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Friday, 3 May, 2024
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बिहार, पंजाब, राजस्थान वित्तीय रूप से परेशान क्यों हैं? हर राज्य के अपने मूल कारण हैं

बिहार का कर राजस्व सबसे कम है, पंजाब ने ज्यादा खर्चों के वादे कर रखे हैं,, तो राजस्थान वित्तीय घाटा कम करने का लक्ष्य पूरा करने से चूक गया है. इन सभी राज्यों को वोट बैंक और वित्तीय विवेक के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है.

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नीति आयोग की शासी परिषद की ताजा बैठक में कुछ राज्य सरकारों ने मांग की कि जीएसटी लागू करने के कारण उनके राजस्व में आई कमी की क्षतिपूर्ति पांच साल और जारी रखी जाए. राजस्व में भारी गिरावट और कोविड महामारी के कारण राज्यों की वित्तीय सेहत खराब हो गई है.

हाल के महीनों में राजस्व की स्थिति तो मजबूत हुई है लेकिन राज्यों की वित्तीय स्थिति कमजोर बनी हुई है. लेकिन राज्यों में इस मामले में अंतर हैं. भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा विश्लेषण के मुताबिक बिहार, केरल, पंजाब, राजस्थान और पश्चिम बंगाल वित्तीय स्थिति के लिहाज से सबसे तनावग्रस्त राज्य हैं.

Graphic: Manisha Yadav | ThePrint
ग्राफिक: मनीषा यादव | दिप्रिंट

पहली तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि बिहार की वित्तीय स्थिति चिंता का कारण बनी हुई है. राजस्थान और पंजाब पर भी ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि उनके ऊपर कर्ज का बोझ बड़ा है और उन्होंने ज्यादा खर्चों के वायदे भी कर रखे हैं, जिनके कारण विकास पर खर्च के लिए वित्तीय गुंजाइश सिकुड़ गई है.

बिहारः खुद के टैक्स राजस्व में होती कमी और खर्च की गिरती गुणवत्ता

राज्यों के कर राजस्व में केंद्रीय करों और राज्यों के अपने करों के हिस्से भी शामिल हैं. वित्त आयोग केंद्रीय करों में हर राज्य का हिस्सा पांच साल की अवधि के लिए कुछ आधारों पर तय करता है. सभी बड़े राज्यों में राजस्व प्राप्ति के हिस्से के तौर पर बिहार के अपने कर राजस्व का हिस्सा सबसे कम है. कुल राजस्व उगाही में अपने राजस्व की उगाही के हिस्से के रूप में बिहार का हिस्सा 2020-21 में 23.7 फीसदी से घटकर 2021-22 में 20.7 प्रतिशत हो गया. इसके विपरीत, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, और हरियाणा जैसे राज्य अपने यहां करों से 50 फीसदी से ज्यादा की राजस्व उगाही करते हैं.

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ग्राफिक: मनीषा यादव | दिप्रिंट

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश ने पिछले दो साल में अपने यहां कर राजस्व की उगाही में 10 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर्शाई है. कर्नाटक ने भी अपने कर राजस्व में वृद्धि दर्शाई है. अपने कर राजस्व में गिरावट राज्यों को अपने खर्चों की योजना बनाने बाधक बनती है और बाजार से कर्ज पर निर्भरता बढ़ाती है. बिहार को अपने राजस्व आधार में बड़ा सुधार करने की जरूरत है.

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अपने कर राजस्व में सुस्त वृद्धि राज्य के वित्तीय घाटे में प्रतिबिंबित होती है. 2021-222 में राज्य का बजटीय वित्तीय घाटा सकल जीडीपी (जीएसडीपी) के 2.97 प्रतिशत के बराबर था. लेकिन संशोधित वित्तीय घाटा बढ़कर जीएसडीपी के 11 फीसदी के बराबर हो गया. इस साल के लिए, बिहार सरकार के अनुमान के मुताबिक वित्तीय घाटा 3.47 फीसदी रह सकता है, जिसे पूंजीगत खर्च में 23 फीसदी की बड़ी कटौती से हासिल करने की उम्मीद है.

सीएजी ने बिहार की वित्तीय स्थिति की जो ऑडिट रिपोर्ट दी है उसके अनुसार राज्य के पूंजीगत खर्च में 2016-17 के बाद से गिरावट आई है. जीएसडीपी में पूंजीगत खर्च का अनुपात 2016-17 में 6 फीसदी से ज्यादा था, जो 2020-21 में 2.94 फीसदी पर पहुंच गया.


