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Thursday, 2 May, 2024
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क्यों ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी सिर्फ भाजपा ही नहीं तृणमूल बागियों के भी निशाने पर हैं

भाजपा के साथ-साथ तृणमूल के असंतुष्ट नेता भी अभिषेक को ‘राजकुमार’ और ‘भतीजे’ के नाम से पुकारते हैं और पार्टी में वस्तुत: नंबर-2 जैसा ‘पद’ और ताकत रखने के कारण उनकी आलोचना करते हैं.

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कोलकाता: भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने पिछले हफ्ते जब पश्चिम बंगाल का दौरा किया तो काफी सोच-समझकर चुने गए दो स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में हिस्सा लिया, इनमें एक था मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का विधानसभा क्षेत्र भवानीपोर और दूसरा उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी के प्रतिनिधित्व वाला लोकसभा क्षेत्र डायमंड हार्बर.

इस सबने वस्तुत: यही स्थापित किया कि अभिषेक बनर्जी अपनी बुआ और मुख्यमंत्री के बाद तृणमूल कांग्रेस में नंबर 2 की हैसियत रखते हैं.

नड्डा के काफिले पर लाठी-डंडों और पत्थरों से हमला हुआ था और भाजपा ने दावा किया कि हमला तृणमूल कांग्रेस की तरफ से किया गया. यद्यपि सत्ताधारी पार्टी के अन्य नेताओं का कहना था कि राज्य को उनकी यात्रा के बारे में सूचना ही नहीं दी गई थी, लेकिन अभिषेक बनर्जी ने स्पष्ट रूप से कहा कि लोगों की भावनाओं में उबाल आ जाना हमले का एक कारण था.

बनर्जी ने यह कहने के साथ कि ‘नड्डा डायमंड हार्बर गए और उन्हें मुंह की खानी पड़ी’, इस बात को भी साफ कर दिया कि वह नड्डा और अन्य भाजपा नेताओं के खिलाफ लोगों की नाराजगी को लेकर कोई जिम्मेदारी नहीं ले सकते हैं.

भाजपा पिछले कुछ समय से अभिषेक पर निशाना साध रही है. राज्य नेतृत्व के वरिष्ठ नेता से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक सीधे तौर पर नाम लिए बिना उनका जिक्र कर रहे हैं. भाजपा के साथ-साथ उनकी अपनी पार्टी के असंतुष्ट नेता भी उन्हें ‘युवराज’ और ‘राजकुमार’, ‘भायपो’ (भतीजा), ‘वंशज’ और ‘पार्टी ब्रेकर’ जैसी संज्ञाएं दे रहे हैं.

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अखिलेश यादव या तेजस्वी यादव की तरह जनता की नजरों में आए बिना भी अभिषेक हाल में बंगाल में उत्तराधिकारी के तौर पर सबसे ज्यादा राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में रहे हैं, और पार्टी में मौजूदा गुटबाजी के लिए ‘जिम्मेदार’ भी माने जा रहे हैं. दक्षिण कोलकाता में उनका निवास स्थान एक किले जैसे लगता है, जहां कोलकाता पुलिस का एक बूथ है और सुरक्षाकर्मियों की एक प्लाटून और कुछ पायलट कारें भी तैनात रहती हैं. उन्हें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह ही भारी-भरकम सुरक्षा मिली हुई है.

तृणमूल के अंदर आक्रोश

एक सांसद और आठ विधायकों सहित कम से कम 10 तृणमूल नेताओं ने पार्टी में ‘कुप्रबंधन’ के खिलाफ आवाज उठाई है, जिसके लिए अभिषेक बनर्जी और उनके कहने पर ही पार्टी में लाए गए चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.

कुछ समय तक बगावती तेवर दिखाने के बाद तृणमूल कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले वरिष्ठ नेता सुवेन्दु अधिकारी कई बार सार्वजनिक सभाओं में कह चुके हैं कि उन्होंने अपने काम के बलबूते अपनी जगह बनाई है न कि उन ‘कुछ’ लोगों की तरह जिन्हें लाकर शीर्ष पर बैठा दिया गया या पैराशूट की तरह पार्टी में ऊपर लाया गया.

अभिषेक ने पिछले हफ्ते डायमंड हार्बर में एक जनसभा में सीधे तौर पर इन टिप्पणियों का जिक्र करते हुए कहा, ‘यदि मैंने लिफ्ट का इस्तेमाल किया होता तो मेरे पास 35 पद होते. मैंने सांसद बनने के लिए अपनी लड़ाई लड़ी है.’

उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि प्रधानमंत्री मोदी सहित सभी वरिष्ठ भाजपा नेता उन पर हमला करते हैं, लेकिन कोई सीधे तौर पर उनका नाम लेने की ‘हिम्मत नहीं करता.’

हुगली जिले के एक तृणमूल विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘ये सभी वरिष्ठ नेता रणनीतिकार (प्रशांत किशोर) पर पार्टी में फूट और भ्रम की स्थिति पैदा करने का आरोप लगा रहे हैं. लेकिन उनके लिए सबसे गंभीर मुद्दा तमाम मामलों में अभिषेक बनर्जी का रवैया है. अभिषेक यह क्यों तय करते हैं कौन रहेगा और कौन नहीं रहेगा? अगर अभिषेक यह सब नहीं करते तो सुवेन्दु (अधिकारी) पार्टी में बने रहते. राजीव बनर्जी को यह नहीं कहना पड़ता कि उन्हें दरकिनार किया जा रहा है’

विधायक ने आगे कहा, ‘हर महत्वपूर्ण पार्टी बैठकों में उनकी और उनके रणनीतिकार की भागीदारी क्यों होती है? चुनाव रणनीतिकारों को ऐसी सभी राजनीतिक चर्चाओं का हिस्सा नहीं होना चाहिए. लेकिन अभिषेक उसके बिना कहीं जाते ही नहीं है. हम असुरक्षित और अपमानित महसूस करते हैं. अब, हम सुन रहे हैं कि यह वही तय करेंगे कि किसको टिकट देना है और किस क्षेत्र से देना है? यह उनका काम नहीं है.’

उत्तर बंगाल के एक अन्य वरिष्ठ तृणमूल विधायक ने दिप्रिंट को बताया, ‘कांग्रेस में रहने के समय से ही दीदी के साथ जुड़े हम जैसे लोगों ने अभिषेक को एक छोटे लड़के के रूप में देखा है. लेकिन वह लड़का आज हमसे ऐसे बात करता है जैसे वही पार्टी का कर्ताधर्ता है.’

विधायक ने कहा, ‘तमाम नेता उनके इर्द-गिर्द ही चक्कर काटते रहते हैं, और इन नेताओं को वरिष्ठ पद और महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो मिल रहे हैं. हर जिले में, आपको तृणमूल का एक समानांतर विंग मिलेगा जो अभिषेक की कमान में चलता है. वे ज्यादातर सिंडिकेट की राजनीति (उगाही) में शामिल हैं.’

अन्य लोग भी अभिषेक पर यह आरोप लगा रहे हैं कि वह ‘ऐसे दिखाते हैं जैसे वही पार्टी के सारे कर्ताधर्ता’ हैं. हाल ही में तृणमूल छोड़ने वाले विधायक मिहिर गोस्वामी ने कहा, ‘दीदी अब पुराने साथियों से नहीं मिलती हैं. जिस अभिषेक को मैंने एक छोटे लड़के के रूप में देखा, वह बोलता है कि पार्टी में वही सबकुछ है. कोलकाता में नेता उसे घेरे रहते हैं और सभी मामलों में वही अगुआ है. इसलिए, प्रासंगिक बने रहने के लिए, आपको एक कठपुतली जैसा बनना होगा,’

बांकुरा जिले के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘2019 के आम चुनावों में दीदी ने उन्हें पुरुलिया और बांकुरा के अलावा जंगलमहल क्षेत्र की जिम्मेदारी दी थी. हमें यहां तीनों सीटों पर हार मिली. हमने दीदी को यह समझाने की कोशिश की कि किस तरह उन्होंने जमीनी नेताओं को दरकिनार किया और अपनी टीम स्थापित कर दी. लेकिन उन्होंने कुछ नहीं सुना.’

अभिषेक के बारे में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, ‘भायपो अहंकार का प्रतीक है. उनके घमंड के कारण जल्द ही पिशी (बुआ)-भायपो की सरकार चली जाएगी. पार्टी और इसके कुशासन के खिलाफ अब सार्वजनिक रूप से बोल रहे असंतुष्ट तृणमूल कांग्रेस वास्तव में इस भतीजे के सताये हुए हैं. उन्होंने दीदी तक अपनी पहुंच खो दी है, और अब भायपो के अधीन रहने को बाध्य हैं. वे इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं.’


