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Wednesday, 1 May, 2024
होमविदेश‘तालिबान को हमारी सलाह होगी कि वे शहरी युद्ध से बचें', पूर्व अफगान PM हिकमतयार ने मौजूदा संकट के लिए गनी को दोषी ठहराया

‘तालिबान को हमारी सलाह होगी कि वे शहरी युद्ध से बचें’, पूर्व अफगान PM हिकमतयार ने मौजूदा संकट के लिए गनी को दोषी ठहराया

काबुल में दिप्रिंट को दिए गये विशेष साक्षात्कार में, पूर्व अफ़ग़ान प्रधानमंत्री गुलबुद्दीन हिकमतयार, जो तालिबान को सत्ता के हस्तांतरण की देखरेख करने वाली समिति का एक हिस्सा हैं, कहते हैं कि अब चुनाव हीं आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है.

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काबुल: अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री गुलबुद्दीन हिकमतयार ने कहा कि तालिबान को किसी भी तरह के उग्र प्रदर्शन से बचना चाहिए क्योंकि यह ‘शहरी युद्ध’ की वजह बनता है और यहां से आगे जाने का एकमात्र समाधान नये चुनाव कराना होगा.

तालिबान के अफगानिस्तान की राजधानी में दाखिल होने और राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर भाग जाने के जैसी घटनाओं के बीच इस रविवार काबुल के अपने कार्यालय में दिप्रिंट के साथ एक विशेष बातचीत में हिकमतयार -जो अब एक शक्तिशाली आवाज के रूप में उभरे हैं – ने कहा कि अफगानिस्तान में अमेरिका का दाखिल होना, यहां ज़ंग छेड़ना और फिर उसका बेतरतीब ढंग से यहां से वापसनिकलना – ये सभी बड़ी गलतियां थीं.

अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ गनी और उनके डिप्टी अमरुल्ला सालेह के तजाकिस्तान भाग जाने के बाद पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, अब्दुल्ला अब्दुल्ला और हिकमतयार ने मिलकर तालिबान को सत्ता के सुचारू रूप से हस्तांतरण की निगरानी के लिए एक समिति गठित की है.

हिज़्ब-ए-इस्लामी नाम की पार्टी के इस नेता ने कहा, ‘तालिबान को पहले और अब भी हमारी यही सलाह है कि उन्हें शहरी युद्ध से बचने चाहिए क्योंकि इसकी लोगों की हत्याओं और बुनियादी ढांचे के नुकसान के रूप में बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, और मैं अब भी उनसे राजधानी (काबुल) की ओर कूच नहीं करने की गुज़ारिश करते हैं. मुझे लगता है कि यहां से आगे का एकमात्र समाधान आपसे में मिल बैठकर एक ट्रांज़िशनल सरकार के गठन पर चर्चा करना है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता नये चुनाव करवाना होगा. हमें एक ऐसी निष्पक्ष ट्रांज़िशनल सरकार बनानी चाहिए जो ऐसे लोगों से मिलकर बनी हो जिनकी अच्छी प्रतिष्ठा हो और जो पिछले 20 वर्षों में सिर्फ़ कत्लोगारत में हीं व्यस्त नहीं रहे हों.’

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कभी इस देश में ‘काबुल का कसाई’ वाले उपनाम के साथ खूंखार शख्सियत माने जाने वाले, हिकमत्यार ने 2019 में वह राष्ट्रपति भी चुनाव लड़ा था जिसमें गनी जीते थे. अब एक प्रभावशाली अफगान राजनीतिक नेता के रूप में उनका दावा है कि वह राष्ट्रपति चुनाव एक ‘धोखाधड़ी’ थी और वह और उनकी पार्टी हमेशा से ‘पारदर्शी चुनाव’ के पक्षधर रहे हैं.

उन्होंने कहा. ‘वह सब एक दिखावा था. कोई भी मतपत्रों के द्वारा नहीं चुना गया था. न तो जंग और न ही फर्जी चुनाव आपके सत्ता हासिल करने का रास्ता होना चाहिए.’ ‘तालिबान के कब्जा जमाने से साफ पता चलता है कि गनी सरकार लोगों के बीच अलोकप्रिय थी.’

यह पूछे जाने पर कि आख़िर तालिबान ने इतनी बिजली जैसी रफ़्तार से अफगानिस्तान पर, प्रांत-दर-प्रांत और जिलों के बाद जिलों, पर अपना कब्जा हासिल करने में कैसे कामयाबी हासिल की, हिकमतयार ने अफ़ग़ान शासन की इस विफलता के लिए खुले तौर पर गनी सरकार को दोषी ठहराया.

हिकमतयार के मुताबिक, ‘एक-के-बाद एक सूबे, शहर और जिले बिना किसी प्रतिरोध के ताश के पत्तों की तरह ढह गए क्योंकि कोई भी (गनी) शासन को पसंद नहीं करता था. इससे साफ पता चलता है कि कोई भी सरकार के साथ खड़ा होने या उसमें अपनी हिस्सेदारी रखने को तैयार नहीं था. दूसरी ओर, हमारी अपनी स्थानीय आबादी बग़ावत कर रही थी, इलाक़ों पर अपना कब्जा कर रही थी और तालिबान के प्रति वफ़ादारी की कसमें खा रही थी. यह सब कुछ शासन की अलोकप्रियता और उनके प्रशासन की विफलता को दिखाने के लिए काफ़ी है.‘

उनका कहना था, ‘असलियत तो यह है कि तालिबान दक्षिण से उत्तर की ओर नहीं बढ़े. ये स्थानीय लड़ाके थे जो हर सूबे में सामने आए और उन्होने वहां की व्यवस्था को उखाड़ फेंका. हमने देखा कि जब दोस्तम के घर में कब्जा हुआ, तो उज़बेकों ने हीं उस पर कब्जा किया था, बदख्शां में, बदखासनिया ही स्थानीय प्रांतों से लड़ रहे हैं और असलियत यह है कि जिन लोगों ने इस सरकार की सबसे खराब स्थिति देखी थी, वे सरकार से थक गए थे और उन्होने इसे हटाने का पहला संभव और व्यावहारिक विकल्प चुना लिया.’

