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Saturday, 20 April, 2024
होममत-विमतमोदी सरकार अज़हर पर चीन के यू-टर्न का श्रेय लेने की हकदार है, लेकिन चीन-पाक संबंध प्रभावित नहीं होंगे

मोदी सरकार अज़हर पर चीन के यू-टर्न का श्रेय लेने की हकदार है, लेकिन चीन-पाक संबंध प्रभावित नहीं होंगे

चीन को जितनी चिंता पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को लेकर है, उससे कहीं ज़्यादा वह 62 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को लेकर चिंतित है.

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भारत की अगुआई में और दर्जन भर अन्य देशों के समर्थन से चलाए गए एक अभूतपूर्व कूटनीतिक अभियान का अंतत: एक मई को वो परिणाम निकला जिसके लिए एक दशक से प्रयास किए जा रहे थे. पाकिस्तानी आतंकी और जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को एक अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किया जाना.

भारत ने इसे ‘सही दिशा में उठाया गया एक कदम बताया जिससे आतंकवाद और उसका साथ देने वालों के खिलाफ लड़ने का अंतरराष्ट्रीय समुदाय का संकल्प प्रदर्शित होता है.’

अज़हर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादियों की सूची में डलवाने का यह चौथा प्रयास था. पहला प्रयास 2009 में किया गया था. इससे पहले के सारे प्रयास चीन ने अपने वीटो पावर के बल पर नाकाम कर दिए थे. आधिकारिक तौर पर चीन का यही कहना था कि अज़हर के खिलाफ सबूत अपर्याप्त हैं.

अज़हर को सूची में डालने के प्रयास को अब अपने समर्थन के बारे में चीन का कहना है कि ‘हाल ही में, प्रस्ताव के समर्थन में 1267 समिति के समक्ष संबंधित देशों (भारत) द्वारा संशोधित और नए सिरे से दस्तावेज़ पेश किए गए.’

चीन के विदेश मंत्रालय के अनुसार, ‘संशोधित दस्तावेज़ों के सावधानीपूर्वक अध्ययन और संबंधित पक्षों के विचारों पर गौर करने के बाद, आतंकवादियों की सूची में डालने के प्रस्ताव पर चीन को आपत्ति नहीं है.’

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क्या अवरोध मात्र सबूतों को लेकर था? इस दलील को स्वीकार करना कठिन है, खास कर इस बात के मद्देनज़र कि इसी समिति ने 2001 में अज़हर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद को आतंकवादी संगठन घोषित करने के लिए सबूतों को पर्याप्त माना था. ये अलग बात है कि 18 वर्षों से प्रतिबंधित होने के बावजूद जैश अपनी गतिविधियां जारी रखे हुए है, जो दर्शाता है कि संयुक्त राष्ट्र की कार्रवाई का प्रतीकात्मक महत्व से आगे कोई खास मतलब नहीं है.

फिर भी, राजनीति के भी मायने होते हैं और अज़हर को आतंकवादी घोषित किया जाना आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई के लिए पाकिस्तान पर दबाव डालने में उपयोगी एक अतिरिक्त औजार साबित होगा. पर मसूद अज़हर को आतंकवादी घोषित किया जाना कोई ब्रह्मास्त्र नहीं साबित होने वाला है. असल चुनौती तो पाकिस्तान पर खास कर मौजूदा वित्तीय संकट की पृष्ठभूमि में, अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाए रखने की होगी कि वह अपने यहां बेरोकटोक काम कर रहे आतंकी गुटों के खिलाफ कदम उठाए.


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चीन के यू-टर्न के पीछे संभवत- कई कारक हैं, जिनमें सबसे अहम है भारत की अगुआई में हुआ ज़ोरदार कूटनीतिक प्रयास, जिसे अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबंध समिति के मौजूदा प्रमुख इंडोनेशिया समेत कई देशों का समर्थन प्राप्त था.

मार्च में चीन के तकनीकी अवरोध लगाने के बाद इस मुद्दे पर खुली बहस कराने की संभावनाओं को लेकर अमेरिकी प्रयास ने भी चीन को अपना रवैया बदलने के लिए बाध्य किया होगा. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समिति के अस्पष्ट नियमों – लंबे समय से चल रहे इस प्रकरण से भी उनमें तत्काल संशोधनों की ज़रूरत स्पष्ट होती है– के कारण लंबे समय से चीन बिना सार्वजनिक छानबीन का सामना किए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को बाधित करता रहा है.

