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Wednesday, 24 April, 2024
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फ्री, राहत, पेंशन की वापसी- यानी राज्यों के लिए वित्तीय संकट का पूरा इंतजाम

राज्यों की वित्तीय स्थिति तभी बेहतर हो सकती है जब बिजली सेक्टर में सुधार हो, सबसिडी भुगतान में घपला रुके, और पेंशन की पुरानी व्यवस्था की वापसी जैसे वित्तीय दृष्टि से अविवेकपूर्ण फैसलों से परहेज किया जाए.

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भारतीय रिजर्व बैंक के एक ताजा अध्ययन ने देश की राज्य सरकारों के सामने खड़े वित्तीय जोखिमों को रेखांकित किया है. कोविड महामारी के कारण राजस्व में कमी और खर्चों में वृद्धि ने तो राज्य सरकारों पर वित्तीय दबाव बढ़ा ही दिया; फ्री बांटने की प्रवृत्ति, कुछ राज्यों में पेंशन की पुरानी व्यवस्था की वापसी और बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को समय-समय पर संकट से उबारने जैसे उपायों ने राज्यों की वित्तीय स्थिति और खराब कर दिया.

राज्यों की वित्तीय स्थिति तभी बेहतर हो सकती है जब बिजली सेक्टर में सुधार हो, सब्सिडी भुगतान में घपला रुके, और पेंशन की पुरानी व्यवस्था की वापसी जैसे वित्तीय दृष्टि से अविवेकपूर्ण फैसलों से परहेज किया जाए.

महामारी से पहले राज्यों की वित्तीय स्थिति

महामारी से पहले, राज्यों ने तीन वर्षों— 2009-10, 2015-16, और 2016-17— को छोड़ बाकी वर्षों में वित्तीय घाटे को 3 फीसदी की सीमा के अंदर रखा, जो सीमा ‘फिस्कल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ कानून ने तय की है. 2009-10 में वैश्विक वित्तीय संकट के कारण लक्ष्य हासिल न हो सका था, जबकि 2015-16, और 2016-17 में ‘उदय’ योजना के कारण सीमा अतिक्रमण हुआ. कर्ज से लड़ी डिस्कॉम को फिर से जीवित करने के ली बनी इस योजना के तहत 16 राज्यों ने इन कंपनियों के कर्ज माफ कर दिए. इस योजना के कारण वित्तीय घाटे की सीमा जीडीपी के 0.7 से 0.8 प्रतिशत के बराबर के अनुपात से पार कर गई थी.

कई राज्यों ने कृषि कर्ज माफी की भी घोषणा की, जिसके कारण भी राज्यों की वित्तीय स्थिति प्रभावित हुई. कर्ज माफी वित्तीय बोझ बढ़ाती है क्योंकि यह मूलतः करदाताओं के पैसे को कर्जदारों की जेब में डालना है. अनुमान बताते हैं कि कृषि कर्ज माफी के कारण खर्चों में वृद्धि होती है और इसके कारण वित्तीय घाटे में जीडीपी के 20-40 बेसिस अंकों के अनुपात से वृद्धि हो जाती है. बढ़े हुए खर्चों क पूरा करने के लिए राज्यों को ज्यादा उधार लेना पड़ता है इसलिए ‘स्टेट डेवलपमेंट लोन्स’ (एसडीएल) पर लाभ बढ़ेगा और राज्यों पर ऊंची ब्याज दर का बोझ पड़ेगा.


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वित्त आयोग की उड़ान और दबाव में राज्य

वित्तीय दृष्टि से कई राज्य कमजोर हैं. रिजर्व बैंक के अध्ययन में कहा गया है कि बिहार, केरल, राजस्थान, पंजाब और पश्चिम बंगाल कर्ज, वित्तीय घाटे, और खर्चों के कारण सबसे ज्यादा दबाव में हैं. इन राज्यों के जीडीपी के अनुपात से कर्ज का स्तर ऊंचा है. इसका अर्थ यह हुआ कि इनके राजस्व का बड़ा हिस्सा ब्याज भुगतान में जाता है. इनमें से अधिकतर राज्य अपने राजस्व का 10 फीसदी हिस्सा ब्याज भुगतान पर खर्च करते हैं, जबकि पंजाब और पश्चिम बंगाल राजस्व का 20 फीसदी हिस्सा ब्याज भुगतान पर खर्च करते हैं. इस वजह से उत्पादक पूंजीगत खर्च के लिए ज्यादा गुंजाइश नहीं रह जाती.

