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Saturday, 4 May, 2024
होममत-विमतशिखर सम्मेलन को सफल बनाने के लिए मोदी और शी को ढेर सारे व्यापार समझौते करने की जरूरत नहीं है

शिखर सम्मेलन को सफल बनाने के लिए मोदी और शी को ढेर सारे व्यापार समझौते करने की जरूरत नहीं है

दोनों लोकप्रिय नेताओं को अपने समर्थकों को इस बाबत आश्वस्त करने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे क्योंकि क्षेत्र को संकटमुक्त रखना जरूरी है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मामलापुरम में दूसरा अनौपचारिक शिखर सम्मेलन अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध तथा विश्व मंच पर चीन के उदय, जो कि उतना शांतिपूर्ण नहीं है, को काबू में रखने के अमेरिकी प्रयासों की पृष्ठभूमि में हो रहा है.

जाहिर तौर पर चीन को क्षेत्र में ऐसे मजबूत सहयोगियों की तलाश है, जिनका कि गुटनिरपेक्ष देशों की राजधानियों में भी खासा प्रभाव हो. और इस उद्देश्य के लिए भारत बेहद उपयुक्त है. साथ ही, चीन में इस बात को लेकर वास्तविक चिंता है कि चीन को अपने नेता की भारत की सद्भावना यात्राओं से आगे बहुत कुछ करने की जरूरत है.

भारत और चीन दोनों इस बात पर सहमत हैं कि उनकी अर्थव्यवस्थाओं के बीच टकराव दोनों के लिए प्रतिकूल साबित होगा, और यह उनके विकास को प्रभावित करेगा.

इसलिए उम्मीद की जाती है कि वुहान में अप्रैल 2018 की बैठक के करीब डेढ़ साल बाद हो रहे इस शिखर सम्मेलन में दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच सुरक्षा चिंताओं की पारस्परिक समझ पर आधारित दीर्घकालिक सहयोग की आधारशिला रखी जाएगी और स्थाई सहयोग का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा.

छोटी-मोटी अड़चनें

विगत कुछ वर्षों से चीन पाकिस्तान के जरिए हिंद महासागर क्षेत्र में पांव जमाने के अपने सामरिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है, ताकि वह संसाधनों से भरपूर अफ्रीका और मध्य एशिया के लिए एक व्यवहार्य समुद्री मार्ग बना सके. भारत ने जोरदार ढंग से, और बहुत ही वैध तरीके से, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विरोध किया है क्योंकि ये पाक-अधिकृत कश्मीर से हो कर गुजरता है. ये गलियारा चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड परियोजना का हिस्सा है.

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जबकि चीन ने भारतीय सेना के अरुणाचल प्रदेश में हिम-विजय सैन्य अभ्यास पर पर अपनी सख्त आपत्ति दर्ज कराई है. भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले के साथ अपनी बैठक में चीन के उप विदेश मंत्री लुओ झाओहुई ने इस मुद्दे पर चीन की नाखुशी व्यक्त की. उल्लेखनीय है कि अरुणाचल को चीन ‘दक्षिणी तिब्बत’ बताता है.

हालांकि ये छोटी-मोटी अड़चनें मोदी और शी के दूसरे अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में बाधक नहीं बन पाईं. हालांकि, ये सोचना भी नादानी होगी कि अपनी इस मुलाकात में दोनों नेता सहसा बहुत सारे व्यापार समझौते करने की स्थिति में होंगे.

सौदेबाज़ी करने की स्थिति में भारत

वुहान शिखर सम्मेलन उस घटनाक्रम के करीब सात महीने बाद हुआ था जब परमाणुसंपन्न दोनों राष्ट्रों के सैनिकों ने एक-दूसरे पर रोड़े उछाले थे और डोकलाम में दोनों के बीच गहरे सैन्य तनाव की स्थिति बनती जा रही थी. वुहान में शी और मोदी दोनों ने असाधारण समझदारी का प्रदर्शन किया और तनाव खत्म करने की प्रकिया को बहुत अच्छी तरह संभाला.

