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Saturday, 16 November, 2024
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GDP में 13.5% इजाफे की हंसी मत उड़ाइए, लेकिन भविष्य की तिमाहियों में खपत, निवेश महत्वपूर्ण

पहली तिमाही में जीडीपी के आंकड़े में सुधार दिखा है लेकिन आगे वृद्धि की गति वैश्विक कारणों और आधे-अधूरे मॉनसून के कारण धीमी हो सकती है.

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जून में खत्म हुई तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 13.5 फीसदी की दर से वृद्धि हुई. पिछले वर्ष की इसी अवधि के आधार के हिसाब से सुधार, निजी उपभोग में वृद्धि, कोविड के मामलों में गिरावट के चलते संपर्क केंद्रित सेवाओं में वृद्धि आदि ने मिल-जुलकर जीडीपी की वृद्धि के आंकड़े को दहाई वाले अंक में पहुंचा दिया. हालांकि इसकी उम्मीद भी की जा रही थी, लेकिन यह भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अनुमानित 16.2 फीसदी के आंकड़े से कम ही है.

तिमाही-दर-तिमाही के आधार पर देखें तो जीडीपी ने सिकुड़न दर्ज की है. तिमाही-दर-तिमाही वृद्धि का हिसाब करने के लिए मौसम की गिनती रखनी पड़ती है. इस गिनती के मुताबिक 0.9 फीसदी की मामूली सिकुड़न दिखती है. पिछले कुछ वर्षों, 2020-21 और 2021-22 में जनवरी-मार्च तिमाही के ऊपर अप्रैल-जून तिमाही में वृद्धि से तुलना करें तो सिकुड़न मामूली दिखेगी.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint

कोरोना महामारी से पहले के दौर में जीडीपी के आंकड़ों में असंतुलित वृद्धि दिखती है. आगे, उपभोग और निवेश उत्साहवर्द्धक दिखते हैं, लेकिन जींसों की महंगाई, वैश्विक मंदी की आशंका, ब्याज दरों में वृद्धि और असंतुलित मॉनसून के कारण वृद्धि की गति धीमी हो सकती है.


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उपभोग और निवेश में उछाल

अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार माने गए और जीडीपी में करीब 60 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले, उपभोग ने जून की तिमाही में 29 फीसदी की मजबूत वृद्धि दर्ज की. निवेश संबंधी गतिविधियों का जायजा देने वाले ‘ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन’ (जीएफसीएफ) ने 20 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की. जीडीपी में इसका योगदान पिछले वर्ष की इसी तिमाही के मुक़ाबले इस तिमाही में 32.7 फीसदी से बढ़कर 34.67 फीसदी हो गया.

‘ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट, ब्रॉडकास्टिंग से जुड़े संचार एवं सेवाओं’ में अच्छी-ख़ासी 25.7 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई. यह दर्शाता है कि उपभोग पर खर्चों में वृद्धि हो रही है. यूक्रेन युद्ध के कारण महंगाई के बावजूद उपभोग और निवेश में वृद्धि मांग में आई मजबूती को दर्शाती है.

‘पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स’ (पीएमआई), क्षमता का उपयोग, कर उगाही, वाहनों की बिक्री के आंकड़े जैसे ‘हाई फ्रिक्वेंसी’ सूचकांक बताते हैं कि इस वित्त वर्ष के पहले कुछ महीनों में वृद्धि की गति तेज रही. अगस्त में भारत में मैन्युफैक्चरिंग की पीएमआई 56.2 थी, जो जुलाई में 56.4 थी. यह कोई खास परिवर्तन नहीं है. मांग में तेजी और महंगाई की चिंता घटने के कारण वृद्धि को मजबूती मिली है. खाद्य सामग्री से इतर चीजों के लिए बैंक क्रेडिट में मजबूत वृद्धि भी मांग में सुधार का संकेत देती है.

