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Sunday, 22 December, 2024
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भाजपा के करीब 11% सांसद वंशवादी राजनीति से निकले हुए हैं, तेज़ी से बढ़ रही है ये संख्या

ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के टिकट पर राज्य सभा पहुंचने वाले अकेले ऐसे सांसद नहीं है जिन्हें वंशवाद की श्रेणी में रखा जाए, ऐसे तमाम अन्य लोग संसद के दोनों सदनों में पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हैं.

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नई दिल्ली: राजस्थान में कांग्रेस सरकार के खिलाफ सचिन पायलट की बगावत की वजह से राजनीति में भाई-भतीजावाद एक बार फिर सुर्खियों में है. हालांकि पायलट का कहना है कि वह भाजपा में शामिल नहीं होने जा रहे लेकिन भाई-भतीजावाद को लेकर पार्टी के अंदर यह सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि इससे कांग्रेस की वंशवादी राजनीति के विरोध का उसका केंद्रीय मुद्दा कमज़ोर पड़ रहा है. वंशवाद की श्रेणी में आने वाले भाजपा सांसदों की सूची लगातार बढ़ती जा रही है.

भाजपा के पास मौजूदा समय में लोकसभा में 303 और राज्य सभा में 85 सदस्य हैं. इन 388 में से 45 सांसद यानि करीब 11 फीसदी ऐसे हैं जिनका संबंध किसी न किसी सियासी परिवार से है.

यह संख्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की उन बातों से एकदम विरोधाभासी है जिसमें वह राजनीति में परिवारवाद से जुड़े होने के लिए अक्सर कांग्रेस और उसके सदस्यों पर कटाक्ष करते रहते हैं, जैसे कि राहुल गांधी को ‘शहजादा’ (राजकुमार) कहना और उनके ‘नामदार’ (जिसे नाम की वजह से जाना जाता हो) होने की तुलना खुद के ‘कामदार’ (अपने काम से ख्यात) होने के साथ करना.

कुछ दिन पहले, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी राहुल गांधी पर हमला करते हुए पूछा था कि एक परिवार क्यों एक कमजोर भारत और एक मजबूत चीन चाहता है. खुद कांग्रेस के कई नेता भी निजी तौर पर पार्टी में एक ही परिवार के राज करने को लेकर शिकायत करते हैं.

लेकिन भाजपा की वंशवाद की फेहरिस्त में भी कई राज्य सभा सदस्यों के नाम जुड़े हैं, जिनमें अंतिम दौर में जून 2020 में निर्वाचित 17 में से चार सदस्य शामिल हुए हैं. मौजूदा समय में, ज्योतिरादित्य सिंधिया, विवेक ठाकुर, उदयनराजे भोसले, लीसेम्बा सनजाओबा, नबाम रेबिया, नीरज शेखर और संभाजी छत्रपति (मनोनीत) शामिल है, सभी ऐसे राज्य सभा सदस्य हैं जिनका संबंध राजनीतिक परिवारों से है और अब भाजपा के साथ जुड़े हैं.

लोकसभा में भी भाजपा के खेमे में परिवारवाद से जुड़े कई नाम है- अनुराग ठाकुर, दुष्यंत सिंह, पूनम महाजन, प्रीतम मुंडे, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और बीवाई राघवेंद्र.

यह प्रचलन राज्य स्तर पर भी दिखाई देता है— महज तीन हफ्ते पहले मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने अपने मंत्रिमंडल का जब विस्तार किया तो उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री वीरेंद्र सकलेचा के बेटे ओम प्रकाश सकलेचा को बतौर मंत्री शामिल किया. चौहान मंत्रिमंडल में भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश सारंग के पुत्र विश्वास सारंग को भी जगह मिली है.


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ज्योतिरादित्य सिंधिया

सिंधिया दिवंगत कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया के पुत्र और जनसंघ/जनता पार्टी/भाजपा की कद्दावर नेता स्वर्गीय विजयाराजे सिंधिया के पोते हैं और ग्वालियर राजघराने से ताल्लुक रखते हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया 2002 में अपने पिता की मृत्यु के तुरंत बाद सांसद बने थे और मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली कांग्रेस नीत यूपीए-2 सरकार में बतौर केंद्रीय मंत्री शामिल रहे.

उन्होंने इस साल मार्च में कांग्रेस के खिलाफ बगावत कर दी और अपना समर्थन करने वाले 22 विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए, जिससे मध्य प्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिर गई. इसके तुरंत बाद उन्हें राज्य सभा का टिकट दिया गया और अब अगले कैबिनेट विस्तार में मोदी सरकार में शामिल किए जाने की संभावना है.

उदयनराजे भोसले

महाराष्ट्र में सतारा के पूर्ववर्ती शाही परिवार से ताल्लुक रखने वाले भोसले पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से ऐन पहले भाजपा में शामिल होने से पूर्व तीन बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सांसद रह चुके हैं. उनके एनसीपी से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने के कारण सतारा में उपचुनाव कराने पड़े जिसमें मिली हार के बाद अब वह राज्य सभा सांसद हैं. उन्होंने 1990 के दशक में महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा सरकार में मंत्री के तौर पर भी काम किया था.

भोसले के चचेरे भाई, विधायक शिवेंद्र राजे भी एनसीपी छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं.

विवेक ठाकुर

विवेक पांच बार के सांसद और जाने-माने चिकित्सक सी.पी. ठाकुर, जो अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री रहे थे, के पुत्र हैं. सीनियर ठाकुर को बिहार में भूमिहार जाति का एक प्रभावशाली नेता माना जाता है और साल के शुरू में विवेक को मिले राज्य सभा टिकट को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है क्योंकि इस वर्ष के अंत तक विधानसभा चुनावों पर नजरें टिकी हैं.