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पंजाबः राजस्व व्यय का ज्यादा शेयर, नीचा कैपेक्स और ऊंचा उधार

राज्य की वित्तीय स्थिति की ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक, 2017-21 के बीच उनके कुल खर्च में राजस्व व्यय का अनुपात सबसे ज्यादा (80-95 फीसदी के बीच) था. राज्य सरकार का कहना है कि पूंजीगत खर्च कम इसलिए है क्योंकि वेतन, पेंशन, ब्याज भुगतान पर खर्च ऊंचा है. अनुमान है कि 2022-23 में पंजाब ने जिन खर्चों का वादा किया था उन पर राजस्व प्राप्ति का 70 फीसदी हिस्सा खर्च किया.

राजस्व व्यय का बड़ा हिस्सा सब्सीडि, खासकर बिजली पर, में जाता है. पंजाब ने किसानों को मुफ्त बिजली देने के लिए 6,947 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं. पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के एक नोट के मुताबिक शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और पुलों पर राज्यों का खर्च उनके औसत खर्च से नीचा रहा है.

पंजाब की वित्तीय स्थिति पर राज्य सरकार द्वारा हाल में जारी श्वेतपत्र बताता है कि उसके कुल राजस्व में केंद्र से आए हिस्से का अनुपात 2011-12 में 23 फीसदी था, जो 2021-22 में बढ़कर 46 फीसदी हो गया. इससे अवधि में, राज्य के कुल राजस्व में उसके अपने कर राजस्व का हिस्सा 72 फीसदी से घटकर 48 फीसदी हो गया. राज्य के अपने कर राजस्व में गिरावट बताती है कि राज्य ने राजस्व उगाहने में कोताही बरती है.

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ग्राफिक: मनीषा यादव | दिप्रिंट

कर राजस्व में गिरावट के कारण ज्यादा उधार लिया जा रहा है. कर्ज के सबसे ज्यादा बोझ से दबे राज्यों में पंजाब भी शामिल है, जिसकी बकाया देनदारी मार्च 2023 में (जीएसडीपी के अनुपात में) 48.5 फीसदी के बराबर होने का अनुमान है. 2026-27 में उसका कर्ज 45 फीसदी से ज्यादा हो जाएगा और वह सबसे बुरी हालत में बना रहेगा.

राजस्थानः राजस्व घाटे के टारगेट से भटकाव

राजस्थान की वित्तीय स्थिति भी कर्ज के ऊंचे स्तर, कुल खर्च में पूंजीगत खर्च के नीचे अनुपात, और कुल राजस्व उगाही में खर्चों (जिनका वादा किया गया है) के बड़े अनुपात से तय हो रही है. राज्य की वित्तीय स्थिति की ऑडिट रिपोर्ट बताती है कि राज्य कुल खर्च में पूंजीगत खर्च का अनुपात 2015-16 में 3.2 फीसदी था और 2019-20 में वह घटकर 1.4 फीसदी हो गया. पंजाब की तरह यहां भी वादों के ऊपर किए जाने वाले खर्च का राजस्व प्राप्ति में अनुपात बड़ा है. अनुमान है कि 2022-23 में राजस्थान के राजस्व में से 56 फीसदी हिस्सा वादों पर खर्च करने में चला जाएगा.

15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट बताती है कि राज्य ने ‘फिशकल रेस्पोंसिबिलिटी ऐंड बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम) एक्ट’ के निर्देशानुसार अपना कर्ज अनुपात बनाए रखा है लेकिन हाल के वर्षों में वह वित्तीय घाटे के अपने लक्ष्य से भटकता रहा है. 20201-22 में उसके वित्तीय घाटे का लक्ष्य जीएसडीपी के 3.93 फीसदी के बराबर रखा गया था लेकिन संशोधित अनुमान बताते हैं कि यह 5.14 फीसदी पर पहुंच जा सकता है. जाहिर है, राज्य को आमदनी बढ़ाने के लिए खर्च में सावधानी के साथ कटौती करनी पड़ेगी.

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वित्तीय रूप से कमजोर राज्यों को अपने वोट बैंक की फिक्र और अपने वित्तीय विवेक के बीच संतुलन साध कर आगे बढ़ने की जरूरत है.

(राधिका पांडे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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