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Friday, 22 November, 2024
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बिहार में शराबबंदी की नई योजना : सप्लायर पकड़ने के लिए ग्राहकों से मुखबिरी की अपील

वरिष्ठ उत्पाद अधिकारी शराब पीने को सामाजिक बुराई बताते हैं. वह कहते हैं कि लोगों को सुधारा जा सकता है. वहीं, राज्य के एक मंत्री ने कहा कि शराबबंदी कानून में संशोधन वर्तमान विधानसभा सत्र में पेश किया जाएगा.

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पटना: बिहार में गैर-कानूनी शराब पीने वालों से जेलें भर गई हैं. यहां ‘शराबबंदी’ कानून लागू है, जिसकी कड़ी आलोचना होती रहती है. नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार कानून तोड़ने वालों को मुखबिर बनने का विकल्प दे रही है. ऐसा करके वे जेल जाने से बच सकते हैं.

सरकार ने यह फैसला तब लिया है, जब राज्य में प्रतिबंध के कड़े नियमों को सही से लागू नहीं कर पाने, इसे बनाने में ‘दूरदर्शिता का अभाव’, और इसके प्रावधानों के गलत इस्तेमाल के आरोप लग रहे हैं. पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 में ‘सौदेबाजी का अनुच्छेद’ जोड़ने की सरकार की तैयारी को लेकर आश्चर्य जताया था.

राज्य सरकार ने सोमवार को घोषणा की है कि शराब खरीदने वालों को जेल नहीं होगी, अगर वे बेचने वाले का नाम बताते हैं और छापे के बाद आरोपी को पकड़ा जाता है.

बिहार के उत्पाद विभाग के डिप्यूटी कमिश्नर कृष्ण कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘अब हमारा ध्यान शराब खरीदने वालों के बजाय इसे बेचने वालों पर है. हमें लगता है कि शराब पीना एक सामाजिक बुराई है और लोगों को बदला जा सकता है.’

एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘दूसरे शब्दों में कहें, तो विभाग ग्राहकों को मुखबिर बनने को कह रहा है.’

राज्य के मद्य निषेध एवं उत्पाद विभाग के मंत्री सुनील कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम चालू विधानसभा सत्र में शराबबंदी कानून में संशोधन प्रस्तावित करने वाले हैं.’

कानून क्या कहता है?

अप्रैल 2016 में नीतीश कुमार सरकार ने राज्य में शराबबंदी कानून लागू किया था. जब यह कानून लागू किया गया उस समय शराब पीने पर पांच से सात साल की कड़ी सजा का प्रावधान था. लेकिन, साल 2019 में इस कानून में बदलाव किया गया. जिसके बाद पहली बार पकड़े जाने पर 50,000 रुपये दंड लेकर छोड़ने या यह राशि नहीं दे पाने पर तीन महीने जेल की सजा देने का प्रावधान किया गया.

नाम नहीं छपने की शर्त पर आईजी रैंक के एक अधिकारी ने कहा, ‘मुझे पता है कि पुलिस कानून तोड़ने वालों पर ज़्यादा गंभीर प्रावधानों को लगाते हैं और उन्हें जेल में भेज देते हैं.’

कृष्ण कुमार के मुताबिक, अप्रैल 2016 के बाद से शराबबंदी कानून तोड़ने के मामले में करीब चार लाख लोगों को जेल में भेजा गया है.

राज्य की जेल, कैदियों से भरी हुई हैं. पटना की बेउर सेंटर जेल की क्षमता 2,360 कैदियों की है. जेल विभाग के सूत्रों के मुताबिक, यहां पर जनवरी महीने में 4,200 कैदी थे.

इसी तरह से बक्सर सेंट्रल जेल की क्षमता 1,141 कैदियों के रखने की है. लेकिन, यहां पर जनवरी में 2,300 से ज़्यादा कैदी थे. इसी महीने छपरा सेंट्रल जेल में 2,000 कैदी मौजूद थे, जिसकी कुल क्षमता 931 कैदियों की है.

जेल के एक अधिकारी ने कहा, ‘बिहार की जेल में ज्यादातर कैदी शराबबंदी कानून को तोड़ने वाले हैं.’


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चौतरफा आलोचना

पिछले साल दिसंबर में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमण ने शराबबंदी कानून बनाने में दूरदर्शिता की कमी के लिए बिहार सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि इससे न्यायिक प्रणाली बाधित हुई है.

फरवरी में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश ने शराबबंदी कानूनों से संबंधित मुकदमेबाजी की वजह से न्यायिक प्रणाली बाधित होने पर टिप्पणी करते हुए बिहार सरकार से पूछा कि क्या उसने शराब विरोधी कानूनों को लागू करने से पहले कोई स्टडी की थी. बिहार के शराबबंदी कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अगली सुनवाई 8 मार्च को होने वाली है.

बिहार सरकार ने शराबबंदी कानून में संशोधन करने की घोषणा की है. जिसके बाद, शराबबंदी कानून के तहत पहली बार पकड़े गए लोगों को मजिस्ट्रेट के यहां जुर्माना देने के बाद छोड़ा जा सकेगा. इससे न्यायपालिका पर बोझ कम होगा.

पटना हाईकोर्ट के वकील पीयूष रंजन ने कहा, ‘राज्य सरकार जो कुछ भी कह रही है उसे खास तौर पर कानून में शामिल किया जाना चाहिए. पुलिस और आबकारी विभाग अक्सर शराबबंदी कानूनों का गलत इस्तेमाल करते हैं.’

उन्होंने कहा कि पहली बार शराबबंदी कानून तोड़ने पर 50,000 रुपये देकर छोड़ने के प्रावधान का पुलिस कभी-कभार ही इस्तेमाल करती है, और कानून तोड़ने वाले ज़्यादातर लोगों को जेल भेज दिया जाता है.

‘जेल से लौटने पर शराब के सप्लायर मुखबिर की हत्या कर सकते हैं’

शराब पीने वालों को सरकार की इस घोषणा से भले ही राहत मिली हो, लेकिन विपक्षी पार्टी सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाती है.

आरजेडी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा, ‘शराब माफिया का नाम जाहिर करने वाले ग्राहक उनके निशाने पर आ जाएंगे. शराब की सप्लाई करने वाले जेल से बाहर आने के बाद, हो सकता है कि मुखबिर की हत्या कर दे.’

यादव, शराब के कारोबार का भंडाफोड़ करने के लिए चॉपर और ड्रोन मंगवाने के सरकार के फैसले पर भी सवाल उठाते हैं.

इससे पहले जनवरी में बिहार शिक्षा विभाग की ओर से जारी एक निर्देश के बाद विवाद शुरू हो गया था. विभाग ने सरकारी शिक्षकों को शराबबंदी कानूनों को तोड़ने वालों की ‘निगरानी’ का आदेश दिया था. शिक्षकों की एक बड़ी संख्या ने आदेश मानने से इनकार कर दिया था. उनका कहना था कि ऐसा करने पर उन्हें शराब माफिया निशाना बना सकते हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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