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Saturday, 20 April, 2024
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दो साल बाद नीतीश और प्रशांत किशोर की मुलाकात से सुगबुगाहटें तेज, लेकिन साथ आने की संभावना कम

राजनीतिक रणनीतिकार किशोर के करीबी सहयोगियों का कहना है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए ‘कुछ नहीं किया जा सकता है’ क्योंकि भाजपा के साथ उनका गठबंधन बहुत गहरा है और उनमें ‘विश्वसनीयता’ का भी अभाव है.

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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जाने-माने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की शनिवार को दिल्ली में हुई मुलाकात को लेकर भले ही सियासी गलियारों में सुगबुगाहटें तेज हो गई हों, लेकिन सूत्रों का कहना है कि प्रशांत किशोर को जनता दल (यूनाइटेड) से निकाले जाने के दो साल बाद अचानक हुई इस मुलाकात से दोनों के तीसरी बार साथ आने की कोई संभावना नहीं है.

प्रशांत किशोर ने मीडिया से बातचीत में इसे ‘एक शिष्टाचार भेंट’ बताया. प्रशांत किशोर के साथ अपने पुराने ‘संबंधों’ को याद करते हुए नीतीश ने भी यही बात दोहराई. गौरतलब है कि बिहार के मूल निवासी किशोर पूर्व में उनके करीबी सलाहकार और पार्टी उपाध्यक्ष रह चुके हैं.

प्रशांत किशोर के एक करीबी ने कहा, ‘बैठक का कोई सियासी नतीजा निकलने की संभावना नहीं है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन बहुत ही गहरा है. उनके लिए उससे बाहर निकलना लगभग असंभव है. साथ ही उनमें विश्वसनीयता का भी अभाव है.’

सूत्र ने यह भी कहा कि नीतीश की पार्टी जदयू के नेता, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और मौजूदा समय में केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह मुख्यमंत्री के सबसे करीबी सहयोगी बने हुए हैं, ‘और यह बात किसी से छिपी नहीं है कि वह आरसीपी सिंह ही थे जिनकी 2019 में प्रशांत किशोर के जदयू से बाहर होने में अहम भूमिका रही थी.’

सूत्र ने कहा, ‘प्रशांत किशोर को लगता है कि अभी भाजपा विरोधी मोर्चों में नीतीश कुमार के लिए कुछ नहीं किया जा सकता क्योंकि न केवल उनकी विश्वसनीयता घटी है बल्कि सीएए आंदोलन के दौरान चुप्पी साधकर उन्होंने मुस्लिम आबादी का भरोसा खो दिया है.’

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प्रशांत किशोर के करीबी सूत्रों ने बताया कि यह बैठक नीतीश कुमार के कहने पर हुई थी, जिन्होंने किशोर को फोन करके कहा था कि वह उनसे मिलना चाहते हैं. इसके जवाब में प्रशांत किशोर ने कहा था कि मुख्यमंत्री जब भी दिल्ली में हों, उनसे मिल सकते हैं. नीतीश शनिवार को पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के बेटे की शादी में शामिल होने के लिए दिल्ली में थे.


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पहले दो बार आए थे साथ

नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर पहले दो बार एक साथ काम कर चुके हैं. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में जब नीतीश और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने हाथ मिलाए तो प्रशांत किशोर मुख्यमंत्री के करीबी सलाहकार बन गए, जिनसे वह इसके पिछले साल ही मिले थे.

उन्हें न केवल अभियान के राजनीतिक विज्ञापनों का जिम्मा मिला, बल्कि महागठबंधन में सीट बंटवारे के प्रभारी भी वही थे, जिसमें उस समय राजद, जदयू और कांग्रेस शामिल थे. किशोर की भूमिका को देखते हुए लालू उन्हें ‘नीतीश का दिमाग’ बुलाते थे.

महागठबंधन की जीत के बाद नीतीश ने प्रशांत किशोर को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने के साथ एक नवगठित निकाय बिहार विकास मिशन का उपाध्यक्ष बनाया, जिस पर राज्य के विकास के लिए नई प्रतिभाओं को सामने लाने की जिम्मेदारी थी.

लेकिन नीतीश की तरफ से बिहार में शराबबंदी लागू किए जाने के बाद प्रशांत किशोर की इस मिशन में कोई रुचि नहीं रही, उनका कहना था कि प्रतिबंध नई प्रतिभाओं के बिहार आने में बाधा बन रहा है.

बिहार में किशोर की भूमिका भी सीमित रह गई क्योंकि देश भर में अन्य भाजपा विरोधी दलों के साथ उनका जुड़ाव और ज्यादा अहम हो गया. 2017 में महागठबंधन टूटने के बाद उनका आधिकारिक कार्यकाल बिना किसी शोर-शराबे के खत्म हो गया और नीतीश ने किशोर की आलोचक मानी जाने वाली भाजपा और लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) के साथ एक नई गठबंधन सरकार बना ली.

हालांकि, प्रशांत किशोर और नीतीश 2018 में एक बार फिर साथ आए, जब नीतीश ने उन्हें जदयू में शामिल किया और पार्टी के प्रति युवा पीढ़ी का रुझान बढ़ाने की जिम्मेदारी के साथ उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया.

प्रशांत किशोर ने तत्काल ही पूरी सक्रियता से काम करना शुरू कर दिया और उनके नेतृत्व में पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ को दिसंबर 2018 में पहली बार जदयू की छात्र इकाई का अध्यक्ष मिला, जबकि इसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का गढ़ माना जाता था.

हालांकि, इस अभियान में किशोर की भूमिका को लेकर उन्हें भाजपा नेताओं की नाराजगी झेलनी पड़ी, कई विधायकों ने उनके खिलाफ धरना तक दिया. आरोप लगा कि उन्होंने नतीजों में हेरफेर के लिए गड़बड़ी का सहारा लिया.

2019 में लोकसभा चुनाव आते-आते नीतीश ने अपने कदम पीछे खींच लिए और किशोर को उस समिति से बाहर कर दिया गया जिसने आम चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे का फैसला किया था.

यह जोड़ी टूटने का आखिरी मुकाम तब आया जब किशोर ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर खुलकर अपनी चिंता जताई और नीतीश चुप्पी साधे रहे. यही प्रशांत किशोर और पूर्व सांसद पवन वर्मा दोनों को जदयू से बाहर किए जाने की कारण भी बना.

किशोर के एक करीबी सूत्र ने यह भी बताया, ‘दूसरी बार साथ होने के दौरान प्रशांत किशोर को अगले विधानसभा चुनावों (2020) के लिए काम करने को कहा गया था, जिसमें जदयू की योजना भाजपा के बिना चुनाव लड़ने की थी. उस समय (राजद नेता) तेजस्वी यादव ने यह कहते हुए भविष्य में जदयू के साथ कोई गठबंधन करने से इनकार कर दिया था कि यह सुनिश्चित नहीं हो सकता कि नीतीश फिर पीछे नहीं हटेंगे.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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