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Thursday, 25 April, 2024
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LIC अकेला मामला नहीं, 2010 के बाद से शेयर बाजार लिस्टेड आधे-से-अधिक PSU IPO मूल्य से नीचे हैं

22 में से सिर्फ सात पीएसयू के शेयर अपने इश्यू प्राइस से दोगुने भाव पर बिक रहे हैं. एलआईसी का आईपीओ, जिसका लम्बे समय से इंतजार था, 20,560 करोड़ रुपये जुटाने में सफल रहा था.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार, चाहे सत्ता में जो भी पार्टी हो, की अक्सर इस बात के लिए आलोचना की जाती है कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के आईपीओ इसलिए जारी करती है क्योंकि उसे अपने विनिवेश लक्ष्य को पूरा करने के लिए राजस्व की आवश्यकता है, न कि इस वजह से की वह उसके संभावित वैल्यू को अनलॉक करना चाहती है.

इसका नतीजा यह होता है कि इनमें से कई सारे स्टॉक अपने सूचीबद्ध (लिस्टेड) होने के बाद के निर्गम मूल्य (इश्यू प्राइस) से काफी नीचे गिर जाते हैं, जिससे उन निवेशकों को नुकसान होता है जो अन्य निवेशों की तुलना में अधिक फायदा कमाने के मंसूबे से ‘इक्विटीज’ पर भरोसा करते हैं.

दिप्रिंट द्वारा विश्लेषण किए गए डेटा से पता चलता है कि भारतीय जीवन बीमा निगम (लाइफ इन्शुरन्स कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया-एलआईसी), जो पिछले महीने ही रूप से सार्वजनिक रूप से लिस्टेड हुआ है, ऐसा अनुभव प्राप्त करने वाला पहला सार्वजनिक उपक्रम नहीं है, हालांकि यह निश्चित रूप से उनमें से सबसे अधिक हाई-प्रोफाइल है.

प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों से पता चलता है कि 2010 के बाद से सार्वजनिक रूप से लिस्टेड हुए 22 सार्वजनिक उपक्रमों में से आधे के शेयर अपने इश्यू प्राइस से नीचे के भाव पर हैं.

केंद्र सरकार ने इन 22 कंपनियों के आईपीओ के माध्यम से कुल मिलाकर 77,000 करोड़ रुपये जुटाए थे, जिसमें एलआईसी वाले आईपीओ का योगदान करीब एक-चौथाई था.

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क्रेडिट: दिप्रिंट टीम

लेकिन, आखिर क्या वजह है की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के शेयरों के सूचीबद्ध होने के बाद निवेशकों और व्यापारियों द्वारा इनमें इस तरह की गिरावट लाई जाती है ? दिप्रिंट से बात करने वाले अधिकांश बाजार विशेषज्ञों ने कहा कि सरकार ने इनमें से अधिकांश कंपनियों को कंपनी की उनकी वैल्यू बनाने के दृष्टिकोण से नहीं बल्कि विनिवेश के माध्यम से धन जुटाने की प्रक्रिया के रूप में सूचीबद्ध किया है. यही वजह है कि अधिकांश आईपीओ ने उनकी लिस्टिंग के बाद उनका बाजार मूल्य गंवा दिया है.

विशेषज्ञों को सरकारी स्वामित्व वाली एलआईसी के लिए भी कुछ इसी तरह के भविष्य का डर सत्ता रहा है. इस कंपनी द्वारा अपनी 3.5 प्रतिशत हिस्सेदारी या 221.4 मिलियन शेयरों की बिक्री की पेशकश ने इस महीने की शुरुआत में इसे भारत का सबसे बड़ा आईपीओ बना दिया था.

एक आईपीओ, या एक इनिशियल पब्लिक ऑफर (प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई भी गैर-सूचीबद्ध (अनलिस्टेड) कंपनी पहली बार सीधे आम जनता को धन जुटाने के लिए अपनी प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज) को बेचती है. एक बार जब यह शेयर बाजार में सूचीबद्ध हो जाती है, तो यह एक सार्वजनिक-व्यापार वाली कंपनी बन जाती है, जो अपने शेयरों को खुले बाजार में बेच सकती है.

