scorecardresearch
Thursday, 25 April, 2024
होमराजनीति'आप कांग्रेस में क्या कर रहे हैं, अरुण भैया?' शिवराज इस नेता को BJP में क्यों लाना चाहते हैं

‘आप कांग्रेस में क्या कर रहे हैं, अरुण भैया?’ शिवराज इस नेता को BJP में क्यों लाना चाहते हैं

मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान और अन्य भाजपा नेताओं ने 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से कांग्रेस के अरुण यादव को कई बार पार्टी में शामिल होने के लिए कहा है.

Text Size:

नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी कांग्रेस के ओबीसी चेहरे अरुण सुभाष यादव को शामिल करने की पूरी कोशिश कर रही है. भाजपा ने यादव से पिछले सप्ताह सहित, 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से कई मौकों पर पार्टी में शामिल होने की अपील की है.

ताजा अपील सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से आई है, जो कि मप्र स्थानीय निकाय चुनावों से ठीक पहले आयी है. चौहान ने चुनाव प्रचार के दौरान भाषण देते हुए यादव को भाजपा में शामिल होने को कहा.

सीएम ने पूछा, ‘आप कांग्रेस में क्या कर रहे हैं, अरुण भैया? आओ और भाजपा में शामिल हो. कांग्रेस में सिर्फ कमलनाथ ही राज कर रहे हैं. पहले वे (राज्य) अध्यक्ष बने, फिर मुख्यमंत्री… वे हर जगह हैं. आप वहां क्या करेंगे? कांग्रेस में आपकी देखभाल कौन कर रहा है?’

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि यादव को लुभाने के पीछे दो तरह के उद्देश्य हैं – पहला, राज्य के निमाड़ क्षेत्र में भाजपा के आधार को मजबूत करना, जहां कांग्रेसियों का बोलबाला है और दूसरा, कांग्रेस को कमजोर करना है.

निमाड़ क्षेत्र, जिसमें खंडवा और खरगोन शामिल हैं, कभी भाजपा का गढ़ था, जिसे 2018 में कांग्रेस ने छीन लिया था.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

भाजपा के एक सूत्र ने कहा, ‘अरुण यादव एक युवा ओबीसी नेता हैं, जिनका खरगोन क्षेत्र में प्रभाव है, जहां पार्टी 2018 के विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर हार गई थी.’

मध्य प्रदेश भाजपा के उपाध्यक्ष जीतू जिराती ने कहा कि पार्टी युवा प्रतिभाओं और युवा आकांक्षी नेताओं के श्रम का सम्मान करती है.

उन्होंने कहा, ‘भाजपा में सबके लिए जगह है. अरुण यादव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष थे (2014 में) और जमीन पर अथक परिश्रम किया. लेकिन जब उन्हें श्रेय देने का समय आया, तो न तो उन्हें राज्यसभा की सीट मिली और जब कमलनाथ (2018 में) मुख्यमंत्री बने, न ही सरकार में कोई भूमिका मिली. उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस कभी भी यादव जैसे युवा नेताओं की आकांक्षाओं का सम्मान नहीं करती है.’

यादव पर नज़र

लगभग दो दर्जन विधायकों के साथ तत्कालीन कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी से अलग होने के बाद मार्च 2020 में मध्य प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई. उनके इस कदम से कमलनाथ की 15 महीने पुरानी सरकार गिर गई.

पार्टी सूत्रों के मुताबिक, 2023 में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए बीजेपी यादव जैसे मजबूत नेताओं को साथ लाकर कांग्रेस को और कमजोर करने का लक्ष्य लेकर चल रही है.

कुछ अनुमानों के अनुसार मध्य प्रदेश में 51 प्रतिशत आबादी ओबीसी है. यादव मतदाता लगभग 13 प्रतिशत हैं.

मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर यादव के निधन के बाद से भाजपा के पास राज्य में एक यादव नेता की कमी है.

पार्टी निमाड़ क्षेत्र में अपने मजबूत नेता दिवंगत नंदकुमार चौहान की जगह एक मजबूत नेता की तलाश कर रही है. नंदकुमार 1996 और 2019 के बीच खंडवा से छह बार सांसद रहे (केवल 2009 में हारे).

