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Friday, 19 April, 2024
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BJP की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में देवेंद्र फडणवीस का जिक्र तो हुआ लेकिन श्रेय नहीं दिया गया

हैदराबाद में हेमंत बिस्वा सरमा, योगी आदित्यनाथ और वसुंधरा राजे को सम्मान और प्रशंसा मिली लेकिन समारोह की सारी कार्यवाही पीएम मोदी के इर्द-गिर्द ही रही.

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हैदराबाद: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के मौजूदा और पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित अधिकांश क्षत्रपों के पास सप्ताहांत में हैदराबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक में अपने साथ ले जाने के लिए बहुत कुछ था.

उदाहरण के तौर पर, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पास संतुष्ट और आश्वस्त होकर वापस जाने के कारण थे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे काफी गर्मजोशी से पेश आए. उन्होंने उनसे पूछा, ‘कैसी हैं, वसुंधरा जी? निहारिका कैसी है?’ राजे की बहू निहारिका गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं और अब ठीक हो रही है. निहारिका के पति दुष्यंत सिंह बीजेपी सांसद हैं. भले ही इस वजह से मोदी को उनकी पत्नी का नाम याद था और उनके स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ की. लेकिन राजे के लिए यह सुकून देने वाला था क्योंकि वह पार्टी आलाकमान के साथ मतभेद में रही हैं. समझा जाता है कि प्रधानमंत्री ने उनसे कहा था, ‘कुछ भी जरूरत पड़े, मुझे बताइएगा.’

हालांकि, उन्हें किन्हीं और वजहों से उनकी मदद की ज्यादा जरूरत हो सकती है. वह राजस्थान में पार्टी की एकमात्र जन नेता बनी हुई हैं और अगले साल मुख्यमंत्री कार्यालय में तीसरे कार्यकाल के लिए उनके लिए मौका है.

मगर आलाकमान उन्हें दरकिनार करने और उसके प्रतिद्वंद्वियों को बढ़ावा देने की कोशिशों में जुटे हुए हैं. उनके संबंधों में और तनाव तब आया जब राजे के करीबी माने जाने वाले धौलपुर के भाजपा विधायक ने हाल के राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार को वोट दिया. इन चुनावों में भाजपा आलाकमान ने उनके पुराने विरोधी घनश्याम तिवारी को मैदान में उतारने का फैसला किया था.

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वैसे हैदराबाद की बैठक में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री को सीधे तौर पर शांत करने के प्रयास भी किए गए. उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के पहले दिन, एक लंबे समय में राजस्थान के बाहर पहली बार एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने के लिए चुना गया था.

तेलंगाना के एक नेता रामचंदर राव ने उन्हें दो बार ‘विजयराजे’ के रूप में पेश किया और जब वह सवाल पूछना चाहती थीं, तो पार्टी के मीडिया सह-प्रभारी संजय मयूख ने उन्हें कई बार बीच में ही रोक दिया. वसुंधरा राजे का शो प्रभावशाली था क्योंकि वह अपने सबसे अच्छे रूप में थीं.

पिछले साल एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने मयूख की सलाह को अनसुना कर दिया और सवाल करना जारी रखा, तो इसे अचानक बंद कर दिया गया. हैदराबाद में पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजे, मयूख के अनावश्यक हस्तक्षेपों पर मुस्कराती दिखीं, क्योंकि वह आगे बढ़ रही थीं.

उद्घाटन समारोह में वह उन चुनिंदा लोगों में से एक थीं जिन्हें दीप प्रज्वलित करने के लिए कहा गया था. हैदराबाद में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के बाद राजे तुरंत राजस्थान वापस आ गईं. वह विस्तारा की उड़ान से दिल्ली लौटीं और उनके इंतजार में खड़े एक हेलीकॉप्टर में सवार होकर उदयपुर रवाना हो गईं. वहां जाकर उन्होंने कन्हैया लाल के परिवार के साथ शोक व्यक्त किया. कन्हैया लाल- एक दर्जी जिसकी दो मुस्लिम कट्टरपंथियों ने हत्या कर दी थी.

वैसे तो लगभग सभी भाजपा मुख्यमंत्री राष्ट्रीय कार्यकारिणी को संबोधित कर रहे थे, लेकिन असम के हेमंत बिस्वा सरमा कुछ खास अंदाज में नजर आए. राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उनके भाषण को भाजपा के एक पदाधिकारी ने ‘मोदीजी के बाद सबसे प्रभावशाली भाषण’ बताया था. सरमा ने कहा कि भाजपा ने असम में मुस्लिम बहुल नगरपालिका वार्डों को जीतना शुरू कर दिया है. बैठक में शामिल भाजपा पदाधिकारियों के अनुसार, इससे पता चलता है कि उन पर पार्टी के नेतृत्व वाली सरकारों के कल्याणकारी कार्यों का प्रभाव पड़ रहा है.

