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Friday, 29 March, 2024
होमदेशकाशी ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर विहिप ने कहा, अगर वहां वास्तव में शिवलिंग है, तो सब कुछ बदल जाएगा

काशी ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर विहिप ने कहा, अगर वहां वास्तव में शिवलिंग है, तो सब कुछ बदल जाएगा

विहिप के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, उन्हें विश्वास था कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर एक शिवलिंग है, लेकिन वह अदालत के फैसले का इंतजार करेंगे.

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नई दिल्ली: विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के केंद्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 1991 के प्रावधान ‘पत्थर की लकीर नहीं’ हैं और संसद को इसकी समीक्षा करने से नहीं रोका जाना चाहिए.

कुमार एक वकील भी हैं. उन्होंने दिप्रिंट से बात करते हुए दावा किया कि पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम को संसद ने जल्दबाजी में पारित किया था.

जिस समय राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद अपने चरम पर था, उसी समय 15 अगस्त 1947 की यथास्थिति को बहाल करने वाले इस कानून को लाया गया था.

उन्होंने कहा, ‘इस अधिनियम के संबंध में विभिन्न समुदायों के बीच कोई महत्वपूर्ण चर्चा नहीं गई. संसद की प्रवर समिति या किसी अन्य समिति ने भी इसे नहीं सुना था. भाजपा ने इसका विरोध किया था. इस अधिनियम को लागू करना काफी निराशाजनक था.’

पांच हिंदू महिलाओं ने एक याचिका दायर की हुई है जिसमें मस्जिद के बाहरी हिस्से में स्थित ‘मा श्रृंगार गौरी स्थल’ पर प्रार्थना करने के लिए पूरे साल मस्जिद परिसर में जाने की मांग की है. ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने इसके खिलाफ अपनी याचिका दायर की है.

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भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने कहा है कि ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का फैसला अदालतें करेंगी, लेकिन पार्टी के अलग-अलग नेताओं ने सार्वजनिक रूप से 1991 के अधिनियम की समीक्षा की मांग करते हुए बयान दिए हैं.

विहिप ने दावा किया है कि ज्ञानवापी मस्जिद में पिछले महीने सर्वेक्षण के दौरान मिली ‘संरचना’ 12 ‘ज्योतिर्लिंगों’ में से एक है, जिन्हें हिंदू भगवान शिव का प्रतिनिधित्व माना जाता है.

कुमार के मुताबिक, उन्हें विश्वास था कि अंदर एक ‘शिवलिंग’ है, लेकिन वह मौजूदा समय में मामले की सुनवाई कर रहे वाराणसी के जिला न्यायाधीश के फैसले की प्रतीक्षा करेंगे.

सर्वोच्च न्यायालय में वर्तमान में पूजा स्थल अधिनियम को चुनौती देने वाली दो याचिकाएं डाली गई हैं. इनमें से एक भाजपा प्रवक्ता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की है तो दूसरी याचिका लखनऊ स्थित पुजारियों के एक निकाय ने दायर की थी. इसे विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ के नाम से जाना जाता है.

कुमार ने यह भी कहा कि पूजा स्थल अधिनियम ज्ञानवापी मस्जिद पर लागू नहीं होगा क्योंकि अगर कथित ‘शिवलिंग’ प्रमाणिक पाया गया तो 15 अगस्त 1947 से पहले से अस्तित्व में रहा होगा.


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‘बदले हालात’

2019 में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसला के तुरंत बाद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि अब संगठन किसी भी राजनीतिक आंदोलनों या आंदोलन में शामिल नहीं होगा.

वह अन्य मस्जिद स्थलों मथुरा में ज्ञानवापी और शाही ईदगाह के बारे में एक सवाल का जवाब दे रहे थे, जिन पर हिंदुत्ववादी संगठन दावा करते हैं.

कुमार ने कहा, ‘मोहन भागवत जी ने कहा था कि संघ ने अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे को उठाया था. और आगे वह किसी एजेंडा को अपने हाथ में नहीं लेगा बल्कि अपने मूल एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करेगा’

उन्होंने कहा कि विशेष रूप से मस्जिद के वज़ुखाना (नमाज पढ़ने से पहले हाथ और पैर धोने की जगह) में एक ‘शिवलिंग‘ की कथित खोज के बाद से परिस्थितियां बदल गई हैं.

