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Tuesday, 12 November, 2024
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राजे, रमन, रघुबर- BJP के ये पूर्व CMs सिर्फ नाम के पार्टी उपाध्यक्ष हैं, इन्हें कोई भूमिका नहीं मिली

वसुंधरा राजे, रमन सिंह और रघुबर दास अपने-अपने गृह राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भाजपा उपाध्यक्ष बनाए गए थे.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पास पदानुक्रम में पार्टी अध्यक्ष के बाद दूसरे नंबर पर आने वाले अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्षों (वीपी) में से कम से कम एक तिहाई का कोई उपयोग नहीं है. बिना किसी जिम्मेदारी या कार्यभार के उपाध्यक्ष पद संभालने वालों में तीन पूर्व मुख्यमंत्री-राजस्थान की वसुंधरा राजे, छत्तीसगढ़ के रमन सिंह और झारखंड के रघुबर दास शामिल हैं.

राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने इन राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों- वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया था. उस वर्ष जून में चौहान को भाजपा के सदस्यता अभियान का प्रभारी बनाया गया लेकिन अन्य दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को कोई काम नहीं दिया गया.

पिछले वर्ष सितंबर में अपनी नई टीम गठित करते समय भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने राजे और रमन सिंह को बहाल रखने और रघुबर दास, जो 2014 से 2019 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे थे, को भी इसमें शामिल करने के साथ 12 उपाध्यक्ष नियुक्त किए. चौहान की मुख्यमंत्री के तौर पर मध्य प्रदेश वापसी हो गई थी.

पार्टी के संविधान के मुताबिक भाजपा अध्यक्ष कार्यकारिणी सदस्यों में 13 से अधिक उपाध्यक्षों को नामित कर सकता है. सौदान सिंह पिछले दिसंबर में 13वें वीपी बने थे. हालांकि, इस महीने के शुरू में तृणमूल कांग्रेस में वापस लौटने वाले मुकुल रॉय के हटने से यह संख्या घटकर अब 12 रह गई है.

संगठनात्मक ढांचे में उपाध्यक्ष पार्टी अध्यक्ष के बाद दूसरे नंबर पर आते हैं लेकिन यह पद सिर्फ दिखाने वाला ही माना जाता है. वो तो पार्टी महासचिव होते हैं जो राज्यों के प्रभारी के तौर पर अपनी शक्तियों का पूरा इस्तेमाल कर पाते हैं.

पार्टी उपाध्यक्षों की मौजूदा सूची में कई लोगों को अहम जिम्मेदारी मिली है. उदाहरण के तौर पर राधा मोहन सिंह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था, बैजयंत पांडा को असम और दिल्ली की जिम्मेदारी मिली है जबकि ए.पी. अब्दुल्लाकुट्टी को लक्षद्वीप और एम. चुबा आओ को मेघालय की. सौदान सिंह को हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और चंडीगढ़ की ‘विशेष जिम्मेदारी’ सौंपी गई है.

कुछ अन्य उपाध्यक्षों रेखा वर्मा, अन्नपूर्णा देवी, भारती बेन शियाल और डी.के. अरुणा को विभिन्न राज्यों में प्रभारियों के साथ मिलकर काम करने के लिए सह प्रभारी बनाया गया है.

नड्डा को अपनी टीम गठित किए नौ महीने बीत चुके हैं लेकिन उन्होंने तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों राजे, रमन सिंह और रघुबर दास को कोई जिम्मेदारी नहीं सौंपी है.

प्रतिक्रिया के लिए संपर्क करने पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आर.पी. सिंह ने कहा कि इसका कोई अन्य अर्थ नहीं निकाला जाना चाहिए, साथ ही कहा कि वीपी को राज्य की विशिष्ट जिम्मेदारियों से परे भी काम सौंपे जाते हैं.

पार्टी के कुछ अन्य नेताओं ने भी नाम न बताने की शर्त पर यही बात दोहराई और कहा कि तीनों पूर्व मुख्यमंत्री अपने-अपने गृह राज्यों में सक्रिय हैं. हालांकि, अन्य लोगों ने कहा कि किसी नेता को मिली जिम्मेदारी पार्टी में उसके कद को दर्शाती है और उन्होंने यह भी कहा कि रघुबर दास, राजे या रमन सिंह राष्ट्रीय स्तर पर बिल्कुल सक्रिय नहीं रहे हैं.


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‘पहले से ही अपने राज्यों में काम कर रहे हैं’

वसुंधरा राजे ने 2013 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा को जीत दिलाई थी लेकिन कुछ ही समय बाद केंद्रीय नेतृत्व के साथ उनके रिश्तों में कड़वाहट आ गई. 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान में भाजपा अध्यक्ष नियुक्त करना चाहते थे लेकिन राजे की कड़ी आपत्तियों के कारण उन्हें झुकना पड़ा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले वर्ष शेखावत को केंद्र में कैबिनेट मंत्री के तौर पर शामिल किया.

राजस्थान में विधानसभा चुनाव हारने के बाद राजे को पार्टी में दरकिनार कर दिया गया और उनके विरोधियों को राज्य इकाई में प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया. भाजपा आलाकमान को 2018 के चुनाव में हार को लेकर रमन सिंह से भी नाराजगी रही है.

यहां तक कि छत्तीसगढ़ में हार के बाद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने रमन सिंह के बेटे अभिषेक सिंह समेत पार्टी के सभी मौजूदा सांसदों को टिकट देने से इनकार कर दिया था. हालांकि, छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री को इस साल की शुरुआत में एक ‘मामूली जिम्मेदारी’ सौंपी गई- बतौर पर्यवेक्षक उत्तराखंड में स्थिति का आकलन करना और अपनी रिपोर्ट केंद्रीय नेतृत्व को सौंपना. उनकी रिपोर्ट के बाद ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद से हटाया गया.