पार्टी पदाधिकारियों ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसी तरह के विचार व्यक्त किए और कहा कि कैसे मुस्लिम महिलाओं ने भाजपा को वोट देना शुरू कर दिया है.

सरमा और योगी के विचारों ने सही तालमेल बिठाया क्योंकि पीएम ने अंत में राष्ट्रीय कार्यकारिणी को अपने संबोधन में उनका समर्थन किया. उन्होंने पार्टी नेताओं से गैर-हिंदुओं के वंचित वर्गों तक भी पहुंचने के लिए कहा. उन्होंने पार्टी से असम के ईसाई नेताओं को केरल ले जाने के लिए कहा, ताकि यह बताया जा सके कि भाजपा सरकारें ईसाइयों के हित में क्या काम करती हैं.

हिमंत बिस्वा सरमा को पार्टी के राजनीतिक संकल्प और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के भाषण के बारे में ब्रीफिंग करने के लिए भी कहा गया था – एक ऐसा काम, जो पार्टी की योजना में एक नेता के कद को दर्शाता है.

अन्य क्षत्रपों को भी हैदराबाद में खुश होने का कारण मिला. उदाहरण के लिए कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को सरमा के साथ पार्टी के राजनीतिक प्रस्ताव को पूरा करने का जिम्मा सौंपा गया था.


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प्रस्ताव में महाराष्ट्र का थोड़ा सा जिक्र

हैरानी की बात यह है कि हैदराबाद की बैठक में पूरे शीर्ष नेताओं की उपस्थिति में भाजपा महाराष्ट्र के घटनाक्रम को कमतर आंकती दिखी. महाराष्ट्र के लिए सिर्फ एक पारित संदर्भ था – 13 पन्नों के लंबे राजनीतिक प्रस्ताव में एक पैराग्राफ में छोटा सा जिक्र. इसमें उल्लेख किया गया है कि कैसे महाराष्ट्र के विकास और लोगों के कल्याण के लिए, भाजपा ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री के रूप में समर्थन दिया और फडणवीस ने डिप्टी सीएम के रूप में शपथ ली.

राजनीतिक संकल्प में कहा गया, ‘इस कदम ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि भाजपा कभी सत्ता की लालसा नहीं रखती, बल्कि निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा करने और उनके कल्याण के लिए काम करने में विश्वास रखती है. नेतृत्व में महाराष्ट्र के लोगों की सेवा करने के लक्ष्य के साथ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विचार से हम एक बार फिर विकास और सुशासन के पथ पर कदम आगे बढ़ाएंगे.’

जबकि भाजपा नेतृत्व महा विकास अघाड़ी के ‘अवसरवादी और गैर-सैद्धांतिक गठबंधन’ को समाप्त करने का श्रेय दिए जाने की तलाश में थे, फडणवीस के नेतृत्व की कोई सराहना नहीं की गई या राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य में पार्टी को सत्ता में वापस लाने के लिए उनके योगदान की कोई स्वीकृति नहीं थी. जब भाजपा राजनीतिक प्रस्ताव पर चर्चा कर रही थी, तब शिवसेना को विभाजित करके और उनकी ही की पार्टी में उद्धव ठाकरे के दबदबे को ध्वस्त करके खुद को एक मास्टर रणनीतिकार साबित करने वाले फडणवीस, मुंबई में विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव करने के लिए बलों को जुटाने में व्यस्त थे.

हैदराबाद में दो दिनों में पार्टी के आधा दर्जन शीर्ष नेताओं द्वारा संबोधित किसी भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि कैसे फडणवीस ने अकेले ही महाराष्ट्र में भाजपा को सत्ता में वापस ला दिया. केवल आलाकमान द्वारा डिप्टी सीएम के रूप में डिमोशन को स्वीकार करने का निर्देश दिया गया था. जाहिर तौर पर यह पार्टी के व्यापक हित में था. लेकिन बैठक में आदित्यनाथ के भाषण या हैदराबाद के भाग्यलक्ष्मी मंदिर में उनकी यात्रा का कोई जिक्र नहीं था. मोदी, अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जो कहा, पार्टी ब्रीफिंग बस वहीं तक सीमित थी.


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