scorecardresearch
Wednesday, 9 October, 2024
होममत-विमतISI प्रमुख फैज हमीद की काबुल यात्रा का तालिबान की नई सरकार से क्या लेना-देना है

ISI प्रमुख फैज हमीद की काबुल यात्रा का तालिबान की नई सरकार से क्या लेना-देना है

अफगानिस्तान में जंग और अमन के बीच अदलाबदली जारी रही है, वहां के खिलाड़ी दुश्मन से भी सौदे करते रहे हैं जिनका पता उनके दोस्तों को भी नहीं लगता था.

Text Size:

अफगानिस्तानी पत्रकार और तालिबान विरोधी नेशनल रजिस्टेंस फ्रंट (एनआरएफ) के प्रवक्ता फहीम दश्ती मारे गए हैं. तालिबान के खिलाफ अंतिम गढ़ (पंजशीर सूबा) भी ढह गया है. बताया जाता है कि एनआरएफ के नेता अमरुल्लाह सालेह और अहमद मसूद पंजशीर से फरार हो गए हैं. पाकिस्तान के खुफिया प्रमुख फ़ैज़ हमीद काबुल से लौट गए हैं. तालिबान ने नयी सरकार के गठन की घोषणा कर दी है और चीन, रूस, पाकिस्तान, ईरान, तुर्की, क़तर को इसके उदघाटन समारोह के लिए आमंत्रित किया है.

काबुल पर 15 अगस्त को तालिबान के कब्जे के बाद के तीन हफ्तों में अफगानिस्तान की कहानी इस मुकाम तक पहुंची है. इन चंद दिनों में मिली यातना की जगह अब यह एहसास मजबूत हो रहा है कि तालिबान अब यहां टिक जाने वाला है. यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी जमीनी हकीकत को कबूल कर लिया है और इसके मानवाधिकार विभाग के अंडर-सेक्रेटरी-जनरल मार्टिन ग्रिफिथ्स तालिबानी नेता मुल्ला बरादर से मुलाक़ात के लिए काबुल पहुंच गए. गौर कीजिए कि इन दोनों नेताओं की बैठक में दोनों के बीच इस्लामी अमीरात का नहीं बल्कि अफगानिस्तान का झंडा लगाया गया था.


यह भी पढ़ें: SC में क्यों नहीं हो सकी अकील कुरैशी की नियुक्ति, माई लॉर्ड से थोड़ी और पारदर्शिता की उम्मीद


 

अफगानिस्तान जबकि एक नया अध्याय शुरू करने जा रहा है, जमीन पर खुरदुरी हकीकत यह है—

ठीक 20 साल पहले, 9 सितंबर 2001 को अल-क़ायदा के दो आतंकियों ने खुद को पत्रकार बताते हुए पंजशीर घाटी में अफगानिस्तान के प्रसिद्ध नेता अहमद शाह मसूद के गुप्त अड्डे में जाकर उनकी हत्या कर दी थी. और अब, पिछले इतवार को पंजशीर के लिए लड़ाई में फहीम दश्ती को मार डाला गया. एनआरएफ की कमान कमांडर मसूद के बेटे अहमद मसूद और एक प्रमुख अफगान नेता अमरुल्लाह सालेह संभाल रहे हैं.

दश्ती के मारे जाने से चंद घंटे पहले ही पाकिस्तानी आइएसआइ के मुखिया फ़ैज़ हमीद काबुल से लौट गए थे. बताया जाता है कि वे सरकार के गठन के बारे में तालिबान से बात करने के लिए शनिवार को वहां आए थे. कुछ खबरों में कहा गया है कि अहम ओहदों के बंटवारे को लेकर तालिबान और हक़्क़ानी नेटवर्क के बीच मतभेद थे.

दश्ती की मौत हमारे दौर के सबसे भीषण युद्ध का दुखद समापन है. वास्तव में, अफगानिस्तान की लड़ाई किसी सामान्य जंग से बुरी है, जिसमें आपको कम-से-कम यह पता होता है कि कौन किसकी तरफ से लड़ रहा है. अफगानिस्तान में तो जंग और अमन के बीच अदलाबदली चलती रही है, और इसके खिलाड़ी अपने दोस्तों को बताए बिना दुश्मन से सौदे करते रहे हैं.

उदाहरण के लिए, अमेरिका के विशेष दूत जल्मे खलीलजाद ने अफगान सरकार को शामिल किए बिना तालिबान के साथ शांति समझौता कर लिया. या पूर्व राष्ट्रपति अशरफ ग़नी अपने मंत्रिमंडल को बताए बिना काबुल से भाग गए. उनके एक मंत्री को जब इसका पता चला तो वह शहर को तालिबान से बचाने में जुट गया था.

