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Thursday, 9 May, 2024
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कुछ राज्यों को महंगाई क्यों ज्यादा परेशान कर रही है

खाने-पीने की चीजों के महंगाई, अर्थव्यवस्था के उदारीकरण, बढ़ती मांग महंगाई को बढ़ा रही है मगर केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में राशन वितरण व्यवस्था कीमतों को नीचे रखने में मदद कर रही है.

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उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) मई में 7.04 प्रतिशत से थोड़ा घट कर जून के महीने में 7 प्रतिशत पर पहुंच गया. लगातार छठे महीने यह रिजर्व बैंक की सहन सीमा 6 प्रतिशत से ऊपर बना हुआ है. खाद्य तेलों की कीमतों में थोड़ी कमी तो आइ है लेकिन अनाजों और सब्जियों की कीमतें चढ़ी हुई हैं. पेट्रोल-डीजल पर ड्यूटी में कटौती से कुछ राहत मिली है लेकिन सेवाओं की कीमतें अर्थव्यवस्था को और खोले जाने तथा मांग में वृद्धि के कारण ऊपर ही बनी हुई हैं.

राष्ट्रीय मुद्रास्फीति दर में मई-जून के बीच थोड़ी गिरावट आई मगर राज्यों में तेलंगाना में मुद्रास्फीति दर दर सबसे ज्यादा 10 फीसदी से ऊपर थी जबकि मई में यह 9.45 फीसदी थी. इसके अलावा, तेलंगाना गांवों में मुद्रास्फीति दर शहरों की मुद्रास्फीति दर से ज्यादा है.

संभवतः सप्लाई में अड़चनों के कारण जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश, और सिक्किम जैसे राज्यों में भी मुद्रास्फीति दर ऊंची है. इसके विपरीत तमिलनाडु, केरल, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली में मुद्रास्फीति दर 5 प्रतिशत से थोड़ी ही ऊपर रही. राज्यों में बिहार में महंगाई दर सबसे कम 4.68 फीसदी थी. खाने-पीने की चीजों की महंगाई और मुद्रास्फीति के दबावों के मिले-जुले असर के कारण राज्यों में मुद्रास्फीति दर बढ़ी.


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राज्यों की सीपीआई

मुख्यतः घरेलू उपभोग की चीजों से ही सीपीआइ का निर्धारण होता है. राज्य स्तरीय सीपीआइ में उपभोग बास्केट की विभिन्न चीजों का ‘वेट’ (वजन) राज्यों में घरेलू उपभोग की चीजों पर कुल खर्च में हरेक चीज के हिस्से के आधार पर तय होता है. किसका कितना हिस्सा है यह उपभोक्ता खर्च सर्वे (सीईएस) से पता चलता है. यह सर्वे नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन करता है. इस सर्वे में देश भर के ग्रामीण तथा शहरी घरों में उपभोग पर किए जाने वाले खर्चों के स्वरूप के बारे में सूचनाएं इकट्ठा की जाती हैं. चालू सीपीआई के लिए ‘वेट’ 2011-12 में हुए सर्वे के आधार पर तय किया गया है जिसमें जुलाई 2011 से जून 2012 तक की अवधि को कवर किया गया. यह प्रक्रिया सभी राज्यों के ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के लिए की जाती है. हरेक राज्य के लिए सीपीआइ शहरी और सीपीआइ ग्रामीण के लिए ‘वेट’ का निर्धारण उनके उपभोग व्यय में चीजों के हिस्से के आधार पर किया जाता है.

राज्यों में विभिन्न चीजों के ‘वेट’ में बड़ा अंतर उपभोग के स्वरूप में अंतरों को दर्शाता है. मसलन, ग्रामीण केरल में ‘खाने और पीने की चीजों’ का ‘वेट’ 44.07 था जबकि ग्रामीण असम में वह हिस्सेदारी 62.79 थी. हरेक राज्य के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए भी ‘वेट’ में अंतर होते हैं.

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Graphic: Soham Sen | ThePrint

राज्यों में महंगाई कौन बढ़ाता है

महंगाई का जून का आंकड़ा राज्यों के बीच और ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों के बीच बड़े अंतर उजागर करता है. मसलन, असम में ग्रामीण क्षेत्र में मुद्रास्फीति शहरी क्षेत्र में मुद्रास्फीति के मुक़ाबले 2 फीसदी ज्यादा है जबकि बिहार में शहरी क्षेत्र में मुद्रास्फीति ग्रामीण क्षेत्र में मुद्रास्फीति के मुक़ाबले 2 फीसदी ज्यादा है.