22 में से केवल सात पीएसयू स्टॉक – एमएसटीसी लिमिटेड, इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन (आईआरसीटीसी), रेल विकास निगम, मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स, राइट्स लिमिटेड, मिश्रा धातु निगम लिमिटेड और भारत डायनेमिक्स – में ही निवेशकों को अच्छा रिटर्न (फायदा) मिला है और इनके शेयर मौजूदा समय में अपने इश्यू प्राइस से दोगुने से ज्यादा भाव पर कारोबार कर रहे हैं.

इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड और जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, ये दोनों ही उन सार्वजनिक उपक्रमों की सूची में सबसे नीचे हैं जिनके आईपीओ उनके इश्यू प्राइस से काफी कम भाव पर चल रहे हैं.

सितंबर 2018 में, सरकार ने शेयर बाजार से 500 करोड़ रुपये जुटाने के लिए इरकॉन इंटरनेशनल का आईपीओ लाया था. वह 475 रुपये प्रति शेयर के इश्यू प्राइस के साथ इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा करने में सफल रही थी.

शुक्रवार (27 मई) को यह शेयर 39.34 रुपये प्रति शेयर के भाव पर बंद हुआ, जो इसके इश्यू प्राइस से 90 फीसदी से भी अधिक नीचे है. इसी तरह जनरल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन के मामले में सरकार ने अक्टूबर 2017 में अपनी हिस्सेदारी बेचकर 11,000 करोड़ रुपये जुटाए थे. आज यह शेयर अपने इश्यू प्राइस से करीब 74 फीसदी कम पर कारोबार (ट्रेड) कर रहा है.

इरकॉन इंटरनेशनल के मामले में जहां इस स्टॉक के सूचीबद्ध होने के समय से बाकी का बाजार लगभग 50 प्रतिशत तक बढ़ा है, वहीं इस फर्म का स्टॉक 90 प्रतिशत से अधिक गिर गया है. सितंबर 2018 से पीएसयू इंडेक्स करीब 11 फीसदी बढ़ा है.

इसी तरह, जनरल इन्शुरन्स ऑफ़ इंडिया के मामले में जहां निफ्टी में लगभग 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई. वहीं इस सामान्य बीमा कर्ता फर्म का शेयर अपने इश्यू प्राइस से 74 प्रतिशत गिर गया है. हालांकि, अक्टूबर 2017 में इस स्टॉक की लिस्टिंग के बाद से पीएसयू इंडेक्स भी करीब 8 फीसदी गिर चुका है.

इसी तरह के हालात का सामना करने वाली अन्य कंपनियों में न्यू इंडिया एश्योरेंस, कोचीन शिपयार्ड, पंजाब एंड सिंध बैंक, एमओआईएल लिमिटेड और कोल इंडिया, जो एलआईसी के बाद किसी सरकार द्वारा संचालित फर्म के मामले में दूसरा सबसे बड़ा आईपीओ था, शामिल हैं. ये सभी शेयर अपने इश्यू प्राइस से कम-से-कम 5-7 फीसदी तक नीचे बने हुए हैं.


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एलआईसी के साथ जुड़ी हुई समस्या

आरबीआई द्वारा पूंजीगत बाजार की प्रणाली से लिक्विडी (तरलता) को खत्म करने के लिए बैंक दर में बढ़ोतरी, यूक्रेन पर रूसी आक्रमण, और वैश्विक रूप से उत्पादों की कीमतों में वृद्धि जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद एलआईसी इस साल बाजार के लिए बहुप्रतीक्षित आईपीओ था. सरकार इस आईपीओ के माध्यम से 20,560 करोड़ रुपये जुटाने में सफल रही.

