scorecardresearch
Friday, 19 April, 2024
होमराजनीतिमजदूरों को हक दिलाने के चक्कर में कैसे 'एंटी-नेशनल' हो गई थी हेमंत सरकार

मजदूरों को हक दिलाने के चक्कर में कैसे ‘एंटी-नेशनल’ हो गई थी हेमंत सरकार

बीते 20 सालों से झारखंड के मजदूरों को बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेश रिक्रूट कर ले जाती रही है, लेकिन सरकार के पास अब तक इन मजदूरों की कोई जानकारी ही नहीं थी. लेकिन जैसे ही सोरेन सरकार ने मजदूरों के हित की बात की तो उन्हें राष्ट्र निर्माण में मदद न करने वाला कहा जाने लगा.

Text Size:

भारत-चीन सीमा विवाद के बीच लद्दाख में भारतीय सेना सड़क निर्माण कार्य में लगी हुई है. और इसी सड़क निर्माण का चीन विरोध कर रहा है. भारत सरकार का कहना है कि वह सड़क निर्माण जारी रखेगी. लद्दाख में चल रहे इस सड़क निर्माण के कार्य में सीमावर्ती इलाकों में हर साल लगभग एक लाख मजदूर, जिसमें 60 हजार स्थानीय और 40 हजार बाहरी राज्यों के, काम करते हैं. इसमें लगभग 15 हजार मजदूर झारखंड के आदिवासी इलाकों के होते हैं. ये काम करने तो जाते हैं, लेकिन बिचौलियों की वजह से इन्हें पूरी मजदूरी तक नहीं मिलती. यहां तक कि जरूरी कागजात भी बिचौलियों के कब्जे में रहता है.

इन पत्रों से पता चलता है कि झारखंड के 15000 मजदूर लद्दाख में काम करते हैं

बीते 20 सालों से मजदूरों को बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेश रिक्रूट कर ले जा रही है, लेकिन सरकार के पास अब तक इन मजदूरों की कोई जानकारी ही नहीं थी. यही वजह था कि लॉकडाउन के वक्त जब एयरलिफ्ट की तैयारी चल रही थी, सरकार को इन मजदूरों के बारे में पता करने में ही पसीने छूट गए. ऐसा पहली बार हो रहा है जब बीआरओ जैसे संस्थान इन मजदूरों का हिसाब रखने और सरकार के साथ साझा करने की बात कह रही हैं. तय नियमों के मुताबिक मजदूरों को पैसा और सुविधा भी देगी. इसकी शुरुआत झारखंड से हो रही है. राज्य सरकार ने 11 हजार मजदूरों को तत्काल ले जाने की अनुमति बीआरओ को दे दी है.

झारखंड वो पहला राज्य है जहां लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को हवाई जहाज से वापस लाया गया. इसमें सबसे अधिक लेह-लद्दाख में झारखंड के मजदूर फंसे थे. जैसे ही मजदूर वापस आए, उसके साथ ही बीआरओ के अधिकारी भी पहुंचे. ये हर साल की भांति मजदूर ड्राइव के लिए पहुंचे थे. जहां खास तौर पर फिजिकली फिट (शारीरिक रूप से सक्षम) मजदूरों को ले जाना था.

इन मजदूरों को ले जाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से ट्रेन के परिचालन की अनुमति संबंधी पत्र दुमका जिला प्रशासन को मिला था. अधिकारी जब पहुंचे तब उन्हें दुमका जिला प्रशासन का एक पत्र मिला. विजयक परियोजना के डायरेक्टर (प्लानिंग) फॉर चीफ इंजीनियर सौरभ भटनागर के नाम लिखे गए पत्र में कहा गया कि कोविड-19 के प्रसार को देखते हुए फिलहाल इस अनुमति को ’विलोपित’ यानी रिवोक (अनुमति नहीं दी गई) किया जाता है. इसके बाद मजदूरों का रिक्रूटमेंट नहीं हुआ.

