scorecardresearch
Monday, 13 May, 2024
होमराजनीतिममता और भाजपा के बीच बंगाल के इस कम चर्चित अल्पसंख्यक समुदाय के लिए क्यों छिड़ी है जंग

ममता और भाजपा के बीच बंगाल के इस कम चर्चित अल्पसंख्यक समुदाय के लिए क्यों छिड़ी है जंग

विभाजन के दौरान पश्चिम बंगाल आकर बसा मतुआ समुदाय आने वाले विधानसभा चुनावों में राज्य की 40-45 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाएगा. उनकी एक ही प्राथमिक मांग है—नागरिकता.

Text Size:

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में जबर्दस्त चुनावी टक्कर की तैयारियों के एक हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय की नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की मांग जोर पकड़ती जा रही है.

विभाजन के दौरान शरणार्थी के रूप में राज्य में आए मतुआ इस समय सुर्खियों में हैं कि वे 40-45 विधानसभा क्षेत्रों के नतीजों में निर्णायक फैक्टर हो सकते हैं.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जहां समुदाय के संस्थापक आध्यात्मिक नेताओं को पहचान दिलाकर उन्हें लुभाने की कोशिश कर रही हैं, वहीं भाजपा नेता अमित शाह जनवरी में राज्य के दौरे के समय समुदाय के सदस्यों से मिलने वाले हैं, जो कि कुछ ही हफ्तों में उनका तीसरा दौरा होगा.

चुनावी लिहाज से अहम होने के साथ मतुआ राज्य की राजनीति का हिस्सा भी रहे हैं. मौजूदा समय में, इसमें एक भाजपा खेमा और एक तृणमूल खेमा है. समुदाय के खासे महत्वपूर्ण बने भाजपा खेमे की प्राथमिक मांग है-नागरिकता.

सीएए प्रावधानों को लागू करने में देरी से नाराज मतुआ समुदाय ने प्रदर्शन भी किए हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

समुदाय के संस्थापक हरिचंद ठाकुर के वंशज और भाजपा सांसद शांतनु ठाकुर ने कहा, ‘हमारे पास मताधिकार हैं लेकिन कोई भी सरकार अगर 2003 का अधिनियम लागू करने का निर्णय लेती है, तो हम सभी अवैध प्रवासी होंगे. हम सुरक्षा चाहते हैं और सीएए हमें नागरिकता का अधिकार दे सकता है.’

शांतनु ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि गृह मंत्री अमित शाह ने उनकी मांग के समाधान का वादा किया था. यदि वह पूरी नहीं होती ‘तो इसके नतीजे सामने आएंगे.’

पिछले सप्ताह राज्य के अपने दौरे के समय शाह मतुआ बहुल क्षेत्र बोंगांव जाने वाले थे लेकिन उन्होंने इसे टाल दिया. हालांकि, वह अब जनवरी में उत्तर 24 परगना जिले में स्थित इस निर्वाचन क्षेत्र का दौरा करने वाले हैं.

शांतनु की तरफ से विरोध जताने के लिए रैलियों का आयोजन किए जाने के साथ भाजपा को इस समुदाय की नाराजगी झेलनी पड़ रही है.

इस बीच, ममता बनर्जी यह सुनिश्चित करने में जुटी हैं कि वह सभी पहलुओं पर ध्यान दें. उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र में रैलियां की हैं और यहां तक कि मतुआ के लिए विकास परियोजनाओं की घोषणा भी की है.


यह भी पढ़ें: बंगाल चुनाव आने तक तृणमूल कांग्रेस में अकेली रह जाएंगी ममता बनर्जी: अमित शाह


नागरिकता के माध्यम से स्थिति जानना

शांतनु के अनुसार, राज्य में मतुआ की आबादी लगभग 2 करोड़ (लगभग 30 प्रतिशत) है, हालांकि राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि यह 20 प्रतिशत है. समुदाय के लोग चार-पांच जिलों में बसे हैं जिनमें उत्तर 24 परगना, नादिया, मुर्शिदाबाद और दिनाजपुर (उत्तर और दक्षिण) शामिल हैं.

