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Tuesday, 23 April, 2024
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बाल काटना, शॉपिंग करना या सफाई करना… इम्पल्स में आकर ऐसा क्यों करती हैं महिलाएं

पिछले दिनों जब बेहद हताश महसूस कर रही थी तो मैं शॉपिंग के लिए निकल गई और मैंने ऐसी कई चीजें खरीद ली जिन्हें शायद मैं कभी इस्तेमाल न करूं लेकिन मुझे ऐसा करके थोड़ा बेहतर महसूस हुआ.

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नई दिल्ली: कुछ दिनों पहले जब मैं अपनी एक दोस्त से मिलने गई तो मैंने ग़ौर किया उसके बाल कुछ छोटे हो गए हैं. मैंने उससे सवाल किया कि क्या तुमने अपने बाल कटवाए हैं? तो उसने जवाब दिया- कटवाए नहीं, काट लिए हैं.’ वो अक्सर इस तरह की हरकते करती है. जब भी थोड़ी परेशान होती है और जीवन थोड़ा उलझा हुआ-सा लगता है तो अपने बाल काट लेती है. कई बार वह अपनी पलकें भी काट लेती है.

जब उसने मुझे अपने बताया कि कभी-कभी जब वह बहुत इम्पल्सिव महसूस करती है तो अपनी पलके भी काट लेती है, तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ. मैंने अपने आस-पास ऐसा कई बार देखा जब लड़कियों ने ऐसा किया और इसने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि आखिर लड़कियां ऐसा क्यों करती हैं.

पिछले दिनों जब मैं बेहद हताश महसूस कर रही थी तो मैं शॉपिंग के लिए निकल गई और मैंने ऐसी कई चीजें खरीद ली जिन्हें शायद मैं कभी इस्तेमाल न करूं लेकिन मुझे ऐसा करके थोड़ा बेहतर महसूस हुआ. हालांकि यह बस कुछ देर के लिए ही था, लेकिन ऐसा करने से मुझे अच्छा लगा.

परिणाम की चिंता नहीं 

ऐम्स में मनोवैज्ञानिक के रूप में काम करने वाले डॉक्टर राजेश सागर बताते हैं कि इमपल्स का मतलब होता है जब हम बिना सोचे-समझे कुछ करते हैं और इसके परिणाम की चिंता भी नहीं करते हैं. हालांकि जो गंभीर स्थितियां होती हैं इसमें इम्पल्सिव डिसॉर्डर के मामले भी देखने को मिलते हैं. लेकिन कई बार हम खुद को महसूस कराने के लिए या भावनात्मक खालीपन को भरने के लिए भी ऐसी हरकते करते हैं.

उन्होंने इम्पल्स में आकर अलग-अलग काम करने पर कहा कि यह हर किसी के व्यवहार पर निर्भर करता है और उसी हिसाब से हर व्यक्ति काम करता है.

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दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्रेजुएशन कर चुकी राधिका ने दिप्रिंट को बताया कि अब से लगभग 2-3 साल पहले राधिका जब बहुत परेशान होतीं तो सड़कों पर निकल जाती थीं और पूरा-पूरा दिन सड़कों पर अकेले टहलती रहती थीं, कभी किसी पार्क में बैठकर अपने आस-पास के लोगों को देखतीं तो कभी सड़कों पर पैदल सैर करतीं. उन्होंने बताया कि इससे उन्हें कोई ज्यादा फायदा तो नहीं होता था लेकिन पूरा दिन घर बैठने की अपेक्षा थोड़ा बेहतर तरीके से गुजर जाता था.

वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस में रहकर सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहीं स्नेहा (बदला हुआ नाम) ने कुछ दिनों पहले अपने कान में पियर्सिंग कराया है. इससे पहले वह एक बार और ऐसा कर चुकी हैं. वो कहती हैं कि जब वह थोड़ा परेशान या उलझा हुआ महसूस करती हैं तो इस तरह के फैसले ले लेती हैं.

इमोशन कोपिंग के तरीके

मनोवैज्ञानिक प्रवीन त्रिपाठी बताते हैं कि लोग अपने निगेटिव इमोशनल स्टेट से बाहर निकलने के लिए ऐसा करते हैं. वो कहते हैं, ‘अगर आप शॉपिंग कर रही हैं तो ये आपके दिमाग में डोपामीन रिलीज करेगा जिससे आपको बेहतर महसूस होगा. लेकिन अगर आपकी सैलरी 25 हजार है या 50 हजार है और आप खुद को बेहतर महसूस कराने के लिए हर रोज 2 हजार की शॉपिंग कर रही हैं तो ये एक समस्या हो सकती है.’