मंदिरों के नगर मामलापुरम में हो रहे इस दूसरे शिखर सम्मेलन की राह में भी अवरोध कम नहीं थे. सीमा विवादों पर भारत और चीन के विशेष प्रतिनिधियों के बीच सालाना बैठक, जो पिछले महीने के लिए निर्धारित थी, को टाल दिया गया. यहां ये उल्लेखनीय है कि नवंबर 2018 में पिछली सीमा बैठक के दौरान कथित तौर पर चीन नाखुश था और उसने आरोप लगाया था कि भारत उसके सुझावों पर देरी से प्रतिक्रिया देता है.


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चीनी राजनयिक समुदाय के कुछ लोगों की राय में, सीमा संबंधी मामलों को लेकर मोदी सरकार की निष्क्रियता का कारण है भारत का उभरते हिंद-प्रशांत सहयोग तंत्र से जुड़ने की दिशा में धीरे-धीरे पर दृढ़ता के साथ कदम बढ़ाना. चीन इस तंत्र को एक नए सुरक्षा समझौते के रूप में देखता है. उनमें से कुछ ने भारत के आंतरिक और बाह्य परिदृश्यों में ‘भारी बदलाव’ तथा ‘बड़ी ताकत’ बनने के भारत के मंसूबे के बारे में भी लिखा है. चीनी इसे गाओकाईडिज़ू (高开低走) कहते हैं.

टेक्सस में हुए ‘हाउडी, मोदी!’ कार्यक्रम पर बीजिंग में दिलचस्पी देखी गई. और माना जाता है कि अमेरिका की हिंद-प्रशांत पहलकदमी, तथा क्वाड समूह (अमेरिका, जापान, भारत और ऑस्ट्रेलिया) में भारत की सक्रिय भागीदारी ने चीन के साथ सौदेबाज़ी की भारत की ताकत को बढ़ाने का काम किया है.

आशंकाओं कम करना

प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को आश्वस्त करने का हरसंभव प्रयास किया है कि भारत अपने राष्ट्रीय हितों, क्षेत्रीय प्राथमिकताओं और घरेलू उद्योगों के संरक्षण पर कोई समझौता किए बगैर परस्पर अच्छे संबंध बनाए रखने के सिद्धांत के प्रति कटिबद्ध है.

चीन बेशक अमेरिका और जापान जैसे देशों के साथ भारत के रक्षा सहयोग तथा उसकी नौसेना और सेना के सामरिक युद्धाभ्यासों को क्षेत्र में अपने प्रभाव के लिए एक तात्कालिक खतरा मानते हुए अपनी नाखुशी जाहिर करता रहेगा. पर भारत सामरिक स्वायत्तता की नीति पर चलते रहने में यकीन करता है.

इस अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में, मोदी के लिए ये आवश्यक है कि वे अपने मेहमान की आशंकाओं को दूर करें तथा चीन से दोस्ताना संबंधों को नुकसान पहुंचाए बगैर अमेरिका एवं अन्य बहुपक्षीय समूहों से जुड़ने के भारत के वैध अधिकार के बारे में उन्हें विश्वास में लें.


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शिखर सम्मेलन के लिए मामलापुरम का चुनाव महत्वपूर्ण है. यूनेस्को विश्व विरासत स्थल मामलापुरम पल्लव राजवंश के काल में एक समृद्ध बंदरगाह शहर हुआ करता था, जिसका कि चीन के साथ घनिष्ठ संबंध था. ऐसे समय जबकि व्यापार, वाणिज्य और उद्योग से किसी देश की बढ़ती ताकत का अंदाजा लगाया जाता हो, भारत-चीन संबंध पारस्परिक सहयोग के एक अहम दौर से गुजर रहा है, जिसका ना सिर्फ दोनों देशों पर बल्कि पूरे क्षेत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा.

निश्चय ही ऐसे क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दे मौजूद हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने और जिनका स्थानीय स्तर पर व्यवहार्य समाधान ढूंढने की आवश्यकता है. साथ ही, दोनों लोकप्रिय नेताओं को अपने समर्थकों को इस बाबत आश्वस्त करने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे कि द्विपक्षीय शांति और प्रगति सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र को संकटमुक्त रखना जरूरी है.

(लेखक भाजपा की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य और ‘ऑर्गनाइज़र’ के पूर्व संपादक हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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