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‘भाजपा की साजिश’

हालांकि, पार्टी के वरिष्ठ सदस्य अभिषेक बनर्जी के खिलाफ इस अभियान को भाजपा की साजिश का हिस्सा बताते हैं.

दिप्रिंट की तरफ से भेजी गई सवालों की एक विस्तृत फेहरिस्त पर प्रतिक्रिया देते हुए, दमदम के सांसद सौगत रॉय ने कहा, ‘निजी हमलों के साथ विपक्ष के नेताओं पर आरोप लगाना और उनकी छवि खराब करना भाजपा की आदत है. यह मतदाताओं को जोड़ने की उसकी घिसी-पिटी रणनीति का ही हिस्सा है.’

इस सवाल कि भाजपा अभिषेक पर कटाक्ष क्यों कर रही है रॉय ने कहा, ‘जबसे सांसद अभिषेक बनर्जी ने संसद में सीएए/एनआरसी के मुद्दे पर भाषण दिया है, भाजपा को निश्चित तौर पर उनकी उपस्थिति से खतरा महसूस होने लगा है. जिस एक नए और भावी बड़े चेहरे ने भाजपा को पटखनी दी है वह निश्चित तौर पर अभिषेक बनर्जी हैं, जिन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा उम्मीदवार के खिलाफ 3,20,594 वोटों से जीत हासिल की थी.’

रॉय ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय युवा अध्यक्ष के रूप में अभिषेक ने युवाओं को एकजुट करने, युवा विंग को व्यवस्थित ढांचा देने और बंगाल के लोगों की भलाई के लिए काम करने की दिशा में उपयुक्त कदम उठाए हैं.

दमदम के सांसद ने अपने युवा नेता के बारे में कहा, ‘महामारी के बीच लाखों लोगों की मदद करने में हमारा युवा नेता बेहद सक्रिय था. क्या बंगाल में भाजपा की युवा शाखा के पास कोई संगठनात्मक ढांचा है? पश्चिम बंगाल में अराजकता और हिंसा का माहौल कायम करने के लिए तेजस्वी सूर्य जैसे नेताओं को बाहर से लाया जा रहा है. युवा विंग लगभग पूरी तरह नदारत होने और एकजुटता के लिए सिर्फ हिंसा का सहारा लिए जाने को देखते हुए अब बंगाल के लोगों का झुकाव स्वाभाविक तौर पर अधिक अनुभवी चेहरे की ओर है और वह अभिषेक बनर्जी ही हैं, जो हर किसी के कल्याण के लिए लड़ने के लिए तैयार है.’

रॉय ने भाजपा के इस आरोप को भी पूरी तरह नकार दिया कि अभिषेक ‘घोषित उत्तराधिकारी’ हैं.

उन्होंने सवाल उठाया, ‘यह अजीब बात है कि भाजपा बंगाल में वंशवाद की राजनीति की ओर इशारा कर रही है. अगर भाजपा को वंशवाद से इतनी ही नफरत है, तो उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने खेमे में लाना क्यों पसंद किया. क्या सेंधमारी करके लाए गए लोग भाजपा को वंशवादी पार्टी नहीं बनाते?’

सौगत रॉय ने कहा, ‘भाजपा में पीयूष गोयल, अनुराग ठाकुर, किरेन रिजिजू, विजय गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, पंकज सिंह, बी.वाई. राघवेंद्र, आकाश विजयवर्गीय, वसुंधरा राजे, पूनम महाजन, दुष्यंत सिंह, परवेश (साहिब) सिंह वर्मा, राजवीर सिंह और नीरज शेखर जैसे तमाम राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हम इस सूची में एक और नाम जोड़ सकते हैं. लेकिन क्रिकेट के बारे में बात नहीं करते हैं. यह गृह मंत्री के लिए असहज हो सकता है.’ दरअसल उनका इशारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह की ओर था जो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के सचिव हैं.

रॉय ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभिषेक बनर्जी के खिलाफ तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में नाराजगी की बात ‘सिर्फ आपका काल्पनिक अनुमान’ है.’

उन्होंने कहा, ‘यह तथ्यों पर आधारित नहीं है. अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस एक जमीनी संगठन है. बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से लेकर मुख्यमंत्री तक हर कोई सिर्फ लोगों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है.’


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