एलआईसी के मामले में की जा रहीं सबसे प्रमुख आलोचनाओं में से एक यह थी कि इसका मूल्य – 949 रुपये प्रति शेयर- काफी अधिक था, और यह भविष्यवाणी की गई थी कि लिस्टिंग के बाद इस शेयर में गिरावट देखी जाएगी.

फिनट्रेक कैपिटल के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी अमित कुमार ने कहा, ‘एलआईसी पेशेवर रूप से प्रबंधित, अच्छी तरह से विनियमित और पारदर्शी बीमाकर्ताओं की तुलना में कम महंगा होने का हकदार थी. वैसे ही जैसे कि सार्वजानिक क्षेत्र के अन्य उद्यम (बैंकों सहित) हैं.’

क्रेडिट: दिप्रिंट टीम

उन्होंने आगे कहा कि, एलआईसी आईपीओ से पहले, वे ग्राहकों को आईआरसीटीसी के प्राइस एक्शन (लम्बे समय में कीमतों के उतर-चढाव) से प्रभावित नहीं होने की सलाह दे रहे थे, जिसके तहत कई निवेशकों का दावा था कि इन शेयरों को आवंटित किए जाने के बाद से उन्होंने बहुत पैसा कमाया है. आईआरसीटीसी, जिसे 2019 में सूचीबद्ध किया गया था, फिलहाल 320 रुपये प्रति शेयर पर जारी किए गए अपने आईपीओ मूल्य से दोगुने पर कारोबार कर रहा है.

कुमार ने कहा, ‘निवेशक रेलटेल, आईआरएफसी और अन्य कंपनियों द्वारा उनकी आईपीओ लिस्टिंग के बाद से किये गए खराब प्रदर्शन को बड़ी आसानी से नजरअंदाज कर देते हैं. पीएसयू जगत में ऐसे सभी आईपीओ, कम-से-कम ऐतिहासिक रूप से (कोल इंडिया, यूटीआई, एनटीपीसी, ओएनजीसी आदि), ने निवेशकों के लिए केवल ‘टफ मनी’ ही पैदा किया है.’

डिपार्टमेंट ऑफ़ इन्वेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (दीपम) ने कहा कि, एलआईसी के साथ, सरकार ने उस पूरे-के पूरे तरीके को ही बदल दिया है जिसके साथ कोई पीएसयू सूचीबद्ध होता है.

सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘एलआईसी के आईपीओ को बाजार में लाने से पहले इस कंपनी में कई सारे सुधार किए गए थे. उदाहरण के लिए, कंपनी ने अब अपने सबसे ताजा सॉफ़्टवेयर को अपडेट कर दिया है जो जिस क्षण कोई पॉलिसी (बीमा) बेची जाती उसी क्षण यह निर्धारित करने में मदद करता है कि पॉलिसीधारक के पैसे का निवेश कहां किया जाएगा.’

इस बीच, एलआईसी ने सोमवार को कहा कि मार्च 2022 में समाप्त हुई तिमाही में उसका समेकित शुद्ध लाभ (कंसोलिडेटेड नेट प्रॉफिट) 17.4 प्रतिशत घटकर 2,409 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की इसी तिमाही में 2,917 करोड़ रुपये था. एक रेगुलेटरी फाइलिंग (नियामक को दी गयी जानकारी) में इस बीमाकर्ता कंपनी ने प्रति शेयर 1.50 रुपये के लाभांश (डिविडेंड) की भी घोषणा की.

एक इन्वेस्टमेंट बैंकर, जो उनका नाम जाहिर किया जाना नहीं चाहते थे, ने कहा: ‘सरकार को अन्य सार्वजनिक उपक्रमों, जैसे कि भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम, वैपकोस और राष्ट्रीय बीज निगम लिमिटेड, जिन्हें इसी साल लिस्टेड किया जाना है के बारे में से सावधान रहना पड़ सकता है एलआईसी के साथ हुए अनुभव के बाद से निवेशक पीएसयू स्टॉक्स की लिस्टिंग की लेकर चौकन्ने हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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