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Wednesday, 18 December, 2024
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अमेरिका बॉन्ड की खरीद से फिर हाथ खींच रहा है, भारत इस पर कोई सख्त नीतिगत कदम न उठाए तो बेहतर

अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 2013 में जब बॉन्ड की खरीद कम कर दी थी तब भारत उससे बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ था और रुपये पर दबाव बढ़ गया था.

टेलीकॉम संकट खत्म हुआ, अब निजी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दे सरकार

किसी सेक्टर में निजी क्षेत्र की भागीदारी ही काफी नहीं है, इसके साथ प्रतिस्पर्द्धा के लिए अनुकूल माहौल बनाना भी जरूरी है.

बाजार के हाल और मुद्रास्फीति ने भारतीयों को फिर से सोने का दीवाना बनाया, सरकार इसे रोकने के उपाय करे

शादियों और त्योहारों के मौसम में बढ़ने वाली मांग और ऊंची मुद्रास्फीति सोने के आयात को बढ़ावा दे रही है. बचत पर ब्याज दरों में गिरावट और इक्विटी मार्केट की समस्याएं इसमें और वृद्धि ला सकती है.

भारत की GDP और वित्तीय स्थिति पटरी पर लौट रही है लेकिन भरोसा बनाए रखने के लिए आर्थिक सुधार जरूरी हैं

वित्त वर्ष’22 की पहली तिमाही में 20.1 फीसदी ग्रोथ मुख्यतः ‘बेस इफेक्ट’ के कारण रही. लेकिन मजबूत वृद्धि के लिए विनिवेश तथा बैंक निजीकरण जैसे संरचानात्मक सुधार जरूरी हैं.

रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स से छुटकारा अच्छा, पर विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए मोदी सरकार और भी कर सकती है

चीन द्वारा खाली की गई जगह भरने की कोशिश में जुटे वियतनाम जैसे देशों से होड़ लेने के लिए भारत को अपनी नियमन व्यवस्था और कानून के शासन में स्थिरता लाने की जरूरत है.

भारत की आर्थिक वृद्धि की गति RBI को ब्याज दरों में हेरफेर करने से रोकती है

मुद्रास्फीति में नरमी और आर्थिक वृद्धि में तेजी के कुछ शुरुआती संकेत हैं. लेकिन लगता है कि रिजर्व बैंक अभी इन पर नज़र रखने के बाद ही दरों पर कोई फैसला करेगा.

भारत को और ज्यादा निजी बीमा कंपनियों की जरूरत, कोविड ने सरकार को इसे पूरा करने का मौका दिया है

ज्यादा खिलाड़ी बाज़ार को और ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी बनाएंगे क्योंकि वे ग्राहकों के लिए आसान और कम लागत वाली बीमा योजनाएं पेश करने की होड़ करेंगे.

1991 के सुधारों के दायरे में बैंकिंग और वित्त क्षेत्र नहीं आए इसलिए अर्थव्यवस्था एक टांग पर चलने को मजबूर हुई

बैंकिंग पर प्रतिबंधों के कारण नये उद्यमियों के लिए संसाधन तक पहुंच हुई सीमित, पुराने इलीट हावी रहे लेकिन अब तो इस सब से मुक्त होना चाहिए.

सुधारों के लिए भारत को संकट का इंतजार था, जो नेहरू-इंदिरा के सोवियत मॉडल के चलते 1991 में आया

भारत में केंद्र द्वारा नियोजित अर्थव्यवस्था की शुरुआत 1950 के दशक में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के अधीन हुई थी लेकिन 1991 में आकर वह अचानक चरमरा गई और देश भारी संकट में फंस गया.

कोविड संकट के मद्देनजर क्रेडिट रेटिंग फर्मों को अपने तौर-तरीकों पर फिर से विचार करने और बदलने की जरूरत है

कोविड की दूसरी लहर के बाद भारत की आर्थिक स्थिति में सुधार की धीमी गति के मद्देनजर रेटिंग एजेंसियों ने उसकी संभावित वृद्धि दर में कटौती की है. ऐसा लगता है कि सरकार जो भी कदम उठा रही है उसे भी ये एजेंसियां खारिज कर देंगी.

मत-विमत

भारत को चुनावी मोड से बाहर निकलना होगा—’एक देश, एक चुनाव’ वोटर्स और पार्टियों के लिए होगा फ़ायदेमंद

एक राष्ट्र, एक चुनाव के आलोचक मतदाताओं की थकान के बारे में नहीं सोच रहे हैं. जब चुनाव कई बार और लगातार होते हैं, तो शिक्षित मतदाता भी उन्हें एक अतिरिक्त छुट्टी के रूप में देखता है.

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नयी दिल्ली, 18 दिसंबर (भाषा) दक्षिण दिल्ली में सफदरजंग हवाई अड्डे के नजदीक उड़ान भवन कार्यालय परिसर में बुधवार को आग लग गई। दिल्ली...

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