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आर.पी. सिंह ने कहा, ‘यह जरूरी नहीं है कि पार्टी उपाध्यक्षों को राज्य विशेष की जिम्मेदारियां सौंपी जाएं. कई अन्य डोमेन हैं जहां आपको काम करना होता है, चाहे वह पार्टी और सरकार के बीच समन्वय हो, विशिष्ट अभियान हों, समय-समय पर इन नेताओं को विशेष कार्य सौंपे जाते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर मैं सभी नेताओं के दौरों और रैलियों का प्रभारी था. इस तरह अलग-अलग लोगों को अलग-अलग कार्य और जिम्मेदारियां दी जाती हैं और ऐसे कई अन्य डोमेन हैं जिनके बारे में मीडिया को पता भी नहीं चलता और हम उनका प्रचार भी नहीं करते हैं.’

एक अन्य भाजपा नेता ने बताया कि इनमें से कुछ नेताओं को पार्टी के भीतर कुछ विशेष अभियानों के दौरान जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं. उदाहरण के तौर पर अन्नपूर्णा देवी को भूपेंद्र यादव, दिलीप सैकिया और विनोद तावड़े जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं के साथ कोविड-19 से निपटने संबंधी मुद्दों पर एक सेमिनार की निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी.

भाजपा नेता ने आगे कहा, ‘जब और जैसी जरूरत होती है, सभी संगठनात्मक नेताओं को जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं. उदाहरण के तौर पर अक्सर विशेष अभियान, कोविड-19 से संबंधित विशेष अभियान, सदस्यता अभियान चलते रहते हैं, जिसमें ऐसे नेताओं को जोड़ा जाता है.’

नेता ने कहा, ‘वहीं, जहां तक पूर्व मुख्यमंत्रियों का सवाल है वे पहले से ही अपने-अपने राज्यों में काम कर रहे हैं, इसलिए उन्हें अतिरिक्त जिम्मेदारी देने का कोई मतलब नहीं है.’

राज्य स्तर के कई नेताओं, जिनसे दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए संपर्क किया- का कहना है कई उपाध्यक्ष अपने-अपने राज्यों की गतिविधियों में पूरी सक्रियता से शामिल हैं.

राज्य के एक भाजपा नेता ने कहा, ‘रमन सिंह को भले ही किसी राज्य के लिए कोई विशेष जिम्मेदारी नहीं दी गई है, लेकिन छत्तीसगढ़ में वह काफी सक्रिय हैं और जब भी पार्टी सरकार की विफलता को उजागर करना चाहती है, तो चेहरा वही होते हैं. यही नहीं जब भी पार्टी के केंद्रीय नेता छत्तीसगढ़ आते हैं, तो वे हमेशा रमन सिंह के साथ परामर्श करते हैं.’

उक्त नेता ने आगे कहा, ‘ये नेता अभी भी भविष्य में मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में हैं और वे अपने-अपने राज्यों में जमीन तैयार करने में जुटे हैं. चाहे वह राजे हों, रमन सिंह हों या फिर रघुबर दास- यह उनका पार्टी को ये बताने का एक तरीका भी है कि वह जिस राज्य से संबंधित हैं वहां किस तरह सक्रिय हैं.


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‘गिरते राजनीतिक ग्राफ के संकेत’

राष्ट्रीय और राज्यों के स्तर पर अन्य भाजपा नेताओं का कहना है कि एक नेता को जिस तरह की जिम्मेदारी मिलती है, वह एक तरह का संदेश भी होती है.

भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के एक नेता ने कहा, ‘यदि आप ध्यान से देखें कि उन्हें किस तरह की जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं, तो यह काफी हद तक पार्टी के अंदर उनके कद को दर्शाता है. इससे यह भी पता चलता है कि कौन पार्टी हाईकमान की गुड बुक में है.’

नेता ने आगे कहा, ‘तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों- राजे, रमन सिंह और रघुबर दास को किसी भी राज्य की जिम्मेदारी नहीं दी गई है, भले ही वे बड़े नेता हैं. अपने-अपने राज्यों में वे किसी न किसी तरह से सक्रिय रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नहीं हैं.’

एक अन्य नेता ने कहा कि दास पहले ‘राज्य सभा में जगह पाने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.’

नेता ने कहा, ‘उनके खिलाफ कई शिकायतें थीं और उन्हें विधानसभा चुनाव में हार के लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया गया था. बाद में उनके राजनीतिक कद को बनाए रखने के लिए उपाध्यक्ष के तौर पर शामिल किया गया. अगले चुनाव में भी पार्टी को किसी न किसी रूप में उनकी जरूरत होगी.’

एक अन्य सूत्र ने कहा कि उनकी जिम्मेदारियां- यह भी दर्शाता है कि पार्टी के भीतर उनका राजनीतिक ग्राफ कैसे गिर रहा है.

सूत्र ने कहा, ‘अगर आप सभी उपाध्यक्षों को देखें तो राधा मोहन सिंह को उत्तर प्रदेश का प्रभार दिया गया है. ऐसा इसलिए भी किया गया है क्योंकि वह एक अनुभवी नेता हैं और काफी संतुलित दृष्टिकोण रखते हैं.’

भाजपा के एक अन्य पदाधिकारी ने कहा, ‘कुछ अन्य नेताओं को यह पद (वीपी) उनका राजनीतिक कद बरकरार रखने के लिए औपचारिक पद के तौर पर दिया जाता है. किसे शामिल किया गया और क्यों किया गया, इस सबके पीछे कई समीकरण काम करते हैं और ऐसा हमेशा सिर्फ इसलिए नहीं होता क्योंकि उनके केंद्रीय नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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