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Friday, 19 April, 2024
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RBI की ब्याज दरों में तेज वृद्धि से भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्या संकेत है

आरबीआई ने माना है कि टिकाऊ विकास को सुनिश्चित करने के लिए कीमतों में स्थिरता बनाए रखना और मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को जकड़ कर रखना सबसे अच्छी रणनीति है.

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भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने बुधवार को आमराय से पॉलिसी रेपो रेट में 50 बेसिस प्वाइंट्स का इज़ाफा कर दिया, ताकि मुद्रास्फीति पर लगाम लगाई जा सके, जो इस साल के शुरू से अपने ऊपरी टॉलरेंस लेवल से ऊपर चल रही है.

कमेटी ने चालू वित्त वर्ष के लिए मुद्रास्फीति अनुमान में तेज़ी से वृद्धि करके, उसे 5.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया, जबकि विकास दर के अपने अनुमान को 7.2 प्रतिशत पर बनाए रखा.

आरबीआई ने माना है कि टिकाऊ विकास को सुनिश्चित करने के लिए कीमतों में स्थिरता बनाए रखना और मुद्रास्फीति की अपेक्षाओं को जकड़ कर रखना सबसे अच्छी रणनीति है. नीति वक्तव्य में बाज़ार को एक स्पष्ट संकेत दिया गया है कि मुद्रास्फीति पर लगाम कसने के लिए पॉलिसी दर में और वृद्धि की अपेक्षा की जा सकती है.


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गहराते मुद्रास्फीति दवाब के बीच दिशानिर्देश में बदलाव

आरबीआई ने स्वीकार किया कि मुद्रास्फीति दबाव गहरा गए हैं और अधिक व्यापक हो गए हैं. वस्तुओं की कीमतों में इनपुट लागत का हिस्सा बढ़ रहा है. वस्तुओं की महंगाई के अलावा सेवाओं की महंगाई भी बढ़ रही है. हाल ही में टमाटर के दामों में वृद्धि, बिजली दरों में बदलाव और वस्तुओं के बढ़े हुए दाम भी मुद्रास्फीति दवाब में इज़ाफा कर रहे हैं.

वैश्विक विकास का पिछला जमा स्टॉक अभी भी प्रकट हो रहा है. कच्चे तेल के दाम भी नीचे आने का संकेत देने के बाद, फिर से उठकर 120 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गए हैं. हालांकि यूएन खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का खाद्य मूल्य सूचकांक मई में संयमित हो गया लेकिन अनाज मूल्य सूचकांक उप-घटक में तेज़ी आती रही.

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आरबीआई ने नोट किया कि महंगाई केवल साल के अंत में जाकर संभवत: 6 प्रतिशत की ऊपरी दहलीज़ से नीचे आएगी. आरबीआई का अनुमान है कि मुद्रास्फीति जुलाई-सितंबर तिमाही के 7.4 प्रतिशत से गिरकर, अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही में 6.2 प्रतिशत और जनवरी-मार्च तिमाही में और नीचे 5.8 प्रतिशत पर आ जाएगी. अगर मुद्रास्फीति दबाव बढ़ जाता है तो साल के दूसरे हिस्से के लिए मुद्रास्फीति अनुमानों में बदलाव हो सकता है.

दिशानिर्देश वक्तव्य में महंगाई प्रबंधन को प्राथमिकता बनाने का नीतिगत बदलाव नज़र आता है. फरवरी तक, आरबीआई का फोकस विकास को पटरी पर वापस लाने और उसे स्थिर रखने पर था. अप्रैल नीति में आरबीआई ने उदार बने रहते हुए withdrawal of accommodation को वापस लेने की बात कही. यही रुख मई की नीति समीक्षा में रखा गया. जून की नीति में एमपीसी बयान में ‘उदार बने रहने की प्रतिबद्धता’ को त्याग दिया गया है. अब ज़ोर withdrawal of accommodation को वापस लिए जाने पर है, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि मुद्रास्फीति लक्ष्य के भीतर बनी रहे. नीति वक्तव्य में बदलाव बाज़ारों को स्पष्टता देता है कि महंगाई पर लगाम लगाने के लिए आरबीआई अपनी दरों को और ऊंचा करने में नहीं हिचकिचाएगा.


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विकास दर स्थिर है लेकिन नज़र रखने की जरूरत

सकारात्मक पहलू ये है कि हालांकि महंगाई अपेक्षा से अधिक तेज़ी से बढ़ी है लेकिन विकास दर लचीली बनी हुई है. बहुत सारे उच्च आवृत्ति संकेतकों के अलावा- जैसे मैन्युफैक्चरिंग के लिए परचेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई), सेवाओं के लिए पीएमआई, कोर सेक्टर ग्रोथ और ऑटो बिक्री में सुधार जो स्थिर विकास की ओर इशारा करते हैं- जनवरी-मार्च तिमाही में क्षमता-उपयोग दर 72 प्रतिशत से बढ़कर 74 प्रतिशत से अधिक हो गई है.