वह बताते हैं कि ‘अयोध्या की यात्रा हमारी यात्रा थी. हमने इसकी शुरुआत की, इसका नेतृत्व किया और हमने इसमें सफलता भी पाई. काशी की लड़ाई पूरे हिंदू समुदाय द्वारा लड़ी जा रही है. वास्तव में हमने कहा था कि जब तक भगवान राम अपने जन्मस्थान पर स्थापित नहीं होंगे, हम काशी और मथुरा के बारे में चिंता नहीं करेंगे’ कुमार आगे कहते हैं, ‘अगर वहां वास्तव में ‘शिवलिंग’ है, तो परिस्थितियां बदल जाती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘एक समय पर, संतों ने कहा था कि अगर मुसलमान अयोध्या, मथुरा और काशी को प्यार से हिंदुओं को लौटाते हैं, तो वे पूरे हिंदू समुदाय को कोई नया स्थान (पूजा स्थल) नहीं मांगने के लिए मना लेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’

उन्होंने कहा, ‘मेरा दिल और दिमाग कहता है कि वह एक ‘शिवलिंग’ है और यहां तक कि एक वकील के रूप में दस्तावेजों का विश्लेषण करने के बाद मैं इसे ‘शिवलिंग’ के रूप में देखता हूं,’ वह कहते हैं, ‘हमें लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में अपना विश्वास बनाए रखना होगा और उनके फैसले का इंतजार करना होगा.’


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‘1991 के कानून का उल्लंघन नहीं’

कुमार के मुताबिक, पूजा स्थल अधिनियम 1991, ज्ञानवापी-काशी विवाद पर लागू नहीं है क्योंकि ‘कानून उन मामलों पर लागू नहीं होता है जहां एक अदालत ने कानून लागू होने से पहले ही फैसला दिया हो’

उन्होंने कहा कि इस जगह से जुड़े मुकदमे आजादी से पहले के थे. जब एक अभियोक्ता ने ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र को वक्फ संपत्ति घोषित करने के लिए न्यायिक आदेश की मांग करते हुए अदालतों का दरवाजा खटखटाया था.

हालांकि इस याचिका को निचली अदालत और इलाहाबाद उच्च न्यायालय दोनों ने खारिज कर दिया था.

उन्होंने कहा, इसलिए ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ विवाद 1991 के कानून की अपवाद श्रेणी में आता है.

वह बताते हैं, ‘अदालत अभी भी पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के संबंध में याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. मुसलमानों ने अपना पक्ष रखा है, जबकि हिंदुओं ने अभी तक बहस नहीं की है.’ वह आगे कहते हैं, ‘सबसे पहले, दीन मोहम्मद वक्फ बोर्ड के तहत जमीन का दावा करने के लिए निचली अदालत के साथ-साथ उच्च न्यायालय में अपना मामला हार गए थे.

उन्होंने कहा, ‘अदालत ने साफ तौर पर कहा था कि इस पूरी भूमि को वक्फ के तहत नहीं माना जा सकता है. ट्रायल कोर्ट ने पाया कि मस्जिद के निर्माण के लिए एक मंदिर को तोड़ा गया था. उच्च न्यायालय ने भी अपने फैसले में इसका उल्लेख किया था.’

वह आगे कहते हैं, 1991 का अधिनियम कहता है कि इस अधिनियम के लागू होने से पहले दिए गए किसी भी निर्णय (यह) पर लागू नहीं होगा.’

कुमार ने कहा, ‘ कमल और स्वस्तिक के पैटर्न वाले जिस ढांचे और खंभों पर मस्जिद बनाई गई है, वह मूल रूप से एक मंदिर की है. जिसका मतलब है कि यह लगभग 100 साल पुराना था जब इसे औरंगजेब ने ध्वस्त किया था.’

उन्होंने कहा कि अधिनियम में यह भी कहा गया है कि 1991 का कानून उस ढांचे पर लागू नहीं होगा जहां पहले से कोई अन्य कानून लागू है.

उन्होंने बताया, ‘काशी विश्वनाथ का अपना कानून है (उत्तर प्रदेश श्री काशी विश्वनाथ मंदिर अधिनियम 1983) और फिर वह स्थान जहां ‘शिवलिंग’ स्थित है, वहां मस्जिद नहीं हो सकती है.’

वह कहते हैं कि 1947 के बाद वहां चुपचाप ‘शिवलिंग’ रखे जाने की संभावना नहीं है. इसलिए, अगर यह ‘शिवलिंग’ साबित हुआ है, तो जाहिर है कि यह 15 अगस्त 1947 से पहले उस स्थान पर मौजूद था. और उस हद तक वह हिस्सा 1947 में मस्जिद नहीं था. उसे हिंदुओं को वापस देना होगा क्योंकि वह क्षेत्र एक शिव मंदिर था.’

कुमार ने कहा कि विहिप का ‘मार्गदर्शक मंडल’ – संगठन के हिंदू संतों और पुजारियों का एक पैनल – जून में हरिद्वार में बैठक करेगा, जिसमें काशी और मथुरा समेत कई मुद्दों पर चर्चा की जाएगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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