मध्य प्रदेश में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अरुण यादव पर अपनी निगाहें टिका दी हैं, उनसे बार बार अपील कर रहे हैं और उनके पिता, दिवंगत कांग्रेसी सुभाष यादव को याद कर रहे हैं, जो 1993 से 1998 तक मप्र में उप-मुख्यमंत्री थे.

वह एक प्रमुख राज्य ओबीसी नेता भी थे, लेकिन 1993 में दिग्विजय सिंह के सीएम बनने के बाद एक दावेदार के रूप में देखे जाने के बावजूद, उन्हें मुख्यमंत्री का पद नहीं मिला.

पिछले महीने, एमपी के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने टिप्पणी की थी कि ‘भाजपा ने मध्य प्रदेश को ओबीसी समुदाय (चौहान, उमा भारती और बाबूलाल गौर) से तीन मुख्यमंत्री दिए हैं.’

2018 में, विधानसभा चुनाव से पहले, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने अरुण यादव को पार्टी में शामिल होने के लिए कहा था, जबकि मिश्रा ने 2021 के खंडवा उपचुनाव से पहले एक निमंत्रण दिया था, जो उस वर्ष नंदकुमार की मृत्यु के के बाद जरूरी हो गया था.  राज्य के अन्य वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों ने भी अरुण यादव को यही पेशकश की है.


यह भी पढ़ें : अखिलेश और उनके सहयोगी ओमप्रकाश राजभर के बीच BSP को लेकर क्यों हो रहा विवाद


‘यादव को भुनाना चाहती है भाजपा’

जैसा कि सिंधिया को भाजपा ने अपने पाले में किया वैसे ही अरुण यादव के ‘कांग्रेस में हाशिए पर जाने’ के रूप में वर्णित करने के लिए काम कर रही है.

यादव ने छात्र राजनीति से अपनी यात्रा शुरू की, केंद्र में मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान केंद्रीय राज्य मंत्री (2009-2011) थे, और 2014 में मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) के अध्यक्ष बने.

उन्हें 2018 में कांग्रेस को सत्ता में लाने के लिए जमीन पर कड़ी मेहनत करने के लिए जाना जाता है, लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ को एमपीसीसी प्रमुख के रूप में बदल दिया गया.

यादव 2009 में खंडवा से भाजपा के नंदकुमार चौहान के खिलाफ सांसद के रूप में जीते थे लेकिन 2014 और 2019 में उनसे हार गए थे.

पिछले हफ्ते चौहान द्वारा भाजपा में शामिल होने की अपील के बाद, यादव ने जवाब में ट्वीट किया, ‘आपने कांग्रेस के एक छोटे से कार्यकर्ता को सत्ता में आमंत्रित किया है. कांग्रेस पार्टी ने मुझे और मेरे परिवार को बिन मांगे ही बहुत कुछ दिया है. हम सत्ता में ज़रूर आयेंगे, मगर भाजपा के साथ नहीं कांग्रेस की सरकार बनाकर आएंगें.

2021 में खंडवा में लोकसभा उपचुनाव से पहले, यादव ने चुनाव प्रचार के दौरान दौड़ से बाहर होने का विकल्प चुना था और अपनी नाराजगी के बारे में बात की थी.

उन्होंने उस वर्ष कमलनाथ को राज्य नेतृत्व दिए जाने के स्पष्ट संदर्भ में कहा था कि फसल मैं उगाता हूं, काट कोई और ले जाता है. 2018 में भी मेरे साथ ऐसा हुआ था.

इस साल अप्रैल में, यादव एमपी में राज्यसभा सीट के लिए एक दावेदार थे, और यहां तक ​​​​कि कमलनाथ को पार्टी की एक बैठक में ‘सत्ता में ओबीसी हिस्सेदारी का सम्मान करने के लिए’ याद दिलाने की कोशिश की, लेकिन नामांकन से इनकार कर दिया गया. उनकी की जगह मौजूदा सांसद विवेक तन्खा को मनोनीत किया गया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : BJP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में देवेंद्र फडणवीस का जिक्र तो हुआ लेकिन श्रेय नहीं दिया गया


 

share & View comments