंदुस्तान में अभी भी लोकतंत्र को बचाने की उम्मीद बाकी है.

किसानों के आन्दोलन के छः महीने : इस सरकार में अंग्रेजों जितनी शर्म भी नहीं

बदलते मौसमों के साथ गर्मी, जाड़ा व बरसात और महामारी के अंदेशों को झेलते हुए भी वे प्रदर्शन स्थलों पर जमे हुए हैं और अब उन्होंने अपने आन्दोलन का विस्तार करते हुए उसे गुरिल्ला शक्ल देने का फैसला भी किया है.

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योगी, फडणवीस, गडकरी को झटका—जाति जनगणना बदलेगी पीएम मोदी के उत्तराधिकारी के चयन का पैमाना

यह समझ से परे है कि भाजपा जब भारत की सबसे मज़बूत पार्टी की स्थिति में है, तब वह जाति जनगणना जैसे विघटनकारी कदम को क्यों उठाए. अगर राहुल गांधी जैसे विपक्षी नेता ऐसी विघटनकारी राजनीति करते हैं, तो बात समझ में आती है. वे भाजपा के राजनीतिक प्रभुत्व को तोड़ने के लिए बेताब हैं, लेकिन भाजपा क्यों?

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मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में दो मोटरसाइकिलों की टक्कर में पांच लोगों की मौत

छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश), 10 मई (भाषा) मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में दो मोटरसाइकिल की टक्कर में पांच लोगों की मौत हो गई। एक अधिकारी ने...

लास्ट लाफ

सुप्रीम कोर्ट का सही फैसला और बिलकिस बानो की जीत

दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चुने गए दिन के सर्वश्रेष्ठ कार्टून.