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महामारी के पहले साल में वित्तीय घाटा जीडीपी के 4.7 फीसदी के बराबर पहुंच गया. पांचवें वित्त आयोग ने राज्य सरकारों को 2025-26 तक के पांच वर्षों के लिए वित्तीय मजबूती हासिल करने के लिए सुझाव दिया कि वे 2021-22 के लिए वित्तीय घाटे की सीमा जीएसडीपी की 4 फीसदी के बराबर, 2022-23 के लिए 3.5 फीसदी और 2023-26 के लिए 3 फीसदी के बराबर रखे.

वित्तीय संकट से ग्रस्त अधिकतर राज्यों (पश्चिम बंगाल को छोड़कर) ने 15वें वित्त आयोग द्वारा 2021-22 के लिए निर्धारित वित्तीय घाटे की 4 प्रतिशत की सीमा तोड़ दी. यही नहीं, वे अपने बजटों में घोषित लक्ष्यों से भी काफी दूर रहे. मसलन, बिहार के लिए 20221-22 के बजट में इसका निर्धारित लक्ष्य जीडीपी के 2.97 फीसदी के बराबर रखा गया था लेकिन उसे बदलकर 11 फीसदी किया गया.

वित्त आयोग ने राज्यों के लिए जीडीपी के अनुपात में कर्ज के लिए भी उड़ान पथ अपनाने का सुझाव दिया था. आयोग को उम्मीद है कि कर्ज-जीडीपी अनुपात 2025-26 तक घटकर 32.5 फीसदी हो जाएगा. पंजाब खास तौर से ज्यादा संकट में दिख रहा है. 6 साल से ज्यादा से इस राज्य का कर्ज-जीएसडीपी अनुपात 40 फीसदी बना हुआ है. राजस्थान का कर्ज भी जीडीपी के 40 प्रतिशत का बराबर पहुंच रहा है.

अपना टैक्स राजस्व और केंद्र पर निर्भरता

राज्यों के कुल राजस्व में उसके अपने कर राजस्व का हिस्सा औसतन 48 फीसदी है. बाकी के लिए राज्य केंद्र सरकार से टैक्स में हिस्सेदारी और अनुदान-सहायता पर निर्भर रहते हैं. बिहार, असम, हिमाचल प्रदेश, झारखंड जैसे कुछ राज्यों के कुल राजस्व में उनके अपने कर राजस्व का हिस्सा औसतन काफी कम है. ज्यादा चिंता की बात यह है कि कर्नाटक, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के कुल राजस्व में उनके अपने कर राजस्व का हिस्सा घटता जा रहा है. जीएसटी क्षतिपूर्ति व्यवस्था फिलहाल चूंकि खत्म हो गई है, कुछ राज्यों को अपनी आमदनी में भारी गिरावट महसूस हो सकती है.
जीएसटी क्षतिपूर्ति लक्जरी सामान पर सेस लगाकर की जा सकती है लेकिन महामारी वाले साल में इस सेस से क्षतिपूर्ति नहीं हो पाई. इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने कर्ज लेकर राज्यों को 2020-21 में 1.1 लाख करोड़ और 2021-22 में 1.59 लाख करोड़ का ‘बैक टू बैक लोन’ जारी किया. सेस को मार्च 2026 तक जारी रखा जाएगा ताकि राज्यों को 2020-21 और 2021-22 में जीएसटी क्षतिपूर्ति के लिए लिये गए कर्ज का भुगतान किया जा सके.

पेंशन की पुरानी व्यवस्था, और फ्री

कुछ राज्यों ने पेंशन की पुरानी व्यवस्था लागू करने का जो फैसला किया है वह अविवेकपूर्ण है. हालांकि इससे राज्यों की वित्तीय स्थिति पर तुरंत असर नहीं पड़ेगा लेकिन यह जल्दी ही उसकी वित्तीय सेहत को कमजोर करेगा. मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, मुफ्त बस सेवा, बकाया यूटिलिटी बिलों की माफी, कृषि कर्ज की माफी जैसी फ्रीबीज पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए क्योंकि इससे प्रोत्साहन कमजोर होते हैं और दुर्लभ वित्तीय संसाधन का गलत इस्तेमाल होता है.

(राधिका पांडे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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