कम्प्रिहेंसिव मॉड्यूलर सर्वे में सामने आया कि भारत में माता-पिता औसतन हर साल एक बच्चे की पढ़ाई पर 12,616 रुपये खर्च करते हैं, रिपोर्ट में लड़के और लड़कियों की पढ़ाई पर खर्च में फर्क भी दिखा.
मॉड्यूल इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि विभाजन भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक चेतावनी है. "शासकों की दूरदर्शिता की कमी राष्ट्रीय आपदा बन सकती है. शांति पाने के लिए हिंसा को रियायत देना हिंसक समूहों की भूख को और बढ़ाता है."
एक तरफ जहां भारत में अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटियों की एंट्री और विदेशों में IITs का विस्तार हो रहा है, वहीं कई सरकारी संस्थान NEP 2020 की बुनियादी सिफारिशें लागू करने में भी जूझ रहे हैं.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति ज़मीनी स्तर पर कैसे लागू हो रही है, इसे समझने के लिए दिप्रिंट ने दिल्ली के एक मॉडल प्राइवेट स्कूल और हरियाणा के दो सरकारी स्कूलों का दौरा किया.
नीति में सुझाई गई कई योजनाएं अब लागू हो चुकी हैं, लेकिन इनका अमल हर जगह एक जैसा नहीं है. विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े पैमाने पर असर दिखने में अभी समय लगेगा.
आठवीं क्लास की समाजिक विज्ञान की नई एनसीईआरटी किताब में दिल्ली सल्तनत, मराठा और मुगल शासन का ज़िक्र; शिवाजी और बाबर-अकबर के बीच के अंतर को भी किया गया है रेखांकित.
यह 2023 के नए नेशनल करिकुलम के मुताबिक है, जिसे NEP के अनुसार बदला गया है. इसका मकसद है छात्रों पर बोर्ड एग्जाम का दबाव कम करना, इसलिए उन्हें साल में दो बार परीक्षा देने का मौका मिलेगा.