तेलंगाना (जहां जून में महंगाई सबसे ज्यादा थी) में जून में जिस चीज की कीमत सबसे ज्यादा बढ़ी वह थी ‘ईंधन और रोशनी’ जिसमें बिजली, रसोई गैस, किरासन तेल, कोयला, चारकोल आदि शामिल हैं. इस ‘ईंधन और रोशनी’ मद में तेलंगाना में महंगाई 21 फीसदी बढ़ी. ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में इसकी महंगाई बढ़ी. लेकिन तेलंगाना के सीपीआइ में इसका कुल ‘वेट’ 6.1 फीसदी ही था.

तेलंगाना में महंगाई बढ़ाने में सबसे प्रमुख योगदान ‘खाने-पीने’ की चीजों का रहा. जून में खाने की चीजों की महंगाई 11.6 फीसदी बढ़ी. कीमतें सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ीं. सीपीआइ के कुल ‘बास्केट’ में ‘खाने-पीने’ की चीजों का ‘वेट’ ग्रामीण क्षेत्रों में 52 फीसदी से ज्यादा रहा. यानी, ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य पदार्थों की महंगाई राज्य की कुल मुद्रास्फीति में वृद्धि दिखाएगी.

केरल में महंगाई की तस्वीर अलग है. वहां ‘खाने-पीने’ की चीजों की महंगाई जून में 3.8 फीसदी थी. केरल में खाद्य पदार्थों की महंगाई नवंबर 2020 से 5 फीसदी के नीचे रही है. इसकी एक वजह यह बताई गई है कि वहां की सार्वजनिक वितरण व्यवस्था (पीडीएस) काफी मजबूत है. इसके कारण जरूरी चीजों की कीमतों को काबू में रखा जा सका है.

तमिलनाडु में भी ग्रामीण क्षेत्रों के सीपीआई में ‘खाने-पीने’ की चीजों का ‘वेट’ 52 फीसदी से ज्यादा रहा लेकिन कीमतों पर लगाम रखा गया. इसकी एक वजह यह हो सकती है कि राज्य ने कई चीजें पीडीएस से मुहैया करवाईं.

केरल में मुद्रास्फीति मुख्यतः ‘फुटकर’ चीजों के कारण बढ़ी. 2021 के उत्तरार्द्ध से इस मद में महंगाई निरंतर बढ़ रही है. इस मद में स्वास्थ्य, परिवहन, संचार, निजी देखभाल, एवं अन्य सेवाएं आती हैं. इस मद में महंगाई संकेत देती है कि कोविड के मामलों में कमी आने के बाद मांग बढ़ने से दबाव फिर बढ़ा है.

हरियाणा में खाद्य पदार्थों की महंगाई जून में थोड़ी कम हुई है लेकिन कपड़ों और जूतों आदि की कीमतें लगातार बढ़ी हैं. यह वृद्धि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भी हुई है. इन्के अलावा ‘फुटकर’ चीजों की महंगाई भी काफी बढ़ी है.

महंगाई के मूल दबावों में फिर वृद्धि

पिछले कुछ महीनों से ‘कपड़े और जूते आदि’ की कीमतें अधिकतर राज्यों में बढ़ी हैं. यह अर्थव्यवस्था को खोलने और मांग में वृद्धि के कारण हुआ है. इनके अलावा निजी देखभाल की कुछ चीजों और सेवाओं (‘फुटकर’ वर्ग में) के कारण मूल मुद्रास्फीति बढ़ी है.

आगे, खाद्य पदार्थों और जींसों की कीमतों में कमी से राज्यों में मुद्रास्फीति घट सकती है लेकिन सेवा क्षेत्र को खोले जाने, लागतों के वितरण, और मांग में तेजी चुनौती खड़ी कर सकती हैं. रिजर्व बैंक मुद्रा नीति को सखता बनाए रख सकता है और मुद्रानीति की अगले महीने समीक्षा के बाद पॉलिसी रेपों रेट बढ़ा सकता है.

(राधिका पांडे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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