नरेंद्र मोदी सरकार भी श्रेय की हकदार है, ना सिर्फ कूटनीतिक प्रयासों में बहुत कुछ दांव पर लगाने के लिए, बल्कि पिछले साल चीन से नजदीकियां बढ़ाने के अपने राजनीतिक दांव के लिए भी. डोकलाम विवाद के कुछ ही महीनों बाद कथित रूप से बिना किसी एजेंडे के वुहान शिखर बैठक करने के लिए मोदी को विपक्ष की तीखी आलोचना झेलनी पड़ी थी. पर वुहान बैठक और उसके बाद बेहतर हुए संबंधों के बिना, अज़हर मुद्दे पर चीन के यू-टर्न की कल्पना कठिन थी.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा उठाए कदम के बाद भारत ने कहा है कि वह अपने नागरिकों को नुकसान पहुंचाने वाले आतंकवादी संगठनों और उनके सरगनाओं को न्याय के कटघरे में लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने प्रयास जारी रखेगा.

हालांकि, कम-से-कम संयुक्तराष्ट्र में चीन से चुनौती मिलती रहेगी. अज़हर को आतंकवादी घोषित किए जाने मात्र से पाकिस्तान को कूटनीतिक सुरक्षा देने में अंतर्निहित चीनी उद्देश्यों में बदलाव की संभावना नहीं है. पाकिस्तान हर मौके पर चीन का साथ देता है और चीन मज़बूत संबंधों के कारण उसे अपना ‘आयरन ब्रदर’ बताता है.

संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा कार्रवाई से कुछ ही दिन पहले बीजिंग में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान से मुलाक़ात के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पाकिस्तान को चीनी समर्थन पर ज़ोर दिया था. शी ने कहा कि ‘पाकिस्तान हर मौके पर चीन का साथ देने वाला सामरिक साझेदार है. चीन और पाकिस्तान ‘आयरन फ्रेंड्स’ हैं और एक-दूसरे के बुनियादी हितों के मुद्दों पर मज़बूती से परस्पर साथ देते हैं.’

चीन के राष्ट्रपति ने कहा, ‘चीनी पक्ष पाकिस्तान को अपनी कूटनीति में प्राथमिकता देता है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अंतराष्ट्रीय और क्षेत्रीय परिस्थितियों में चाहे जो भी बदलाव हो, अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय गरिमा की रक्षा के पाकिस्तान के प्रयासों, उसके अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के अनुरूप विकास की राह चुनने, आतंकवादी और चरमपंथी ताकतों से लड़ने, मज़बूत बाह्य सुरक्षा प्रयासों तथा अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मामलों में उसकी संरचनात्मक भूमिका को लेकर चीन मज़बूती से उसके साथ खड़ा रहेगा.’

शी ने कहा कि चीन-पाकिस्तान संबंधों के विकास के लिए दोनों पक्षों में विभिन्न मुद्दों पर अहम सहमति हुई है. उन्होंने कहा, ‘वर्तमान में, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के निर्माण, वित्त, व्यापार और अन्य मुद्दों पर द्विपक्षीय सहयोग को लेकर खासी प्रगति हुई है.’

उल्लेखनीय है कि शी ने ये आशा भी व्यक्त की कि पाकिस्तान और भारत आगे बढ़कर परस्पर बातचीत करेंगे और पाकिस्तान-भारत रिश्तों में स्थायित्व और बेहतरी सुनिश्चित करेंगे.

चीन को जितनी चिंता अपने पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र को निशाना बनाने वाले पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को लेकर है, उससे कहीं ज़्यादा वह 62 अरब डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को लेकर चिंतित है. चीन को सचमुच ये चिंता होगी कि विपरीत अंतरराष्ट्रीय माहौल और पहले से ही जर्जर अर्थव्यवस्था वाले पाकिस्तान को और आर्थिक दंड दिए जाने की संभावना से वहां उसका निवेश संकट में पड़ सकता है. चीन पाकिस्तान में एक बड़े खेल में लगा है और अज़हर मामले पर उसके यू-टर्न से उसमें किसी बदलाव की संभावना नहीं है.

(लेखक ब्रूकिंग्स इंडिया में विजिटिंग फेलो हैं. पूर्व में वह ‘इंडिया टुडे’ और ‘हिंदू’ के चीन स्थित संवाददाता रह चुके हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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