डॉ त्रिपाठी कहते हैं कि कुछ चीजें ऐसी भी होती है जो ऐसी इमोशन कोपिंग में मदद न करके आपका नुकसान करती हैं. वो बताते हैं कि कुछ लोगों में बाल निकालने की समस्या गंभीर हो जाती है जिसे मेडिकल भाषा में  trichotillomania कहते हैं. इसमें मरीज को अपने बाल निकालने की जरूरत महससू होती है. बाल निकालने के बाद उसे बेहतर महसूस होता है लेकिन साथ में गिल्ट भी होता है.

इसके अलावा कुछ लोग अपने नाखूनों के पास की चमड़ी को उखाड़ने लगते हैं. यह भी एक बीमारी है. इससे भी ज्यादा गंभीर मरीज अपने बाल खा जाते है जिसके बाद वह उनके पेट में जमा हो जाते हैं. हालांकि ये सभी गंभीर बिमारियों के उदाहरण हैं.

इंटीग्रल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में मनोविज्ञान पढ़ाने वाली हिमानी कुलकर्णी बताती हैं कि सबकी इमोशन कोपिंग अलग तरह की होती है अगर आपको बाल काटकर या थोड़ी-बहुत शॉपिंग करके अच्छा महसूस होता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है. ऐसी किसी कोपिंग में बुराई नहीं है जो बाद में आपके लिए नुकसान का कारण न बने.

लेकिन ऐसा करने की जरूरत क्यों महसूस होती है, इस पर हिमानी कहती हैं, ‘किसी भी भावनात्मक चुनौती से गुजरते समय आपको लगता है कि आपके हाथ में कुछ नहीं है. इसिलए आप चीजें कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं. आप टैटू बनवाकर या बाल कटवाकर अपने शरीर को बदलते हैं और खुद को यह अहसास दिलाते हैं कि चीजे आपके हाथ में हैं.

नोएडा में रह रही फिजा जब भी गुस्से में होती हैं तो साफ-सफाई करने में लग जाती हैं. वो कहती हैं मैं गुस्से में उन चीजों को भी साफ कर देती हूं जो पहले से साफ होती हैं, फिर चाहें वह फर्श हो, पंखे हों या दीवारें. वो बताती हैं कि ऐसा करने के बाद उन्हें थोड़ी राहत मिलती है.

शरीर में बनते हैं कैमिकल

हिमानी बताती हैं कि जब हमें गुस्सा आता है तो हमारे शरीर में कई तरह के केमिकल का सिक्रिशन (रिसाव) होता है जिसे बैलेंस करने के लिए हम सफाई करते हैं, सैर करते हैं या ऐसी कोई भी एक्टिविटी जिसमें हमारी शारीरिक ऊर्जा लगे.

ऐसे ही कैमिकल से शरीर में बैलेंस बनाने के लिए कुछ लोग सो भी जाते हैं. हिमानी कहती हैं, इस तरह की कोपिंग खुद को नुकसान भी पहुंचा सकती है. हमें यह ध्यान देने की जरूरत है कि कोप करने के लिए जो कुछ भी आप कर रहे हो वो भविष्य में आपके ऊपर क्या असर करेगा.

हिमानी बताती हैं , ‘कोपिंग और सेल्फ हार्म के बीच में एक बेहद पतली लाइन है जिसका ध्यान रखने की जरूरत है. इसके अलावा अगर आप कोपिंग के लिए बाल रंगवाती हैं, टैटू बनवाती हैं या कोई नई हॉबी चुनती है तो इसमें कोई बुराई नहीं है.’

विशेषज्ञों से बात करने के बाद यह बात कही जा सकती है कि जब तक इम्पल्स में आकर आप कुछ बड़ा, खुद को या किसी और को नुकसान पहुंचाने जैसी हरकत नहीं कर रहे हैं तो यह ठीक है, लेकिन अगर आपको लगता है कि आपकी समस्या थोड़ी गंभीर है तो आपको मदद लेनी चाहिए. डॉक्टर बताते हैं कि लंबे समय तक लोग अपने इम्पल्स कंट्रोल डिसॉर्डर पहचान नहीं पाते हैं.


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