बिना कोलेटरल के एमएसएमई लोन के लिए सरकार की 100 प्रतिशत सॉवरेन गारंटी, क़र्ज़दारों को ये रक़म कभी न लौटाने के लिए प्रोत्साहित करेगी, और बैंकों को भी भविष्य में उन्हें क़र्ज़ देने के लिए हतोत्साहित करेगी.
कोविड-19 वायरस का मुक़ाबले करते हुए सरकार और लोगों के व्यवहारों में तो बदलाव आया ही है, आर्थिक तौरतरीके भी बदलेंगे. अब कृषि और ग्रामोद्योग ही भारत को मजबूती दे सकते हैं.
सवाल यह है कि इस बड़े पैकेज के लिए पैसा कहां से आएगा? टैक्स से कमाई और घरेलू उधार में इस साल गिरावट ही आएगी इसलिए भारत को विदेश से उधार लेने के लिए तैयार होना पड़ेगा.
अगर कोरोनावायरस का वैक्सीन मिलने तक लॉकडाउन जारी रखने का फैसला किया जाता है तब अर्थव्यवस्था, बाज़ार, और मुद्रा नीति की हमारी समझ को बिलकुल अनजानी चुनौती का सामना करना पड़ेगा.
सामाजिक दूरी कोरोनावायरस के खिलाफ सबसे कारगर उपाय है लेकिन इससे दुनिया की अर्थव्यवस्था की हालत और अधिक बिगड़ेगी. हालांकि भारत कई अन्य विकासशील देशों के मुक़ाबले बेहतर स्थिति में है.
स्वास्थ्य सेवाओं को अपनी बेहतर तैयारी के लिए लॉकडाउन से मदद तो मिलेगी मगर करोड़ों लोग बेरोजगार और बदहाल हो जाएंगे. बहरहाल, सरकार ने 1.7 लाख करोड़ के पैकेज की जो घोषणा की है उसे राहत पहुंचाने का शुरुआती कदम माना जा सकता है
राजकोषीय विस्तार वैसे तो अर्थव्यवस्था में सुस्ती के दौरान ही किया जाना चाहिए, पर उन आंकड़ों के आधार पर चर्चा बेमतलब है जिन पर कि लोग यकीन नहीं करते हों.
पांच खरब डॉलर वाली अर्थव्यवस्था बनने के लिए ‘नेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन’ नामक एक कार्यक्रम पेश किया गया है लेकिन इसके लिए आवश्यक पैसे को लंबे समय तक ताले में बंद रख पाना एक चुनौती होगी.
एक राष्ट्र, एक चुनाव के आलोचक मतदाताओं की थकान के बारे में नहीं सोच रहे हैं. जब चुनाव कई बार और लगातार होते हैं, तो शिक्षित मतदाता भी उन्हें एक अतिरिक्त छुट्टी के रूप में देखता है.