‘हम जो कुछ भी कर रहे थे, वह जंग के लिए उकसाने वाले लोगों और सत्ता पर अपना एकाधिकार करने वालों से बचने की कोशिश थी और हम अफगानिस्तान के लिए एक शांतिपूर्ण समझौते की ओर बढ़ना चाहते थे. अगर उन्होंने (गनी सरकार) इस पर ध्यान दिया होता, तो हम उस स्थिति में नहीं होते, जिसमें हम अभी हैं. आज, सब कुछ तालिबान के कब्ज़े मे है, और अगर उन्होंने (सरकार) समय रहते कार्रवाई की होती या हमारी बात सुनी होती, तो ऐसा नहीं होता.’

‘अमेरिका का दाखिल होना, निकलना – दोनों बड़ी भूल थी ‘

हिकमत्यार ने कहा, ‘गनी सरकार, जिसने इस रविवार को प्रेसिडेंशियल पैलेस पर तालिबान के कब्जा कर लेने के बाद उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया, का पतन पहले से हीं ‘अनुमानित’ और ‘अपेक्षित’ घटनाक्रम था. मैंने उन्हें चेतावनी दी थी कि वे वही गलती फिर से न दोहराएं. मैंने उनसे कहा थे कि अंततः उन्हें सिर झुकाकर जाना होगा और ठीक वैसा हीं हुआ.’

अमेरिका की हड़बड़ी में और उलझे हुए तरीके से सैनिकों की वापसी पर इस अफगान नेता ने कहा कि अमेरिका ने केवल अपने सैनिकों को निकाला और फिर उन्हें दुबारा भेजना पड़ा.

उन्होंने जोर देते हुए कहा, ‘उनका अफगानिस्तान में दाखिल होना एक भूल थी और फिर जिस तरह से वे बाहर निकले वह एक और बड़ी भूल थी, और अब हमने फिर से उनके सैनिकों को वापस आते देखा है, यह सिर्फ इस बात को साबित करता है कि उनकी वापसी एक गलती थी.’

इस बात पर रोशनी डालते हुए कि अमेरिका को अपनी वापसी से पहला अपना होमवर्क करना चाहिए था और सभी पार्टियों, विशेष रूप से अफगान सरकार को, एक ट्रांज़िशनल गवर्नमेंट को सत्ता के हस्तांतरण के लिए कुछ शर्तों पर सहमत होने के लिए अथवा एक युद्धविराम आदि के लिए राज़ी करना चाहिए था, हिकमतयार का कहना है कि, ‘ऐसा करना सभी की जिंदगी को आसान बना देता. लेकिन वे अफगानिस्तान के बारे में बिना कोई योजना तैयार किए वापस चले गए.’


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उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका बिना किसी प्रकार की पृष्ठभूमि की जानकारी के केवल उन्हीं लोगों को सत्ता में लाने में विश्वास करता है जिन्हें बे अपने उपयुक्त समझता है.

उनका कहना है, ‘उन्होंने (अमेरिका ने) कभी भी किसी लोकप्रिय वयक्ति का समर्थन नहीं किया. अमेरिका ने अफगानिस्तान के भीतर एक बड़ी गलती यह की कि उन्होंने उन लोगों में निवेश किया जो स्थानीय रूप से लोकप्रिय नहीं थे. सरकार के पतन के, नाटो सहयोगियों की हार आदि के पीछे प्रमुख कारण ऐसे अलोकप्रिय लोगों पर दांव लगाना है.’

‘दिल्ली, इस्लामाबाद को अपनी आपसी रंजिश अफगानिस्तान में नहीं लानी चाहिए’

हिकमतयार के अनुसार, भारत और पाकिस्तान को अपनी आपसी रंजिश को एक ओर अलग रखना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह अफगानिस्तान में न फैले.

उन्होने कहा, ‘दुर्भाग्य से, यदि आप बार-बार दुहराए जाने वाले इतिहास को देखें तो हमने हमेशा अपने पड़ोसियों से, पास वाले और दूर वालों दोनों को, अफगान लोगों के साथ खड़े होने के लिए कहा है, न कि साम्राज्यवादियों के साथ.’

उन्होंने कहा, ‘भारत के औपनिवेशिक इतिहास और उस दौरान इसने जो सब झेला है, यह जानने के बाद, अफगान लोगों को उम्मीद थी कि भारत सोवियत संघ, जिसे भारत ने चुना था, के बजाय यहां के मुजाहिदों (आज़ादी के लड़ाकों) के साथ खड़ा होगा.’

उन्होंने यह भी कहा, ‘जब नाटो की सेनाओं ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया, तो हमने इस जंग में भारत और पाकिस्तान दोनों को नाटो के साथ खड़ा देखा. हमारी शिकायत स्पष्ट रूप से उस रुख़ के खिलाफ है जो दोनों देशों ने अपनाया था.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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