आइजोल: दिप्रिंट को जानकारी मिली है कि मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि जब तक केंद्र सरकार मणिपुर, म्यांमार और बांग्लादेश में चल रहे राजनीतिक और जातीय उथल-पुथल के कारण भाग रहे लोगों को मणिपुर में शरण देने में मदद नहीं कर रही, जिसके कारण राज्य एक ‘बड़े मानवीय संकट’ का सामना कर रहा है. उन्होंने कहा कि उन्हें केंद्र की सहायता की जरूरत है.
पीएम को लिखे अपने पत्र में, ज़ोरमथांगा ने राज्य सरकार के राहत कार्य के लिए केंद्र का सपोर्ट मांगा है और उन्होंने पीएम मोदी से “व्यक्तिगत हस्तक्षेप” की मांग की है. उन्होंने यह भी बताया कि मिजोरम को इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी कम से कम 350 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे. दिप्रिंट ने पीएम को लिखी चिट्ठी को देखी है.
राज्य के अधिकारियों के मुताबिक, सीएम ने मई से जून के बीच इस बात को लेकर मोदी को कम से कम तीन पत्र भेजे हैं. हालांकि, मिजोरम सरकार के एक शीर्ष अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र, जिसने अभी तक राहत कार्यों के लिए कोई धनराशि जारी नहीं की है, ने “अनौपचारिक रूप से हमें बताया कि चूंकि भारत संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी सम्मेलन 1951 और इसके 1967 प्रोटोकॉल का हिस्सा नहीं है, इसलिए राज्य को तत्काल सहायता की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए”.
शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रोटोकॉल जारी किया है जिसमें उनके अधिकारों और उनकी सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक बनाए गए हैं.
मिजोरम के उप मुख्यमंत्री तावंलुइया ने बुधवार को दिप्रिंट को बताया, “हमें अब तक केंद्र से कोई मदद नहीं मिली है. लोगों के लिए राहत कार्य का प्रयास विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ), चर्चो, राज्य सरकार और बड़े पैमाने पर लोगों द्वारा संचालित किए जा रहे हैं. जब तक मिजो लोग यहां हैं, कोई भूखा नहीं सोएगा. लेकिन आप केंद्र से पूछें कि वे हमारी मदद क्यों नहीं कर रहे हैं?”
मंगलवार को, सीएम ज़ोरमथांगा के नेतृत्व में सैकड़ों लोग और राजनीतिक नेता कुकी समुदाय के साथ अपनी एकजुटता दिखाने के लिए सड़कों पर उतरे. कुकी समुदाय का मिज़ोस के साथ गहरा जातीय संबंध है.
राज्य सरकार ने राज्य और केंद्र सरकार के कर्मचारियों, विधायकों, सांसदों और नागरिक पार्षदों के बीच लगभग एक महीने तक पैसे जमा करने के लिए एक अभियान चलाया था, जो 25 जुलाई को समाप्त हुआ.
डिप्टी सीएम तावंलुइया ने कहा कि जो लोग मणिपुर से हमारे राज्य में आश्रय लेने आए हैं उन्हें शरणार्थी नहीं बल्कि ‘आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति’ माना जाना चाहिए.
तावंलुइया ने कहा, “हाल के दिनों में मिजोरम में कोई सीमा पार से आवाजाही नहीं हुई है.”
गृह विभाग के एक अधिकारी ने भी उनकी बात दोहराते हुए कहा कि हाल ही में मणिपुर के साथ म्यांमार की सीमा पर कुछ हलचल हुई है.
ज़ोरमथांगा ने पीएम को लिखे अपने हाल के पत्र में भी इस पहलू को रेखांकित किया है: “मिजोरम सरकार के लिए हजारों आईडीपी की अकेले देखभाल करना बेहद मुश्किल और अस्थिर हो गया है और जब तक भारत सरकार आगे नहीं आती और हमारी सहायता नहीं करती, तब तक एक बड़ा मानवीय संकट मंडरा रहा है.”
