इस सप्ताह रुपये ने पहली बार 80 प्रति डॉलर की सीमा पार कर ली. रुपये में यह गिरावट मुख्यत: भू-राजनीतिक संघर्षों, जींसों की कीमतों में वृद्धि और जोखिम से विदेशी निवेशकों के परहेज का नतीजा है. इन सबके चलते डॉलर मजबूत हुआ है.
रुपये में यह गिरावट सरकारी वित्त व्यवस्था को झटका देगी और चालू खाता घाटे को बढ़ा देगी लेकिन भारत की वृहद अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत बनी हुई है इसलिए यह घबराने की वजह नहीं बनेगी. यह 2013 के ‘टेपर टैंट्रम’ प्रकरण के विपरीत है, जब अपने ऊंचे चालू खाता घाटे और विदेशी पूंजी पर निर्भरता के कारण भारत दुनिया की सबसे कुप्रभावित अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो गया था.
आगे चलकर जींसों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में नरमी इस गिरावट की रफ्तार को कम करने में मददगार होगी.
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रुपये की गिरावट और डॉलर की मजबूती
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने दरों में जो तीखी वृद्धि की है उससे रुपये पर दबाव बढ़ा है क्योंकि अमेरिका और भारत में ब्याज दरों का अंतर घट गया है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने पिछली बैठक के बाद 75 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि कर दी. जून में अमेरिकी मुद्रास्फीति की उम्मीद से ज्यादा ऊंचे आंकड़े ने अमेरिकी फेडरल रिजर्व की अगली बैठक के बाद दरों में 75 या 100 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि की संभावना बढ़ा दी है.
इस तीखी वृद्धि के कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से बिक्री में तेजी आ जाती है और इससे रुपया और कमजोर होता है. 2022 में अब तक विदेशी निवेशकों ने 30 अरब डॉलर मूल्य की भारतीय परिसंपत्तियों की बिक्री कर डाली है.
रुपये की गिरावट डॉलर सूचकांक की मजबूती से जुड़ी है. डॉलर सूचकांक छह मुद्राओं में डॉलर की ताकत का आकलन करता है. इस साल के शुरू में यह सूचकांक 96 था, जो जुलाई के मध्य में 12 प्रतिशत से ज्यादा बढ़कर 108 पर पहुंच गया. डॉलर सूचकांक में ताजा वृद्धि 40 साल में हुई रिकॉर्ड मुद्रास्फीति और अमेरिकी बॉन्ड पर लाभ में वृद्धि के कारण हुई है. अमेरिकी बॉन्ड पर लाभ में वृद्धि के कारण डॉलर की मांग बढ़ जाती है.
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दोहरे घाटे की समस्या
रुपये में गिरावट भारत के दोहरे घाटे को प्रभावित करेगा. कच्चे तेल, जींसों और खाद की कीमतों में वृद्धि ने आयात के बिल में वृद्धि कर दी है और कमजोर रुपया आयात के बोझ को और भारी कर देगा और सब्सिडी के बोझ को भी बढ़ा देगा.
सरकार ने खाद की ऊंची कीमत का बोझ किसानों पर नहीं डालने का फैसला किया है. इस कारण खाद सब्सिडी 2.5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच सकती है. पेट्रोल और डीजल पर ड्यूटी में कटौती से 85,000 करोड़ रुपए का राजस्व घाटा हो सकता है. लेकिन मुद्रास्फीति के चलते नाममात्र की ऊंची जीडीपी वित्तीय घाटे को सीमित कर सकती है.
रुपये में लगातार गिरावट आयातों पर दबाव डालेगी, जिसके कारण चालू खाता घाटा (सीएडी) बड़ा हो जाएगा. सेवाओं के निर्यात में भारत सामान के निर्यात से ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी है इसलिए घाटे में गिरावट मामूली होगी.
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मुद्रास्फीति का बुरा दौर खत्म
पिछले कुछ दिनों से जींसों और कच्चे तेल की कीमतों में सुधार हुआ है. संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के खाद्य सामग्री कीमत सूचकांक द्वारा मापी गई वैश्विक कीमतों में जून में लगातार तीसरी बार गिरावट आई. खासकर खाद्य तेल के उप-सूचकांक में मार्च और जून के बीच 15 फीसदी की गिरावट आई.
औद्योगिक धातुओं की कीमतें मार्च में शिखर छूने के बाद अब गिरी हैं. कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें भी मंडी की आशंकाओं की वजह से जुलाई के शुरू से नरम हुई हैं. आयातों की कीमतों में लगातार नरमी भारत के ‘सीएडी’ के लिए अच्छी खबर है. ‘सीएडी’ जिस हद तक काबू में रहेगा मुद्रा की कीमत में ज्यादा गिरावट नहीं होगी.
अमेरिकी फेडरल रिजर्व की आगामी पॉलिसी के तहत दरों में संभावित वृद्धि का बाजार ने हिसाब लगा लिया है. नतीजतन, एफआईआई भारतीय इक्विटीज़ को बेच रहे हैं लेकिन जुलाई में यह बिक्री घटी है. जुलाई में एफआईआई खरीदार भी बने हैं. जबकि ज़ोर रुपया और डॉलर की दरों पर है लेकिन पाउंड, यूरो, येन जैसी अहम मुद्राओं के मुकाबले रुपये की कीमत बढ़ी है. डॉलर के मामले में रुपये की गिरावट की दर दूसरी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की इस दर से कम ही रही है.
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रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप
अल्पावधि के लिए रुपये की दिशा अमेरिकी फेडरल रिजर्व की अगली बैठक में दरों में वृद्धि के अनुपात से तय होगी. भारतीय रिजर्व बैंक रुपये की गिरावट को रोकने के लिए हस्तक्षेप करता रहा है. इस मकसद से उसने अपने भंडार में से करीब 50 अरब डॉलर बेच डाले हैं. लेकिन डॉलर जब मजबूत हो रहा है, उस हालात में रुपये का बचाव करना कठिन होगा. विदेशी कर्ज के बारे में रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़े बताते हैं कि 43 फीसदी विदेशी कर्ज की अवधि इस साल पूरी हो जाएगी. इसके कारण ज्यादा डॉलर की मांग होगी और यह जमा कोश के प्रबंधन के लिहाज से रिजर्व बैंक के लिए एक चुनौती होगी.
डॉलर की आवक बढ़ाने के लिए पूंजीगत नियंत्रणों का रिजर्व बैंक का ताजा फैसला एक सकारात्मक कदम है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार रुपये में करने की इजाजत देने का ताजा फैसला अल्पकालिक तौर पर ज्यादा असर नहीं डालेगा. लेकिन मध्य या दीर्घ अवधि के लिए यह डॉलर की जगह रुपये की मांग की ओर ले जाएगा.
(राधिका पांडे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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