लीसेम्बा सनजाओबा

मणिपुर के सांकेतिक नरेश सनजाओबा को राज्य की एकमात्र राज्य सभा सीट के लिए हुए चुनाव में काफी नाटकीय घटनाक्रम के बीच चुना गया था, जिन्होंने उस समय भाजपा की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार के खतरे में होने के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी को चार वोटों से हराया था.

अपने चुनाव के बाद उन्होंने कहा था कि वह अपने साथी सांसदों द्वारा ‘महाराजा’ के रूप में संबोधित किया जाना पसंद करेंगे क्योंकि यह उनका ‘जन्मसिद्ध अधिकार’ है.

नीरज शेखर

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के पुत्र समाजवादी पार्टी से राज्य सभा सांसद थे. लेकिन पिछले साल भाजपा में शामिल हो गए और फिर से उच्च सदन के सदस्य चुन लिए गए.

नीरज शेखर ने सपा के टिकट पर तीन लोकसभा चुनाव लड़े थे लेकिन 2019 में उन्हें टिकट नहीं मिला था और पिछले साल जुलाई में वह भाजपा में शामिल हो गए.


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संभाजी छत्रपति

महान मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी के वंशज, संभाजी को भाजपा की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने राज्य सभा के लिए मनोनीत किया था. वह 2016-17 में मराठा आरक्षण के लिए चले आंदोलन का चेहरा थे और भाजपा ने आंदोलनकारी समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए उन्हें राज्य सभा भेजा.

नबाम रेबिया

कांग्रेस से अरुणाचल प्रदेश विधानसभा में पूर्व स्पीकर रेबिया, जिनके भाई नबाम तुकी ने मुख्यमंत्री के तौर पर कुर्सी संभाली, को जून 2020 में भाजपा के टिकट पर राज्य सभा के लिए चुना गया.

प्रचलित प्रवृत्ति

एक तरफ जब मोदी ने ‘नामदार’ बनाम ‘कामदार’ को नारा बनाकर अपना चुनाव अभियान चलाया तो दूसरी तरफ भाजपा के टिकट पर सियासी परिवारों से जुड़े कई नेता लोकसभा के लिए चुने गए.

इस सूची में हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह, चार बार कर्नाटक के सीएम रहे बीएस येदियुरप्पा के पुत्र बी.वाई राघवेंद्र, यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह के बेटे राजबीर सिंह, दिल्ली के पूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा, यूपी के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य, दिवंगत केंद्रीय मंत्री प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन, दिवंगत केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटी प्रीतम मुंडे, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा, भाजपा सांसद मेनका गांधी के बेटे वरुण गांधी आदि शामिल हैं.

खासकर यूपी और महाराष्ट्र में यह ट्रेंड काफी ध्यान देने लायक है. पश्चिमी राज्य में, गोपीनाथ मुंडे की एक और बेटी पंकजा मुंडे देवेंद्र फडणवीस सरकार में एक मंत्री के तौर पर शामिल रही थीं, जबकि रक्षा खडसे (पूर्व राज्य राजस्व मंत्री एकनाथ खडसे की बहू) और सुजय विखे पाटिल (प्रमुख पूर्व कांग्रेस नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल के पुत्र) लोकसभा सांसद हैं.

यूपी में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह विधायक हैं, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की पुत्री और पूर्व राज्य कांग्रेस प्रमुख रीता बहुगुणा जोशी सांसद हैं. राज्य में भाजपा अध्यक्ष रहे रमापति राम त्रिपाठी के पुत्र शरद त्रिपाठी भी सांसद थे लेकिन एक पार्टी विधायक को जूते से पीटते दिखाने वाला एक वीडियो सामने आने के बाद उन्हें टिकट नहीं दिया गया था.


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‘बुराई क्या है?’

ब्लूमबर्गक्विंट की तरफ से मार्च 2019 में प्रकाशित इंडियास्पेंड का एक अध्ययन कहता है, ‘1999 के बाद से कांग्रेस की वंशवाद की फेहरिस्त में संसद के 36 सदस्य रहे हैं तो भाजपा भी 31 के आंकड़े के साथ ज्यादा पीछे नहीं हैं. 1999 में 13वीं लोकसभा की शुरुआत में कांग्रेस के आठ फीसदी सांसद या तो पूर्व सांसदों के वंशज थे या उनके साथ विवाहित थे, यह संख्या भाजपा के 6 प्रतिशत से थोड़ी ही ज्यादा थी. वंशवादी नेताओं की सूची 2009 में लगभग समान ही थी जब कांग्रेस और भाजपा में क्रमशः 11 प्रतिशत और 12 प्रतिशत ऐसे सदस्य निर्वाचित हुए थे.’

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज के निदेशक संजय कुमार कहते हैं कि सभी दल वंशवादी राजनीति में भरोसा करते हैं.

उन्होंने कहा, ‘यह उनके लिए कम प्रयास में आसानी से चुनाव जीतने में मददगार होता है लेकिन हालिया समय में दिखा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किसी परिवार से जुड़े हैं या नहीं, यदि किसी उम्मीदवार के पास नंबर जुटाने की क्षमता है, तो भाजपा ने उन्हें पुरस्कृत किया है.’

लेकिन लोकसभा सांसद और कल्याण सिंह के बेटे राजबीर सिंह सवाल उठाते हैं कि आखिर पिता के पेशे को अपनाने में बुराई क्या है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘यदि किसी के पिता भी राजनेता हैं तो उसके राजनीति में आने में बुराई क्या है? हम किसी डॉक्टर के बेटे के डॉक्टर बनने और आईएएस अफसर के बेटे के आईएएस अधिकारी बनने पर तो सवाल नहीं उठाते. हम उन्हें तो कभी वंशवादी नहीं कहते.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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