मुख्यमंत्री ने म्यांमार से आए शरणार्थियों की संख्या 35,000, मणिपुर से 12,300 से अधिक आईडीपी, इसके अलावा बांग्लादेश से 1,000 से अधिक कुकी-चिन शरणार्थियों का अनुमान लगाया.
मिजोरम की 510 किमी लंबी सीमा म्यांमार से लगती है. मिज़ो-कुकी-चिन समूह काफी हद तक समान जातीयता रखता है जो पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश और म्यांमार में फैला हुआ है.
राज्य सरकार म्यांमार से आए शरणार्थियों के प्रति भी सहानुभूति रखती है. 2021 में, मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) सरकार ने म्यांमार से कुकी-चिन शरणार्थियों को आश्रय न देने की केंद्र की सलाह को भी खारिज कर दिया था.
ज़ोरमथांगा को तब मीडिया में कहा था कि सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार से भागने वाले, जिसे “राजनीतिक शरणार्थी” कहा गया था, लोगों को लेकर भारत “आंखें नहीं मूंद सकता”.
तानलुइया, जो एमएनएफ के उपाध्यक्ष भी हैं, ने कहा कि उनकी पार्टी बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा जरूर है लेकिन “किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि ‘एमएनएफ’, ‘एमएनएफ’ है.”
एमएनएफ के पूर्ववर्ती सशस्त्र विंग के ‘कमांडर-इन-चीफ’ तावंलुइया ने आगे कहा, “हम मिज़ोरम के लोगों के लिए लड़े हैं और लड़ते रहेंगे. हमने 20 साल तक हथियारों से लड़ाई लड़ी. जब सभी वर्गों के लोगों ने हमसे भारत सरकार के साथ शांति बनाने का अनुरोध किया, तो हमने 1986 में शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. हमारा सिद्धांत और आधार बना हुआ है. हम एनडीए का हिस्सा रहेंगे या नहीं, यह पार्टी तय करेगी.”
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एमएनएफ और केंद्र सरकार के साथ समीकरण
एमएनएफ ने अपने संस्थापक लालडेंगा के नेतृत्व में, जो बाद में मिजोरम के मुख्यमंत्री बने, 1966 और 1986 के बीच राज्य के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया था. 30 जून 1986 को, इसने राजीव गांधी सरकार के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे दो दशक से चल रहा विद्रोह खत्म हुआ.
ज़ोरमथांगा और तावंलुइया लालडेंगा के करीबी सहयोगी थे. मंगलवार को, जब आइजोल में मणिपुर में कुकियों के साथ एकजुटता देखी गई, और बीजेपी के खिलाफ रैली में आक्रामक नारेबाज़ी हुई और दोनों नेता चुपचाप देखते रहे.
एनडीए के साथ एमएनएफ के सहयोग पर उनके विचार पूछे जाने पर तावंलुइया ने कहा, “हम एनडीए की कई घटक इकाइयों में से एक हैं. हमने राज्य के विकास के लिए 2014 में गठबंधन में प्रवेश किया.”
मंगलवार को एकजुटता मार्च में, ज़ोरमथांगा ने आइजोल में संवाददाताओं से कहा कि एमएनएफ ने अभी तक एनडीए से बाहर निकलने पर कोई निर्णय नहीं लिया है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि यह ‘राजनीतिक आवश्यकता’ पर निर्भर करता है. संसद में दो एमएनएफ सांसद- एक लोकसभा और एक राज्यसभा- सदन के पटल पर केंद्र और बीजेपी के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार की आलोचना करते रहे हैं. पार्टी के राज्यसभा सांसद के. वनलालवेना ने मणिपुर में चल रहे संकट पर चर्चा के लिए बुधवार को तीसरी बार स्थगन प्रस्ताव का नोटिस भी सौंपा था.
(संपादनः ऋषभ राज)
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