क्षमता उपयोग में वृद्धि सरकार के पूंजीगत व्यय को बढ़ावे तथा संपत्ति बेचकर ऋण करने वाली कंपनियों की बैलेंस शीट्स के साथ मिलकर, आगे चलकर निवेश वातावरण में सुधार कर सकती है. एक सामान्य दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून की अपेक्षा और खरीफ की उत्साहजनक बुवाई भी विकास के लिए अच्छा लक्षण हैं.

हालांकि आरबीआई फिलहाल विकास दर को लेकर ज्यादा चिंतित नज़र नहीं आता लेकिन चिंताएं जताई जा रही हैं जैसा कि कुछ एजेंसियों द्वारा हाल ही में विकास के अनुमानों में कमी किए जाने से जाहिर है. विश्व बैंक ने मुद्रास्फीति दबावों, सप्लाई साइड के अवरोधों और भू-राजनीतिक तनावों के चलते, चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के जीडीपी विकास के अपने पूर्वानुमान को 8 प्रतिशत से घटाकर 7.5 प्रतिशत कर लिया है. दरअसल विकास के कमजोर अनुमान का सामना करने वाला भारत अकेला देश नहीं है. वैश्विक विकास दर का पूर्वानुमान भी 4.1 प्रतिशत से घटाकर 2.9 प्रतिशत कर दिया गया है.


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ब्याज दरों में वृद्धि का कर्ज और जमा राशियों पर असर

ब्याज दरों में लगातार दो बार वृद्धि से बैंक भी अपने कर्ज देने की दरों में इज़ाफा कर देंगे. चूंकि खुदरा वर्ग तथा सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को दिए जाने वाले अधिकतर कर्ज बाहरी मानदंडों से जुड़े होते हैं, इसलिए पॉलिसी रेपो रेट्स में वृद्धि के परिणामस्वरूप कर्ज की दरों में भी तुरंत इज़ाफा हो जाता है.

4 मई को पॉलिसी रेट में वृद्धि के बाद अधिकतर बैंकों ने सभी अवधियों के कर्जों की अपनी ब्याज दरें बढ़ा दी. हाल ही में पॉलिसी रेपो रेट में हुए 50 बेसिस प्वॉइंट्स के इज़ाफे के बाद कर्ज की दरों में और इज़ाफा हो जाएगा. लेकिन कर्ज की दरों और ग्राहकों की समान मासिक किश्तों (ईएमआई) में इज़ाफे के बावजूद 20 मई को समाप्त हुए पखवाड़े में बैंक द्वारा दिए गए कर्जों में 11 प्रतिशत से अधिक दोहरे अंकों की वृद्धि देखी गई.

रेपो रेट में इज़ाफे के नतीजे में बैंकों की जमा दरों में भी वृद्धि होगी, हालांकि जमा राशि दरें रेपो रेट में वृद्धि के साथ मेल नहीं खातीं. लेकिन जैसे-जैसे कर्ज़ उठाने में तेज़ी आएगी, वैसे-वैसे बैंकों को कर्ज देने के लिए संसाधन जुटाने के वास्ते, जमा राशि दरें बढ़ानी होंगी.


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सरकारी उधारी और बांड बाज़ार

इस साल बांड से होने वाली आमदनियां अपेक्षा से अधिक तेज़ी से बढ़ी हैं. हाल में शुल्क में घोषित कटौतियों और सब्सिडीज़ के कारण, बजटीय प्रावधान से अधिक उधारी के डर से बांड से होने वाली आय धीरे-धीरे बढ़ रही है. इससे सरकार के लिए उधारी महंगी हो जाएगी.

हालांकि आरबीआई ने सरकार के उधारी कार्यक्रम के व्यवस्थित रूप से पूरा होने को लेकर बाज़ारों को आश्वस्त किया है, लेकिन सरकारी बांड आय का प्रबंध करने के लिए सीधे हस्तक्षेप के कोई उपाय घोषित नहीं किए गए हैं. ये कदम स्वागत योग्य है. ज्यादा ज़ोर अतिरिक्त नकदी को वापस लेने पर है इसलिए खुला बाज़ार परिचालन (ओएमओ) जैसे जरियों से आमदनियों को कम करने का कोई भी कदम, आरबीआई के रुख को जटिल बना देगा.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(राधिका पांडे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में कंसल्टेंट हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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