हिन्दी गीतों के क्रॉफ्ट में जो मधुरता, दर्द, चुलबुलेपन का पुट गीता दत्त लाईं, अगर वो न होतीं तो अच्छे गानों से हम महदूद हो जाते. लेकिन तकदीर ने गीता दत्त का साथ नहीं दिया और उनकी तदबीरें भी काम नहीं आईं.
सीकरी ने ‘तमस’, ‘मम्मो’, ‘सलीम लंगड़े पे मत रो’, ‘ज़ुबेदा’, ‘बधाई हो’ जैसी फिल्में की हैं और धारावाहिक ‘बालिका वधू’ में निभाए उनके ‘दादी सा’ के किरदार को भी काफी लोक्रपियता मिली थी.
सोनिया ने उनकी पत्नी शायरा बानो को लिखे पत्र में कहा, ‘आपके पति श्री दिलीप कुमार के निधन से भारतीय सिनेमा के स्वर्णिम युग का अंत हो गया. वह आजीवन किंवदंती रहे और भविष्य में भी रहेंगे. आने वाली पीढ़ियां भी उनकी फिल्में देखेंगी.’
मुंशी प्रेमचंद की जीवनी को उनके पुत्र और लेखक अमृत राय ने लिखा है. उन्होंने लिखा है कि अपने समय को खुली आंखों देखने और निर्भय होकर अपनी राय रखने वाले प्रेमचंद इस जीवनी में हर कोण से प्रकाशित हैं.
एक लंबा सिलसिला खत्म हो गया, एक ऐतिहासिक और सर्व-समावेशी परंपरा आकर थम गई, बहुआयामी व्यक्तित्व वाली शख्सियत की खूबियां हमारे सामने से गुजरने लगी और न जाने कितनी ही दिल और दिमाग में बिखरी यादों ने सिमटकर एक मूर्त रूप ले लिया- दिलीप कुमार साहब का.
भारतीय सिनेमा के गोल्डन एरा के शानदार अभिनेताओं में से एक दिलीप कुमार थे. उनका बहुआयामी व्यक्तित्व था. हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी भाषाओं पर उनकी जबरदस्त पकड़ थी.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर निवेदिता मेनन अपनी किताब 'नारीवादी निगाह से' में नारीवादी सिद्धांतों की बेहद जटिल अवधारणाओं को विस्तार से बताती हैं.