जींसों की महंगाई और कमजोर रुपया : आयात में तेजी

दूसरा पहलू यह है कि कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण आयात में 37 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई. निर्यात में जितनी वृद्धि हुई उसके दोगुने से ज्यादा के बराबर आयात में वृद्धि हो गई. विदेशी निवेशकों के हाथ खींचने के कारण रुपये का मूल्य 7 फीसदी गिर गया, जिसके कारण आयात महंगा हुआ.

अमेरिकी फेडरल रिजर्व के बयानों के कारण डॉलर इंडेक्स मजबूत हो सकता है और रुपया और कमजोर हो सकता है. इसके कारण आयात महंगा हो जाएगा. भारत का व्यापार घाटा बढ़ते आयात के कारण 30 अरब डॉलर के बराबर पहुंच गया.

औद्योगिक सेक्टर में मिली-जुली वृद्धि हुई. कंस्ट्रक्शन और बिजली ने दहाई अंक वाली वृद्धि दर्ज की, तो खनन और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का कामकाज ढीला रहा. लागत में वृद्धि के कारण मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ने पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में इस तिमाही 4.8 फीसदी की कमजोर वृद्धि दर्ज की.

वैश्विक मंदी की आशंका में निर्यात को झटका

हाल में हुए जैक्सन होल सिंपोजियम में अमेरिकी फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेने दरों में वृद्धि करके उच्च मुद्रास्फीति से लड़ने का संकल्प लिया. उन्होंने माना कि ब्याजदारों में वृद्धि से परिवारों और व्यवसायों को थोड़ी परेशानी होगी.

विकसित देशों में ब्याज दरों में वृद्धि से मांग घटेगी और निर्यात भी घटेंगे. अमेरिका पहले ही ‘टेक्निकल’ मंदी झेल रहा है. चीन ने अप्रैल-जून तिमाही में महज 0.4 फीसदी की वृद्धि दर्ज की. पिछले साल निर्यातों ने वृद्धि को आगे बढ़ाया था; इस साल वह सुस्ती का सामना कर सकता है. वैश्विक मांग में कमी से निर्यात तो कुप्रभावित होंगे ही, आयात का परिमाण ऊंचा बना रहेगा क्योंकि कच्चे तेल की कीमतें पिछले कुछ हफ्तों से मंदी रहने के बाद फिर 100 डॉलर प्रति डॉलर की सीमा से पार जा रही हैं.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint

अनिश्चित मॉनसून और कृषि उपज

अप्रैल-जून की तिमाही में कृषि क्षेत्र ने 4.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की, जो पिछली आठ तिमाहियों में सबसे ऊंची है. यह रबी की जोरदार फसल और खाद्य फसलों की कीमतों में वृद्धि के कारण हुआ. अब आगे भी इस क्षेत्र में ऊंची वृद्धि दर बनाए रखना एक चुनौती होगी. अनिश्चित मॉनसून के कारण खरीफ़ की फसल की रोपाई पिछले वर्ष की तुलना में कम हुई, हालांकि हाल हफ्तों में एकड़ के लिहाज से कमी में कुछ भरपाई हुई है.

कोविड से पहले के स्तर की तुलना में असंतुलित सुधार

अगर हम महामारी वाले वर्षों को गिनती से बाहर कर दें और जून की तिमाही में जीडीपी का आंकड़े को 2019-20 की इसी अवधि के इसके आंकड़े से तुलना करें तो वृद्धि दर 3.8 फीसदी पर अटकी दिखेगी. ज्यादा चिंता की बात यह है कि संपर्क केंद्रित सेवाओं— ‘ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट, ब्रॉडकास्टिंग से जुड़े संचार एवं सेवाओं— में सुधार नहीं हुआ है और वे 2019-20 वाली इसी तिमाही के स्तर पर ठहरी हैं. 6-7 फीसदी की वृद्धि दर हासिल करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. बाहरी स्थितियां जबकि सहायक नहीं हैं, तब तेज आर्थिक वृद्धि हासिल करने के लिए उपभोग और निवेश में अधिक तेजी से वृद्धि जरूरी है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(राधिका पांडे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


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