क्या है पूरे हंगामें की वजह

दो जून को अखबारों और चैनलों में यह खबर चली की झारखंड ने बीआरओ को अप्रूवल  नहीं दिया है. मजदूरों को बाहर के राज्यों  में जाने से पहले लेनी होगी अनुमति. वहीं कुछ समाचार चैनलों में यह भी दिखाया गया कि ‘राष्ट्र निर्माण’ में सहयोग नहीं कर रही है हेमंत सरकार (यानी एंटी नेशनल हो गई). इसका जवाब में हेमंत ने ट्वीट  कर कहा कि इस तरह का कोई अप्रूवल रोका नहीं गया है. हालांकि उन्होंने यह भी नहीं कहा था कि इसकी अनुमति दे दी गई है. यहीं से हंगामा शुरू हो गया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

यहां से शुरू हुआ विवाद

बात आगे बढ़ी और हेमंत सोरेन के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का ने डायरेक्टर जनरल बॉर्डर रोड्स ले. ज. हरपाल सिंह को 31 मई लिखे पत्र (इसकी कॉपी दिप्रिंट के पास मौजूद है) में पूछा कि झारखंड के आदिवासी बहुत इलाके (दुमका, पाकुड़ देवघर, जामताड़ा) से मजदूरों के चयन का क्या कारण है? क्या मजदूरों को बीआरओ द्वारा नियुक्त किया माना जाएगा या बीच में कोई ठेकेदार होगा? न्यूनतम मजदूरी कितनी दी जाएगी? एक महीने में कितने दिन काम लिया जाएगा? हर दिन कितने घंटे काम करना होगा? मजदूरों को ईपीएफ का लाभ मिलेगा या नहीं? दुर्गम स्थल में सड़क निर्माण के दौरान कुछ अतिरिक्त पैसा मिलेगा या नहीं? मजदूरों के रहने-खाने और वहां से काम के स्थल पर जाने की व्यवस्था क्या होगी?

सेना के काम में लगे मजदूरों की जानकारी नहीं थी सरकार के पास

इधर बीते पांच जून की शाम को रांची में जब पत्रकारों ने सीएम से पूछा कि क्या सरकार ने बीआरओ को मना कर दिया है कि वह अपने मजदूरों को बिना अनुमति नहीं जाने देगी. इसपर हेमंत सोरेन ने कहा  कि देश के सीमावर्ती इलाकों में झारखंड के मजदूर सड़क निर्माण के काम में लगे रहे हैं. इससे पहले मजदूर कब जाते थे कब आते थे ये पता नहीं चलता था.

उन्होंने कहा, सेना से जुड़े निर्माण कार्य में ये मजदूर लगे रहते हैं. इन जगहों पर काम करने के लिए कई पाबंदिया, कई कड़े कानून होते हैं. उन सब जगहों पर जब मजदूर जाते हैं तो निश्चित रूप से राज्य सरकार के पास इसका लेखा-जोखा होना चाहिए. जो परिस्थिति बिगड़ने पर अपने मजदूरों को मदद पहुंचा सके.

बीआरओ के बिग्रेडियर नितिन के शर्मा की ओर से पांच जून को ही जवाब भेजा गया. पत्र (इसकी कॉपी दी प्रिंट के पास मौजूद है) में बताया गया कि ये मजदूर पहाड़ी इलाकों में काम करने के लिए सबसे मुफीद हैं. इसके साथ ही ये ईमानदार हैं और लंबे समय से हमारे साथ काम करते रहे हैं. मजदूर सीधे डिपार्टमेंट के लिए काम करेंगे, किसी कॉन्ट्रैक्टर के लिए नहीं. अनस्किल्ड मजदूरों को 14-18,000 रुपए, सेमी स्किल्ड को 15,500 से 19,000 रुपए और स्किल्ड मजदूरों को 18,500 से 23,000 रुपए मिलेंगे. इसके अलावा रिमोट एरिया में काम करने के एवज में 3000 रुपए अतिरिक्त मिलेंगे. हफ्ते में छह दिन काम करेंगे, इन्हें ईपीएफ के अलावा इंश्योरेंस कवर भी मिलेगा. साथ ही कई अन्य सुविधाओं की बात कही गई.