शरणार्थी समुदाय, जिसके पूर्वजों की जड़ें पूर्वी बंगाल में हैं, के पास मताधिकार और आधार कार्ड भी हैं, लेकिन यह देश में स्थायी नागरिकता की मांग कर रहा है.

इस संदर्भ में शांतनु ने समझाया, ‘हमारे पूर्वजों ने वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया और नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 पारित होने के बाद कानून की नजर में अवैध प्रवासी बन गए. यही नहीं, 2003 के संशोधन ने शरणार्थी परिवारों में जन्म लेने वाले बच्चों का जन्म से ही भारतीय नागरिक बनना असंभव बना दिया, यदि उनके माता-पिता में से किसी एक को भी अवैध प्रवासी माना जाता है.’

हिंदुओं के बीच एक अल्पसंख्यक समूह मतुआ विभाजन के बाद पश्चिम बंगाल में बसा था.

वैष्णव संप्रदाय वाले इस हिंदू समुदाय की स्थापना 19वीं शताब्दी के मध्य में हरिचंद ठाकुर ने की थी, जो अछूत जाति के माने जाने वाले एक नमोशूद्र परिवार से संबद्ध थे. श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य ठाकुर ने फरीदपुर (अब बांग्लादेश में) में सुधारवादी आंदोलन शुरू किया था.

मतुआ वर्ग ने चतुर्वर्ण व्यवस्था को दूर किया जो समाज को चार समूहों में विभाजित करती है—ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. साथ ही वे ठाकुर को भगवान कृष्ण के अवतार के रूप में पूजते हैं.

बीनापाणि देवी, जो हरिचंद ठाकुर के पड़पोते की पत्नी थी, को मतुआ माता और संप्रदाय का नेता माना जाता है. ‘बारो मा’, जिस संबोधन से वह लोकप्रिय हैं, ही विभाजन के दौरान अपने परिवार और अन्य लोगों को साथ लेकर बंगाल पहुंची थीं.

मतुआओं ने विभाजन के बाद भारत-बांग्लादेश सीमा के पास बोंगांव में अपने दूसरे संगठन और मंदिर की स्थापना की. क्षेत्र को ठाकुर नगर कहा जाता है, और अब इसे मतुआ महासंघ का मुख्यालय माना जाता है.


य़ह भी पढ़ें: क्यों ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी सिर्फ भाजपा ही नहीं तृणमूल बागियों के भी निशाने पर हैं


ममता की मतुआ नीतियां

चुनावी माहौल गर्माने के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मतुआ समुदाय को आगाह किया है कि सीएए उन्हें लाभ नहीं देगा. उनका दावा है कि इसके कार्यान्वयन से उन्हें ‘अवैध’ के रूप में पहचाना जाएगा.

दिसंबर के पहले हफ्ते में उन्होंने बोंगांव में एक रैली में कहा था, ‘भाजपा सीएए पर आपको गुमराह करने की कोशिश कर रही है. आप सभी यहां के नागरिक हैं. यदि आप में से कोई भी नागरिकता के लिए आवेदन करता है, तो आपको एक अवैध मतुआ के रूप में पहचाना जाएगा…किसी झांसे में न आएं.’

2019 में तृणमूल कांग्रेस ने मतुआ बहुल लोकसभा की दो महत्वपूर्ण सीटें—बोंगांव और राणाघाट—भाजपा के हाथों गवां दी थीं. इन दो लोकसभा क्षेत्रों में 14 विधानसभा सीटें आती हैं. भाजपा ने उत्तर बंगाल निर्वाचन क्षेत्रों में भी जीत हासिल की, जहां मतुआ समुदाय की खासी आबादी है.