ग़नी के विपरीत मेरे मित्र, अफगानिस्तान के एक सबसे सम्मानित पत्रकार फहीम दश्ती कमांडर मसूद के बेटे अहमद मसूद के साथ पंजशीर घाटी चले गए, जो काबुल से बमुश्किल 100 किमी दूर है. 20 साल पहले जब कमांडर मसूद मारे गए थे तब दश्ती उसी कमरे में थे और बम विस्फोट से बच गए थे. इस साल 15 अगस्त को तालिबान ने जब काबुल पर कब्जा कर लिया तो दश्ती ने तलवार की जगह कलम थाम ली और एनआरएफ के प्रवक्ता बन गए, इस उम्मीद में की 2001 वाली भावना फिर जागेगी.

लेकिन यह नहीं होना था. तालिबान के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद के मुताबिक, अंतिम सूबे पंजशीर पर कब्जा हो गया है. ‘वाशिंगटन पोस्ट’ अखबार के मुताबिक, सालेह ताजिकिस्तान भाग गए हैं, जबकि मसूद के बेटे ने ट्वीट किया है कि वे जिंदा और सही-सलामत हैं


यह भी पढ़ें: तालिबान के उदय के बीच भारत अपने 20 करोड़ मुसलमानों की अनदेखी नहीं कर सकता है


काबुल के नये शासकों को सामान्य बनाने की कोशिशें जारी हैं.

पाकिस्तानी मीडिया की खबरों के मुताबिक, मोहम्मद हसन अखूंद तालिबानी सरकार के नये मुखिया हैं. जानकारों का मानना है कि वे उन लोगों में से हैं जिन्होंने 2003 में बामियान में बुद्ध प्रतिमाओं को तोड़ा था. भारत विरोधी हक़्क़ानी नेटवर्क के खूंखार मुखिया सिराजुद्दीन हक़्क़ानी नये गृह मंत्री बनने वाले हैं. हक़्क़ानी नेटवर्क संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित गुटों की सूची में शामिल है और सिराज के सिर पर 50 लाख डॉलर का इनाम घोषित है. तालिबान के संस्थापक मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याक़ूब का रक्षा मंत्री बनना तय है. मुल्ला अमीर खान मुत्तकी नये विदेश मंत्री बनने वाले हैं. मुल्ला बरादर मुल्ला अखूंद के डिप्टी होंगे.

एक बात साफ है कि तालिबान सरकार पर पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी की पूरी छाप है.

इस्लामी अमीरात के क़तर स्थित राजनीतिक दफ्तर के मुखिया शेर मोहम्मद अब्बास स्टानेकजई की, जो पिछले सप्ताह भारतीय दूतावास आकर राजदूत दीपक मित्तल से मिले थे, कोई खबर नहीं है.

भविष्य के संकेत साफ हैं. तालिबान ने अपनी सरकार के उदघाटन के मौके पर चीन, रूस, पाकिस्तान, तुर्की, ईरान, क़तर को आमंत्रित किया है. 1996 में पहली तालिबानी सरकार को मान्यता देने वाले तीन देशों में शामिल सऊदी अरब का नाम इस सूची में नहीं दिख रहा है. तालिबान भारी चीनी निवेश की उम्मीद लगाए है, क्योंकि वह विशाल अर्थव्यवस्था और क्षमता वाला एक विशाल देश है. तालिबानी नेता सुल्तान शाहीन ने ‘सीजीटीएन’ से कहा है कि उनके विचार से चीन अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और पुनर्वास में बहुत बड़ी भूमिका निभाएगा.

विश्व बैंक ने चूंकि अफगानिस्तान को तब तक के लिए सहायता बंद कर दी है जब तक संयुक्त राष्ट्र उसे मान्यता नहीं देता, इसलिए उम्मीद है कि उसके लिए चीन प्रमुख सहायक, और पुनर्निर्माण के लिए मुख्य दानकर्ता के रूप में सामने आ सकता है. ऐसी भी चर्चा है कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का विस्तार करके उसमें अफगानिस्तान को भी शामिल किया जाएगा. वाशिंगटन पोस्ट का कहना है कि काबुल में पाकिस्तान के खुफिया प्रमुख फ़ैज़ हमीद ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार के विस्तार की भी चर्चा की है


यह भी पढ़ें: JNU के आतंकवाद विरोधी कोर्स को ‘सांप्रदायिक’ नज़र से न देखें, भारतीय इंजीनियरों को इसकी


(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

share & View comments