सेना की ओर से यह भी स्वीकारा गया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी की उनकी तरफ से तय मजदूरी की रकम का पूरा हिस्सा उन मजदूरों को नहीं मिलता था. ध्यान देनेवाली बात ये है कि सेना यह भी स्वीकार कर रही है कि इन इलाकों के मजदूर सालों से उनके लिए काम कर रहे हैं. इस जवाब के बाद झारखंड सरकार ने कहा कि भविष्य में होनेवाले रिक्रूटमेंट इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर एक्ट 1979 के तहत रजिस्टर होगा. बीआरओ ने इसे भी स्वीकार किया.


य़ह भी पढ़ें: झारखंडः लॉकडाउन के बाद जब मजदूरों को लेकर पहुंची पहली ट्रेन और रात 11 बजे स्वागत हुआ फूलों से


जब सरकार ने मना नहीं किया तो रिक्रूटमेंट हुआ क्यों नहीं

इस पूरे मसले को नजदीक से हैंडल कर रहे सीएमओ के विश्वस्त सूत्र ने  दिप्रिंट को बताया, ‘दुमका जिलाधिकारी ने जो लेटर लिखा था उसमें साफ था कि इसे अभी के लिए रिवोक किया जा रहा है. इसका मतलब नहीं था कि परमिशन को रोका जा रहा है. वैसे भी यह लेटर दुमका डीसी के स्तर पर लिखा गया था, इसे सीएम का जवाब नहीं मानना चाहिए.’

उनके मुताबिक जो मजदूर वहां से लाए गए हैं, उसमें भी बीआरओ ने मदद की है. उनकी मदद से ही ये एयरलिफ्ट संभव हो पाया है. एक सवाल की, सेना का एक अंग सालों से आकर दुमका इलाके में मजदूरों का रिक्रूटमेंट करता रहा. क्या वजह रही कि सरकार को इसकी भनक नहीं लगी. सीएमओ ने कहा, ‘इस सवाल का जवाब पूर्व की सरकारों से लेना चाहिए. उनके संज्ञान में जैसे ही ये मामला आया है, पूरी रिपोर्ट तैयार की जा रही है.’

इधर सोमवार 8 जून को लेह स्थित नुब्रा घाटी, चुनुथु घाटी, विजयक एवं हिमांक परियोजना कार्य में लगे संताल परगना के 208 श्रमिक झारखंड लौटे हैं. इससे पहले 60 श्रमिकों के समूह को लेह से एयरलिफ्ट कर झारखण्ड लाया जा चुका है. कुल मिलाकर सरकार केवल लेह में फंसे करीब 268 श्रमिकों को एयरलिफ्ट  कर चुकी है.

अगर लॉकडाउन नहीं होता तो हमेशा की तरह मजदूर आते-जाते रहते. मिडिलमैन इनकी सैलरी का एक ठीक-ठाक हिस्सा खाता रहता. न तो राज्य सरकार को इससे मतलब होता न ही बीआरओ को. जैसा कि 1999 से अब तक मतलब नहीं रहा था. जाहिर है लॉकडाउन ने इन मजदूरों को दर्द दिए तो दर्द से बाहर निकलने को मरहम भी मुहैया कराए.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

share & View comments

1 टिप्पणी

  1. मुझे ले लेह लद्दाख बॉर्डर सड़क निर्माण कार्य में काम करना है मैं वेल्डर और ड्राइवर हूं सड़क निर्माण कार्य का अनुभव है सिविल एंड मैकेनिकल

Comments are closed.