तृणमूल के एक बुजुर्ग सांसद सौगत रॉय ने दिप्रिंट से कहा, ‘यह एक गंदा खेल है जिसे भाजपा खेल रही है. वे अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों के लिए मतुआ लोगों को पूरी तरह गुमराह कर रहे हैं. मुख्यमंत्री समुदाय के विकास और उत्थान के लिए बहुत प्रयास कर रही हैं. लेकिन भाजपा उन्हें बांटने की कोशिश कर रही है.’

नवंबर में ममता ने मतुआ के लिए एक विकास बोर्ड का गठन किया था और हरिचंद ठाकुर के नाम पर विश्वविद्यालय का निर्माण करा रही हैं. पिछले हफ्ते 16 दिसंबर को सरकार की तरफ से उनकी जयंती को राजकीय अवकाश के रूप में अधिसूचित किया गया और मुख्यमंत्री ने राजकीय पाठ्यक्रम में मतुआ समुदाय के इतिहास और संप्रदाय के संस्थापक आध्यात्मिक नेताओं हरिचंद और गुरुचंद ठाकुर के योगदान पर एक अध्याय शामिल करने पर सहमति जताई है.


य़ह भी पढ़ें: बंगाल में राजनीतिक हिंसा चरम सीमा पर, राज्य को अगला मुख्यमंत्री इसी धरती से देगी भाजपा: अमित शाह


ठाकुर परिवार के भीतर राजनीतिक गुटबाजी

ठाकुर परिवार का राजनीति से पुराना नाता रहा है. सालों से परिवार के सदस्य कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं.

70 के दशक के दौरान कांग्रेस से वामपंथ की ओर रुझान बढ़ा. बाद में 2009 में ममता बनर्जी संघ की सदस्य बन गई और बारो मा के साथ उनके व्यक्तिगत संबंध मजबूत हुए. फिर 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम चुनावों से ऐन पहले और मार्च में बारो मा का निधन होने से पहले वहां का दौरा किया.

अब, ठाकुर परिवार के दो धड़े हैं—एक का नेतृत्व भाजपा सांसद शांतनु ठाकुर और उनके भाई सुब्रत ठाकुर करते हैं और दूसरा खेमा तृणमूल कांग्रेस की पूर्व सांसद ममता बाला ठाकुर के नेतृत्व वाला है.

ममता ठाकुर तृणमूल के पूर्व सांसद स्वर्गीय कपिल कृष्ण ठाकुर की पत्नी हैं. शांतनु और सुब्रत दोनों उनके भाई मंजुल कृष्ण ठाकुर के बेटे हैं. मंजुल, जो ममता कैबिनेट का हिस्सा थे, 2015 में भाजपा में शामिल हुए थे, शांतनु 2019 में सांसद बने.

शांतनु ने दिप्रिंट को बताया, ‘दो हफ्ते पहले मतुआ महासंघ के प्रतिनिधियों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. मैं वहां प्रतिनिधिमंडल में मौजूद था. हमने वहां एक प्रेजेंटेशन दिया और बताया कि हमें सीएए की आवश्यकता क्यों है. अमित जी ने हमसे 14 जनवरी को फिर से मिलने और हमारे मुद्दों को हल करने का वादा किया है.

साथ ही कहा, ‘यदि वादे पूरे नहीं होते हैं, तो इसके परिणाम सामने आ सकते हैं.’

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने नागरिकता की मांग पर आश्वस्त करने के लिए दिसंबर 2016 की शुरुआत में ठाकुर परिवार के सदस्यों से मुलाकात की थी. उन्होंने कहा, ‘हम सीएए लाएंगे और उन सभी को नागरिकता दी जाएगी. हमने वादा किया है और भाजपा अपनी बात से पीछे नहीं हटती.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: प्रशांत किशोर बंगाल में ममता के गढ़ में आई दरार को क्यों नहीं भर सकते


 

share & View comments